गौतम नवलखा को इस वजह से चुकाने होंगे 1 करोड़ 64 लाख, जानें- क्या कोई भी आरोपी हाउस अरेस्ट का ऑप्शन चुन सकता है?

भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में आरोपी एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को सुप्रीम कोर्ट से झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट गौतम नवलखा को एनआईए को 1.64 करोड़ रुपये का बकाया जमा करने को कहा है. गौतम नवलखा से ये रकम हाउस अरेस्ट के लिए मांगी गई है. ऐसे में जानते हैं कि हाउस अरेस्ट होता क्या है? और क्या कोई भी आरोपी हाउस अरेस्ट की मांग कर सकता है या नहीं?

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एक्टिविस्ट गौतम नवलखा भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी हैं. एक्टिविस्ट गौतम नवलखा भीमा कोरेगांव मामले में आरोपी हैं.

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 4:42 PM IST

सुप्रीम कोर्ट से एक्टिविस्ट गौतम नवलखा को बड़ा झटका लगा है. सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा को एनआईए का 1.64 करोड़ रुपये का बकाया चुकाने को कहा है. ये बकाया गौतम नवलखा को हाउस अरेस्ट में रखने के दौरान खर्च हुई है.

उन्हें हाउस अरेस्ट में रखने के दौरान जो खर्चा आया, एनआईए ने उसे चुकाने की मांग की है. एनआईए की इस मांग पर सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस एमएम सुंदरेश और जस्टिस एसवीएन भट्टी की बेंच ने कहा, 'अगर आपने हाउस अरेस्ट की मांग की है तो इसका खर्च भी आपको ही उठाना होगा.'

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सुप्रीम कोर्ट ने कहा, 'अगर आपने इसकी मांग की है तो भुगतान भी आपको ही करना होगा. आप इससे बच नहीं सकते, क्योंकि हाउस अरेस्ट की मांग आपने ही की थी.' अब इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट में अगली सुनवाई 23 अप्रैल को होगी. 

गौतम नवलखा जनवरी 2018 में महाराष्ट्र के भीमा कोरेगांव में हुई हिंसा के मामले में आरोपी हैं. उन्हें अगस्त 2018 में गिरफ्तार किया गया था. नवंबर 2022 से नवलखा मुंबई में हाउस अरेस्ट में थे. 

बहरहाल किसी आरोपी को 'हाउस अरेस्ट' में रखने का कोई कानून नहीं है. मई 2021 में गौतम नवलखा की याचिका पर ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत अदालतें विशेष मामलो में हाउस अरेस्ट का आदेश दे सकती हैं.

हाउस अरेस्ट यानी क्या?

हाउस अरेस्ट में किसी आरोपी को उसके घर में ही रखा जाता है. उसके घर के बाहर चौबीसों घंटे पुलिस तैनात रहती है. इस दौरान आरोपी पर कई सारी पाबंदियां भी लगी होती हैं. हाउस अरेस्ट में आरोपी का घर ही जेल बन जाता है.

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हाउस अरेस्ट में कई सारी शर्तें होती हैं. नवंबर 2022 में जब सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा को हाउस अरेस्ट में रहने की इजाजत दी थी, तब कई सारी पाबंदियां भी लगाई गई थीं.

गौतम नवलखा मुंबई में 1BHK अपार्टमेंट में नजरबंद थे. इस दौरान पुलिस हमेशा उनके घर के बाहर रहती है. उनके कमरे के बाहर और घर के एंट्री-एग्जिट प्वॉइंट पर सीसीटीवी कैमरा लगाए गए थे. उन्हें सिर्फ वॉक करने के लिए घर से बाहर निकलने की अनुमति थी, लेकिन इस दौरान उनके साथ पुलिस रहती थी. वो किसी से बात भी नहीं कर सकते थे.

उन्हें दिन में एक बार सिर्फ 10 मिनट के लिए पुलिस की मौजूदगी में फोन कॉल करने की इजाजत थी. हालांकि, उन्हें टीवी देखने और अखबार पढ़ने की इजाजत थी. उनके परिवार के दो सदस्यों को भी हर हफ्ते तीन घंटे के लिए उनसे मिलने दिया जाता था.

हाउस अरेस्ट के नियम क्या हैं?

हमारे देश में हाउस अरेस्ट को 'प्रिवेन्टिव डिटेंशन' के रूप में मान्यता दी गई है. नेशनल सिक्योरिटी एक्ट की धारा 5 में इसे लेकर कुछ प्रावधान है. एनएसए की धारा 5 कहती है कि आरोपी व्यक्ति को जेल की बजाय किसी ऐसी जगह पर हिरासत में रखने पर विचार किया जा सकता है, जिसे सरकार सही समझती हो.

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मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस यूयू ललित और जस्टिस केएम जोसेफ की बेंच ने अपने फैसले में कहा था कि सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हिरासत को पुलिस हिरासत या न्यायिक हिरासत के रूप में समझा जाता है, लेकिन अदालतें चाहें तो कुछ विशेष मामलों में हाउस अरेस्ट का आदेश भी दे सकती हैं.

हाउस अरेस्ट की इजाजत कब?

सुप्रीम कोर्ट ने ये कहा था कि हाउस अरेस्ट का आदेश देने से पहले आरोपी की उम्र, सेहत, उसका बर्ताव और अपराध की प्रकृति जैसे पहलुओं को भी ध्यान में रखना होगा. 

10 नवंबर 2022 को जब सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा को हाउस अरेस्ट में रखने का आदेश दिया था, तब कहा था, 'वो 70 साल के बुजुर्ग व्यक्ति हैं. हमें नहीं पता कि वो कब तक जीवित रहेंगे. हम उन्हें जमानत पर रिहा नहीं कर रहे हैं. हम सिर्फ एक विकल्प के रूप में हाउस अरेस्ट की इजाजत दे रहे हैं.'

