लता मंगेशकर आज से लगभग 50 साल पहले ही स्टारडम हासिल कर चुकी थीं. 41 साल पहले इंडिया टुडे पत्रिका ने लता जी की जिंदगी पर कवर स्टोरी थी और उन्हें Incredible Singing Machine की उपमा से नवाजा था. इंडिया टुडे के इस संस्करण में लता के जीवन के कई अनछुए पहलू सामने आए थे.
लता मंगेशकर नहीं रहीं तो अब उनकी जिंदगी से जुड़ी कहानियां हैं. अब किताबों-पत्रिकाओं में लता के वो किस्से और घटनाएं हैं जिससे मिलकर 9 दशकों में लता मंगेशकर की शख्सियत बनी है. आज से ठीक 41 साल पहले इंडिया टुडे पत्रिका ने लता मंगेशकर की जिंदगी पर कवर स्टोरी की थी और सिंगिंग लेजेंड के मन में उतरने की कोशिश भी की थी.
आज जब सफर थम गया है तो अतीत के उन पन्नों को पलटते हैं
लता मंगेशकर का बचपन संघर्षों में गुजरा. 1942 में जब उनके पिता दीनानाथ मंगेशकर की मृत्यु हुई तो इसके मात्र 8 दिन बाद लता मंगेशकर एक मराठी फिल्म Pahili Manglagaw में काम करने गईं. हालात ही ऐसे थे. 13 साल की लता को इस फिल्म में अभिनेत्री की बहन का रोल मिला, इस फिल्म में उन्हें गाना भी गाना था.
Lata Mangeshkar- The Incredible Singing Machine
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घर में खाने को कुछ नहीं था
इंडिया टुडे में छपी इस स्टोरी में लता ने कहा था, "मुझे मेकअप करने से नफरत थी; मुझे रोशनी की चकाचौंध में खड़े होने में दिक्कत थी. लेकिन मेरे पास च्वाइस कहां थी." जिस दिन वो अभिनेत्री नंदा के पिता की फिल्म में काम करने गईं उस दिन उनके घर में खाने को कुछ नहीं था.
वीडियो एडिटर ने काट दिया था पहला गाना
उनका संघर्ष वास्तव में एक महीने पहले शुरू हुआ था जब परिवार के एक मित्र सदाशिवराव नेवरेकर ने उन्हें 'किट्टी नाक' नामक फिल्म में पार्श्व गायन का पहला मौका दिया था. लता ने उन दिनों को याद करते हुए कहा था, "मेरा पहला पार्श्व गीत वीडियो एडिटर की मेज पर काट दिया गया था".
साल 1981 के फरवरी महीने में आए इंडिया टुडे के इस अंक में लता ने अपने संघर्षों को याद किया था. मराठी फिल्म में लता का काम मास्टर विनायक को पसंद आया और उन्हें 60 रुपये की मासिक पगार पर रख लिया गया था जो बाद में बढ़कर 350 रुपये तक हो गया था. 1945 तक लता पुणे से मुंबई आ गई थीं, अपने सपनों की तलाश में. यहां उन्होंने नाना चौक पर 2 कमरों का एक मकान लिया, इसके लिए उन्हें 25 किराया देना पड़ता था.
लता की आवाज को खारिज कर दिया गया
1947 तक लता पार्श्व गायिका के रूप में स्थापित हो चुकी थीं. इसी साल लता ने फिल्म 'मजबूर' के लिए गाना गया था. इसकी भी कहानी गजब है. एक बार लता को उस वक्त के मशहूर संगीतकार गुलाम हैदर, सुबोध मुखर्जी के पास लेकर पहुंचे तो सुबोध ने लता की आवाज को खारिज कर दिया. तब सुबोध मुखर्जी को फिल्मीस्तान मुंबई के शो बिजनेस का मक्का माना जाता था.
