कनाडा में भारत के बाद सबसे बड़ा सिख समुदाय है. ऐसे में होना तो ये चाहिए था कि दोनों देशों के रिश्ते और मजबूत होते, लेकिन खालिस्तानों को लेकर मौजूदा कनाडाई सरकार के नरम रवैए ने रिश्ते में खटास ला दी. खालिस्तानी लगातार भारत को तोड़ने की कोशिश कर रहे हैं, जबकि ट्रूडो सरकार उन्हें समर्थन दे रही है. कूटनीतिक स्तर पर दोनों ताकतवर देशों का एक दूसरे के टॉप डिप्लोमेट्स को हटाना काफी बड़ा कदम माना जा रहा है.
कनाडा के पास कितनी मिलिट्री
कनाडा को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे मजबूत देशों का साथ मिला हुआ है, यही वजह है कि उसने कभी अपनी सैन्य ताकत पर खास खर्च नहीं किया. दोनों ही वर्ल्ड वॉर के दौरान कई उतार-चढ़ाव से गुजरने के बाद आखिरकार 1968 में जो फोर्स बनी, उसे कनाडियन आर्म्ड फोर्स कहा गया. बाकी देशों की तरह इसके भी 3 हिस्से हैं, जो जमीन, पानी और हवा में लड़ने के लिए प्रशिक्षित हैं.
आर्मी की ताकत का अंदाजा लगाने वाले ग्लोबल फायरपावर इंडेक्स 2023 के अनुसार, सैन्य ताकत के मामले में भारत दुनिया में चौथे स्थान पर है, जबकि कनाडा की आर्मी 20वीं सबसे बड़ी आर्मी है.
हमारे पास करीब 1.4 मिलियन सैनिक हैं. इसकी तुलना में कनाडा में केवल साढ़े 71 हजार सोल्जर्स हैं. इसमें भी सिर्फ 23 हजार फुल टाइम सैनिक हैं, जबकि बाकी जरूरत पड़ने पर काम करते हैं. ये डेटा कनाडाई सरकार खुद देती है.
नहीं मिल रहे भर्ती के लिए लोग
भारत अपनी सेना पर इस साल लगभग 69 बिलियन डॉलर खर्च कर रहा है, जबकि कनाडा की सरकार अपनी जीडीपी का काफी छोटा हिस्सा लगभग 36.7 बिलियन डॉलर सैन्य खर्चों पर देती है. इस देश के साथ एक दिक्कत ये भी है कि यहां सेना में भर्ती के लिए लोग नहीं मिल रहे. यहां तक कि ट्रूडो सरकार ने पिछले साल गैर-कनाडाई लोगों से भी मिलिट्री में भर्ती की अपील की थी. जो भी युवा 10 सालों से कनाडा में हैं, वे सेना में भर्ती के लिए आवेदन कर सकते हैं. इसी से अंदाजा लगा सकते हैं कि सैन्य ताकत के मामले में कनाडा भारत की तुलना में कितने पीछे है.
परमाणु ताकत के लिए नाटो के भरोसे है कनाडा
परमाणु हथियारों से भी किसी देश की ताकत का अंदाजा लगता है. भारत के पास एडवांस न्यूक्लियर वेपन हैं, जबकि कनाडा में अस्सी के दशक से इस दिशा में कोई काम नहीं हुआ. कोल्ड वॉर के दौरान नाटो की संधि के तहत परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर कर दिया. इस नियम के तहत कनाडा जैसा विकसित देश भी घातक वेपन्स के बगैर रह रहा है. संधि में ये जिक्र है कि अगर कनाडा पर कोई खतरा होगा तो बाकी परमाणु शक्ति संपन्न देश उसकी मदद करेंगे.
कूटनीति के मामले में कौन कहां पर
सैन्य पावर के साथ-साथ डिप्लोमेटिक ताकत के मामले में भी कनाडा कुछ पीछे हो चुका. अमीर देश होने की वजह से पहले इसके पास अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस और जापान जैसे देशों का साथ था. लेकिन अब केमिस्ट्री कुछ बदल चुकी है, जिसकी झलक भारत में G20 के दौरान भी दिखी. खालिस्तानी मुद्दे पर भारत ने वहां के पीएम ट्रूडो को घेरे रखा. बाकी देश इसपर चुप रहकर एक तरह से मेजबान भारत का सपोर्ट करते रहे. तो इस तरह से देखा जाए तो डिप्लोमेटिक फ्रंट पर भी कनाडा कुछ कमजोर पड़ा हुआ है.
क्या अकेले युद्ध जीत सकता है कनाडा
युद्ध का इतिहास देखें तो भी कनाडा उतना मजबूत नहीं दिखेगा. भारत जहां अपने बूते कई जंग जीत चुका, वहीं कनाडा ने ब्रिटेन की सेना के साथ मिलकर ही लड़ाइयां कीं. कई पीस मिशन्स के तहत वो अलग-अलग देशों में अमेरिका के काउंटर-पार्ट की तरह काम करता रहा. मतलब देखें तो इस देश का मामला उस साइड हीरो की तरह है, जिसकी फिल्म किसी न किसी वजह से हिट हो जाए और वो खुद को सफल मान बैठे.
वैसे तो आमतौर पर उन्हीं देशों के बीच युद्ध होता है, जिनकी सीमाएं साझा हों. लेकिन एक्सट्रीम हालातों में दूर-दराज के देश भी आपस में लड़ पड़ते हैं. भारत और कनाडा के मामले में अगर ऐसा हुआ, जिसकी संभावना बहुत कम है, तो भारत उसपर हावी रहेगा, जब तक कि कनाडा को बाहरी मदद न मिले. जैसे भारत की तरक्की से परेशान देश कनाडा के मददगार हो सकते हैं.
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