जमीनी हकीकत को दर्शाती है 'चौरंगा'

फिल्म को कई अवार्ड्स से भी सम्मानित किया गया है. आखिरकार 'चौरंगा' अब रिलीज होने के लिए तैयार है, आइये बिहार की पृष्टभूमि पर सच्ची घटनाओं पर आधारित इस फिल्म की समीक्षा करते हैं.

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'एडल्ट' हैं तो 'चौरंगा' जरूर देखें. 'एडल्ट' हैं तो 'चौरंगा' जरूर देखें.

अकरम शकील

  • मुंबई,
  • 06 जनवरी 2016,
  • अपडेटेड 3:59 PM IST

फिल्म का नाम: चौरंगा

डायरेक्टर: बिकास रंजन मिश्रा

स्टार कास्ट: संजय सूरी, तनिष्ठा चटर्जी, सोहम मैत्र, धृतिमन चटर्जी, स्वातिलेखा सेनगुप्ता ,अर्पिता पाल, अंशुमान झा, इना साहा

अवधि: 1 घंटा 26 मिनट

सर्टिफिकेट: A

रेटिंग: 3.5 स्टार

बिकास मिश्रा, एक स्क्रीनराइटर ,क्रिटिक के साथ साथ अब फिल्म डायरेक्टर भी बन चुके हैं और उन्होंने अपनी पहली फिल्म 'चौरंगा' को कुछ साल पहले ही डायरेक्ट किया था. जिसे देश विदेश के अलग अलग फिल्म समारोहों में प्रदर्शित भी किया गया और दर्शकों ने फिल्म की जमकर सराहना भी की. फिल्म को कई अवार्ड्स से भी सम्मानित किया गया है. आखिरकार 'चौरंगा' अब रिलीज होने के लिए तैयार है, आइये बिहार की पृष्टभूमि पर सच्ची घटनाओं पर आधारित इस फिल्म की समीक्षा करते हैं.

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कहानी
यह कहानी बिहार के एक गाँव के 14 साल के एक दलित वर्ग के लड़के संतु (सोहम मैत्र) की है जो गाँव में अपने पालतू सूअर की देख भाल करता रहता है लेकिन उसकी तमन्ना है की वो अपने बड़े भाई बजरंगी (रिद्धि सेन) के साथ स्कूल जाकर पढ़ाई करे. संतु रोजाना एक जामुन के पेड़ पर छुपकर वहाँ से स्कूटर पर गुजरने वाली मोना (इना साहा) को निहारता है जिसे वो मन ही मन प्यार भी करता है. बजरंगी और संतु की माँ धनिया (तनिष्ठा चटर्जी) उस गाँव के दबंग धवल (संजय सूरी) के घर काम करती है और धवल उसके बड़े बेटे की पढ़ाई का खर्च उठाता है जिसके बदले में धनिया के साथ शारीरिक सम्बन्ध भी बनाता रहता है. फिर कहानी आगे बढ़ती है और जब बजरंगी छुट्टियों में घर आता है तो अपने भाई की भावनाओं के मद्देनजर उसे मोना से प्यार का इजहार करने के लिए कहता है. फिर अलग अलग घटनाओं के बीच फिल्म में अनोखे मोड़ आते हैं, और आखिरकार क्या होता है, उसे जानने के लिए आपको थिएटर तक जाना होगा.

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स्क्रिप्ट
फिल्म की स्क्रिप्ट उस दौर में बेस्ड है जब समाज में जाति विभाजन था, दलित वर्ग के लोगों को मंदिर में नहीं जाने दिया जाता था, घर में दूर बैठाया जाता था और साथ ही फिल्म में कई ऐसे पल आते हैं जब आपको इस विभाजन से घृणा भी होने लगती है जैसे एक सीन के दौरान धवल का पैर छूने के लिए कहे जाने पर संतु इंकार कर देता है. फिल्म का बैकड्रॉप और शूटिंग करने का ढंग भी कहानी के साथ बखूब जाता है. रामानुज दत्ता की सिनेमेटोग्राफी कमाल की है जो आपको कहानी के साथ बाँध कर रखती है और सोचने पर विवश कर देती है.

अभिनय
अभिनय के मामले में दोनों युवा एक्टर्स रिद्धि सेन और सोहम मैत्र ने सराहनीय काम किया है, संजय सूरी ने दबंग किरदार निभाने में कोई कमी नहीं छोड़ी है और मांझी हुयी अदाकारा तनिष्ठा चटर्जी ने भी उम्दा काम किया है. स्क्रीन पर एक बेबस माँ का किरदार तनिष्ठा ने सहज तरीके से निभाया है. बाकी कलाकारों जैसे धृतिमन चटर्जी, स्वातिलेखा सेनगुप्ता ,अर्पिता पाल, अंशुमान झा ने भी किरदार के हिसाब से अच्छा काम किया है.

संगीत
फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर सीन के हिसाब से सटीक रखा गया है. गाँव के अलग अलग पहर के मद्देनजर ही संगीत, कहानी के साथ घुल मिल जाता है.

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क्यों देखें
अगर आपको सच्ची घटनाओं और जमीनी हकीकत पर आधारित कहानियां पसंद हैं, फिल्म समारोहों में भारत के साथ साथ अलग अलग देशों के द्वारा सम्मानित की जाने वाली फिल्में देखना पसंद है, और यदि आप 'एडल्ट' हैं तो आप 'चौरंगा' जरूर देखें.

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