सुबोध मुखर्जी ने लता के आवाज को यह कहते हुए खारिज कर दिया कि उनकी आवाज 40 के दशक की शानदार अदाकारा कामिनी कौशल से मेल नहीं खाती थी. तब गुलाम हैदर ने सुबोध मुखर्जी से कहा 'मैं आज कह देता हूं यह बच्ची जल्द ही नूरजहां समेत सभी को पीछे छोड़ देगी. '
गोरेगांव स्टेशन पर मूसलाधार बारिश और लता की आवाज
उसी दिन गुलाम हैदर लता को लेकर बॉम्बे टॉकीज जा रहे थे. गोरेगांव स्टेशन पर मूसलाधार बारिश हो रही थी. हैदर ने लता को वही गाना सुनाने को कहा जो उन्होंने सुबोध को सुनाया था. बुलबलो मत रो...लता गाने लगीं और गुलाम हैदर साहब 555 सिगरेट के एक पैकेट को देखकर समय गुजारने लगे. ट्रेनें अंदर-बाहर सीटी बजाती रहीं. लोगों का शोर... टिन शेड पर बारिश हो रही थी, लेकिन हैदर साहब गाने में डूबे हुए थे. गाना खत्म होने के बाद उन्होंने एक शब्द भी नहीं कहा. एक घंटे बाद, लता बॉम्बे टॉकीज में वही गाना गा रही थीं, उन्हें फिल्म मजबूर के लिए गाने के लिए चुन लिया गया था. "उसके बाद से मैंने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा," लता ने गर्व के साथ शरमाते हुए कहा था.
क्या आप नई गायिकाओं को उभरने नहीं देतीं?
स्टारडम के साथ लता पर कई आरोप लगे. कहा गया कि वे अपनी समकालीन गायिकाओं को उभरने नहीं देतीं. रुना लैला, वानी जयराम, सुलक्षणा पंडित, प्रीति सागर जैसी गायिकाओं ने दबे जुबान से लता के बारे अपने अनुभव साझा किए. लता ने इन आरोपों को अपने तरीके से जवाब दिया.
इंडिया टुडे के साथ इंटरव्यू में जब उनसे पूछा गया था कि क्या वे नई गायिकाओं को उभरने नहीं देती हैं, उन्होंने कहा था, "मैंने किसे रोका है? वानी जयराम के लिए मैंने कई म्यूजिक डायरेक्टर को सिफारिशी पत्र भेजे, आपको पता होना चाहिए कि मेरे शब्दों में वजन है..." लता ने कहा कि उन्होंने बांग्लादेश की गायिका रुना लैला को काफी मदद की. रुना लैला वही गायिका हैं जिनका गाया दमादम मस्त कलंदर काफी हिट रहा है. बाद में रुना लैला को बंबई छोड़ना पड़ा.
विदेश दौरे में दिखता था लता का अलग रूप
1981 में लता की कहानी जब इंडिया टुडे में छपी थी तब उनका काफी वक्त यूरोप और अमेरिका में गुजरता था. यहां लता नए अंदाज में दिखतीं. न्यूयॉर्क के बॉम्बे रेस्तरां में खाना खाने जातीं, साड़ी पहनकर कार चलातीं और खुलकर जीतीं. दिल्ली की रहने वाली शांता आनंद, जिनकी शादी शिकागो में हुई है, ने इसकी पुष्टि की है. उन्होंने लता को इस अंदाज में देखा है.
कौन से गाने लता को पसंद हैं?
इस इंटरव्यू में लता ने अपने पसंद के 10 गाने बताये थे. ये गाने हैं-
1. आएगा आनेवाला (महल 1949)
2. ये जिंदगी उसी की है (अनारकली, 1953)
3. आजा रे परदेसी (मधुमती, 1958)
4. ऐ दिलरुबा (रुस्तम सोहराब, 1963)
5. कहीं दीप जले कही दिल (बीस साल बाद, 1962)
6. लग जा गले (वो कौन थी, 1964)
7. नैना बरसे (वो कौन थी, 1964)
8. वो चुप रहे तो मेरे (जहां आरा, 1964)
9. तुम ना जाने किस जहां में खो गए (सजा, 1951)
10. जीवन डोर तुम्ही संग बंधी (सती सावित्री, 1964)
लता अब नहीं हैं, लेकिन लता की कहानियां उनके संघर्ष, उनके सफर और उनके शिखर पर पहुंचने की सुरमयी दास्तान... पीढ़ी दर पीढ़ी के लिए मौजूद रहेंगी.
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