ओडिशा हाईकोर्ट ने आईपीसी की धारा 498A के 'दुरुपयोग' पर अहम टिप्पणी की है. एक मामले की सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि धारा 498A का दुरुपयोग अक्सर पति के परिवार पर दबाव बनाने के लिए किया जाने लगा है.
दरअसल, एक महिला ने आईपीसी की धारा 498A के तहत केस दायर किया था, जिसमें उसने आरोप लगाया था कि उसका पति महिला के रिश्तेदार के नाम पर घरेलू हिंसा करता है.
हालांकि, मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पाया कि महिला ने पति पर जिस रिश्तेदार के नाम पर घरेलू हिंसा करने का आरोप लगाया है, वो उस घर में रहती ही नहीं है. लिहाजा कोर्ट ने इस केस को खारिज कर दिया. साथ ही ये भी टिप्पणी की कई बार महिलाओं ने पति के परिवार पर दबाव बनाने के लिए धारा 498A का गलत इस्तेमाल किया है.
क्या है धारा 498A?
अगर किसी शादीशुदा महिला पर उसके पति या उसके ससुराल वालों की ओर से किसी तरह की 'क्रूरता' की जा रही है तो आईपीसी की धारा 498A के तहत ये अपराध के दायरे में आता है.
क्रूरता, शारीरिक और मानसिक दोनों तरह की हो सकती है. शारीरिक क्रूरता में महिला से मारपीट करना शामिल है. वहीं, मानसिक क्रूरता में उसे प्रताड़ित करना, ताने मारना, उसे तंग करना जैसे बर्ताव शामिल है.
इस धारा के तहत, दोषी पाए जाने पर तीन साल तक की जेल हो सकती है. इसके साथ ही दोषियों पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
क्या कहते हैं आंकड़े?
भारत में धारा 498A के तहत दर्ज होने वाले मामलों की संख्या सालाना बढ़ती जा रही है. हर साल महिलाओं के खिलाफ अपराध के जितने मामले दर्ज होते हैं, उनमें से 30% से ज्यादा धारा 498A के ही होते हैं.
नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक, 2021 में धारा 498A के तहत देशभर में 1.36 लाख से ज्यादा मामले दर्ज किए गए थे. जबकि, इससे एक साल पहले 2020 में 1.11 लाख मामले दर्ज किए गए थे.
वहीं, अगर धारा 498A के मामलों में कन्विक्शन रेट देखें तो सिर्फ 100 में से 17 केस ही ऐसे हैं जिनमें दोषी को सजा मिलती है.
2021 में अदालतों में धारा 498A के 25,158 मामलों में ट्रायल पूरा हुआ था. इनमें से 4,145 मामलों में ही आरोपी पर दोष साबित हुआ था. बाकी मामलों में या तो समझौता हो गया था या फिर आरोपी बरी हो गए थे.
पहले भी उठ चुके हैं दुरुपयोग पर सवाल
हालांकि, ये पहली बार नहीं है जब अदालत ने 498A के दुरुपयोग पर चिंता जाहिर की है. जुलाई 2017 में सुप्रीम कोर्ट ने 'दुरुपयोग' रोकने के लिए धारा 498A के तहत तुरंत गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. सुप्रीम कोर्ट ने निर्देश दिया था कि ऐसे मामलों में पहले जांच-पड़ताल की जाएगी कि महिला की शिकायत सही है या नहीं. ये काम एक समिति का होगा और इसकी रिपोर्ट आने के बाद ही पुलिस गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई कर सकती है.
हालांकि, एक साल बाद ही सितंबर 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने जुलाई 2017 के फैसले में सुधार कर दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समिति का गठन करना अनुचित है. कोर्ट का मानना था कि कोई समिति, पुलिस या अदालत जैसा काम कैसे कर सकती है.
इसके अलावा पिछले फैसले में ये भी था कि अगर समझौता हो गया है तो फिर निचली अदालत से भी 498A का केस खत्म हो सकता है. लेकिन 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि समझौते की स्थिति में 498A को सिर्फ हाईकोर्ट ही खत्म कर सकती है.
इतना ही नहीं, पिछले साल भी सुप्रीम कोर्ट ने धारा 498A के दुरुपयोग को लेकर टिप्पणी करते हुए कुछ निर्देश जारी किए थे. सुप्रीम कोर्ट ने कहा था, अगर किसी महिला के साथ क्रूरता हुई है तो क्रूरता करने वाले व्यक्तियों के बारे में भी बताना होगा.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि पीड़ित महिला को साफ बताना होगा कि किस समय, किस दिन, उसके साथ उसके पति और उसके ससुराल के किन लोगों ने किस तरह की क्रूरता की है. केवल ये कह देने से कि उसे परेशान किया जा रहा है, इससे धारा 498A का मामला नहीं बनता है.
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