मई 2021 में अदालत ने कहा था कि हाउस अरेस्ट को बढ़ावा देने से जेलों में भीड़ को कम किया जा सकता है. साथ ही साथ जेलों में कैदियों पर होने वाले खर्च को भी कम किया जा सकता है.

उस फैसले में कोर्ट ने ये भी कहा था कि जेल में बढ़ती भीड़ को देखते हुए मजिस्ट्रेट या अदालतें आरोपी को सीआरपीसी की धारा 167 के तहत हाउस अरेस्ट की इजाजत दे सकती है. कोर्ट ने कहा था कि जेल में भीड़ बढ़ रही है, इसलिए यहां शायद अब खतरनाक कैदियों को ही रखा जाए.

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गौतम नवलखा कुछ समय तक मुंबई की जेल में भी बंद रहे थे. (फाइल फोटो-PTI)

हाउस अरेस्ट क्या जमानत की तरह है?

संविधान का अनुच्छेद 21 हर भारतीय नागरिक को स्वतंत्रता को मौलिक अधिकार देता है. कोई आरोपी जब जमानत याचिका दायर करता है, तो वो भी अनुच्छेद 21 के दायरे में आता है, क्योंकि हर भारतीय को स्वतंत्रता के साथ जीने का अधिकार है.

मई 2021 में सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि जमानत का अधिकार अनुच्छेद 21 के तहत एक मौलिक अधिकार है, क्योंकि ये स्वाभाविक रूप से स्वतंत्रता से जुड़ा हुआ है.

हालांकि, सुप्रीम कोर्ट के फैसले में ये भी साफ किया गया था कि जमानत और हाउस अरेस्ट, दोनों अलग-अलग हैं. सरकार ने तर्क दिया था कि किसी आरोपी को हाउस अरेस्ट की इजाजत देना, उसे जमानत पर रिहा करने जैसा ही है. 

इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हाउस अरेस्ट किसी आरोपी की स्वतंत्रता की गारंटी नहीं है, बल्कि स्वतंत्रता पर लगे प्रतिबंधों के कारण ही उसे हिरासत में रखा गया था. हाउस अरेस्ट सिर्फ पुलिस कस्टडी से अलग है. इसलिए अगर सीआरपीसी की धारा 167 के तहत, किसी आरोपी को हाउस अरेस्ट की अनुमति मिलती है तो वो भी न्यायिक हिरासत की ही तरह है.

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क्या आरोपी हाउस अरेस्ट की मांग कर सकता है?

सीआरपीसी की धारा 41 के तहत, संज्ञेय अपराधों के मामले में पुलिस किसी भी व्यक्ति को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है. हालांकि, सीआरपीसी की धारा 57 के अनुसार, गिरफ्तारी के 24 घंटे के भीतर आरोपी को मजिस्ट्रेट के सामने पेश करना जरूरी है.

सीआरपीसी की धारा 167 के तहत, मजिस्ट्रेट आरोपी को ज्यादा से ज्यादा 15 दिन की पुलिस कस्टडी में भेजने का आदेश दे सकते हैं. इसके बाद आरोपी को न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है. हालांकि, यूएपीए के मामलों में कस्टडी 30 दिन तक की होती है.

धारा 167 (2) के तहत, आरोपी अपनी जमानत के लिए याचिका दायर कर सकता है. अब ये कोर्ट पर निर्भर करता है कि वो आरोपी को जमानत देती है या हिरासत में भेजती है. 

ये कहीं भी साफ नहीं है कि आरोपी खुद से हाउस अरेस्ट की मांग कर सकता है या नहीं? किसी आरोपी को हाउस अरेस्ट में भेजना है या नहीं, ये अदालत के विवेक पर निर्भर करता है. हालांकि, जैसा कि मई 2021 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया था कि कुछ मामलों में अदालतें चाहें तो धारा 167 के तहत हाउस अरेस्ट का आदेश जारी कर सकती हैं.

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हाउस अरेस्ट में क्या खर्चा खुद देना होता है?

जेल में बंद कैदियों की सुरक्षा और बाकी चीजों पर हर साल करोड़ों रुपये का खर्चा आता है. इसलिए जब किसी आरोपी को हाउस अरेस्ट में भेजा जाता है, तब उसका खर्चा उठाने की जिम्मेदारी भी आरोपी की ही होती है.

नवंबर 2022 में जब सुप्रीम कोर्ट ने गौतम नवलखा को हाउस अरेस्ट में भेजने का आदेश दिया था, तब अदालत ने उन्हें उनकी सुरक्षा तैनात करने के लिए 2.4 लाख रुपये जमा कराने को कहा था. इसके बाद अदालत ने उन्हें 8 लाख रुपये और जमा करने को कहा था.

इसके साथ ही कोर्ट ने उन्हें ये भी आदेश दिया था कि उन्हें अपने घर में सीसीटीवी कैमरा अपने खर्चे पर लगवाने होंगे. हालांकि, कोर्ट ने ये भी कहा था कि अगर वो इस मामले में बरी हो जाते हैं तो ये पैसा लौटा दिया जाएगा.

किस मामले में आरोपी हैं गौतम नवलखा?

1 जनवरी 2018 को भीमा कोरेगांव युद्ध की 200वीं वर्षगांठ पर हिंसा भड़क गई थी. पुलिस के मुताबिक, एक दिन पहले एल्गार परिषद के एक कार्यक्रम में भड़काऊ भाषणबाजी हुई थी, जिससे ये हिंसा भड़की थी. इस मामले में एल्गार परिषद से जुड़े गौतम नवलेखा समेत 16 एक्टिविस्ट को गिरफ्तार किया गया था. 

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