क्या जेल में रहकर भी लड़ा जा सकता है चुनाव? समझें भारत में कौन नहीं लड़ सकता इलेक्शन

असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद खालिस्तान समर्थक अमृतपाल सिंह लोकसभा का चुनाव लड़ने जा रहा है. उसके वकील ने बताया कि अमृतपाल खडूर साहिब सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेगा. ऐसे में जानते हैं कि क्या जेल से चुनाव लड़ा जा सकता है? और कौन भारत के चुनावों में नहीं लड़ सकता?

Advertisement
अमृतपाल सिंह जेल से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. अमृतपाल सिंह जेल से लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 25 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 12:29 PM IST

खालिस्तान समर्थक और 'वारिस पंजाब दे' संगठन का मुखिया अमृतपाल सिंह लोकसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रहा है. उसके वकील ने दावा किया कि अमृतपाल सिंह पंजाब की खडूर साहिब सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर चुनाव लड़ेगा.

उसके वकील राजदेव सिंह खालसा ने कहा, 'डिब्रूगढ़ सेंट्रल जेल में भाई साहब (अमृतपाल) से मुलाकात की और इस दौरान मैंने उनसे अनुरोध किया कि खालसा पंथ के हित में उन्हें इस बार संसद सदस्य बनने के लिए खडूर साहिब से चुनाव लड़ना चाहिए. भाई साहब मान गए हैं और वो निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ेंगे.'

Advertisement

अमृतपाल सिंह एक साल से असम की डिब्रूगढ़ जेल में बंद है. उसे पिछले साल 233 अप्रैल को मोगा के रोडे गांव से गिरफ्तार किया गया था. अमृतपाल डिब्रूगढ़ जेल में राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (एनएसए) के तहत कार्रवाई की गई थी.

क्या जेल से लड़ सकते हैं चुनाव?

अगर कोई व्यक्ति जेल में बंद है या न्यायिक हिरासत में है तो उसके चुनाव लड़ने पर तब तक रोक नहीं है, जब तक उसे किसी मामले में दोषी करार न दिया गया हो. दोषी करार दिए जाने के बाद भी अगर सजा दो साल से कम है तो चुनाव लड़ा जा सकता है.

हालांकि, पहले ऐसा नहीं था. इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने फैसला दिया था. पटना हाईकोर्ट ने जेल में बंद किसी भी व्यक्ति के चुनाव लड़ने पर रोक लगा दी थी. हाईकोर्ट ने कहा था कि जब जेल में बंद व्यक्ति को वोट देने का अधिकार नहीं है, तो चुनाव कैसे लड़ने दिया जा सकता है. बाद में 2010 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस फैसले पर मुहर लगा दी थी.

Advertisement

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद तत्कालीन यूपीए सरकार ने जनप्रतिनिधि कानून में संशोधन किया था. संशोधन के बाद जेल में बंद व्यक्ति को चुनाव लड़ने की अनुमति मिल गई थी. हालांकि, वोट डालने का अधिकार अभी भी नहीं मिला.

जनप्रतिनिधि कानून में हुए इस संशोधन को पहले दिल्ली हाईकोर्ट और फिर सुप्रीम कोर्ट में भी चुनौती दी गई थी.

दिसंबर 2014 में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए कहा था कि एफआईआर दर्ज होने और जेल में बंद होने के आधार पर किसी व्यक्ति को चुनाव लड़ने से नहीं रोका जा सकता. अगर किसी व्यक्ति को दोषी ठहराया गया हो और सजा का ऐलान भी हो चुका हो, तो चुनाव लड़ने पर रोक लगाई जा सकती है. 

जेल में बंद व्यक्ति वोट दे सकता है?

जनप्रतिनिधि कानून के तहत, जेल या न्यायिक हिरासत में बंद व्यक्ति को वोट डालने का अधिकार नहीं है. जनप्रतिनिधि कानून की धारा 62(5) के अनुसार, जेल में बंद कोई भी व्यक्ति वोट नहीं डाल सकता, फिर चाहे वो हिरासत में हो या सजा काट रहा हो.

कौन नहीं लड़ सकता चुनाव?

अगर किसी आपराधिक मामले में दो साल या उससे ज्यादा की सजा होती है तो चुनाव लड़ने पर पाबंदी लग जाती है. ऐसे मामले में व्यक्ति छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता. ये छह साल सजा खत्म होने के बाद गिने जाएंगे. मसलन, किसी व्यक्ति को पांच साल की सजा हुई है तो वो 11 साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता.

Advertisement

जनप्रतिनिधि कानून की धारा 4 और 5 के मुताबिक, लोकसभा या विधानसभा का चुनाव लड़ने के लिए वोटर लिस्ट में नाम होना जरूरी है. अगर वोटर लिस्ट में नाम नहीं है तो चुनाव नहीं लड़ सकते.

संविधान के मुताबिक, भारत में कोई भी चुनाव लड़ने के लिए भारतीय नागरिक होना जरूरी है. इसके साथ ही 25 साल से ज्यादा उम्र होनी चाहिए. अगर ये दोनों पात्रता पूरी नहीं करते हैं तो चुनाव नहीं लड़ सकते.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement