गैंग्स ऑफ वासेपुर, बदलापुर, डेढ़ इश्किया, महारानी 2 जैसी फिल्मों में अपनी दमदार परफॉर्मेंस के बाद हुमा कुरैशी डबल एक्सएल में एक नए अंदाज में नजर आ रही हैं. इस फिल्म में एक्टिंग के साथ-साथ हुमा ने बतौर प्रोड्यूसर भी अपनी नई जर्नी की शुरुआत की है. फिल्म, करियर, बॉलीवुड आदि कई मुद्दों पर हुमा हमसे बातचीत करती हैं.
सवाल: बॉडी शेमिंग पर समय दर समय फिल्में बनती रही हैं. ऐसे में डबल एक्सएल में क्या अलग है?
हुमा: मुझे लगा कि ऐसी कहानियों के पीछे तो हाथ धोकर पड़ जाना चाहिए क्योंकि ऐसा मौका बहुत कम मिलता है. हमने इसे बनाने और प्रमोट करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. इस फिल्म से हर लड़का-लड़की खुद को रिलेट करेंगे. हर नजरिये से फिल्म अलग है. देखिए हमारी सोसायटी में कहा जाता है कि लड़कियां ऐसी होनी चाहिए या एक्ट्रेस का ढांचा ऐसा होता है, जो भी फिल्म और इंडस्ट्री की लड़कियों को लेकर धारणाए हैं, यह फिल्म उनको चैलेंज करती है. हम यहां फिल्म के नजरिए एक सेंसेटिव मेसेज भी एंटरटेनमेंट अंदाज में पेश करने जा रहे हैं. मस्ती मजाक में हंसते खेलते दो लड़कियां कैसे मिलती हैं और एक दूसरे का सहारा बनती है. XL तो लड़कियां हैं लेकिन जब दोनों मिलती हैं, तो डबल धमाका बन जाती हैं.
सवाल: कोई ऐसा सीन जो एकदम पर्सनल लाइफ से रिलेट होता हो?
हुमा: ट्रेलर के दौरान भी एक मोमेंट है, वो मेरी निजी जिंदगी से काफी हद तक जुड़ा है. जब मैंने करियर शुरू किया था, तो उस वक्त कोई गाइड करने वाला नहीं था. मुझे उन दिनों कास्टिंग एजेंट्स के मैसेज आते थे, जिसमें वो वेस्टर्न ड्रेस, इंडियन ड्रेस गेटअप में ऑडिशन के लिए बुलाते थे. मैं आराम नगर ऑडिशन के लिए जाती थी. कई बार ऐसा हुआ कि मुझे देखते ही मुंह पर डायरेक्ट कह दिया नॉट फिट. मैं समझ नहीं पाती थी कि आखिर क्यों कहा, मेरी एक्टिंग तो देखी भी नहीं. तब समझ आया कि मेरा वजन बीच में आता था.
सवाल: दो एक्ट्रेसेज का एक साथ स्क्रीन और ऑफ स्क्रीन इतनी बॉन्डिंग वाकई नई-सी लगती है?
हुमा: ये जो कहावत है न, लड़कियां ही लड़कियों की दुश्मन होती है, हम दोनों पर कहीं भी फिट नहीं बैठती हैं. यह फिल्मों में भी दिखाया जाता है, जो कि बहुत गलत है. सच कहूं, तो हमारा बेस्ट रिलेशन मां और बहन के साथ ही बनता है. ये हमें प्रोटेक्ट करती हैं. हमारा सपोर्ट करती हैं. वहीं लड़के जब झगड़ते हैं, तो कभी ऐसी बातें सामने नहीं आती हैं. लड़कियों में हमेशा ताना कसा जाता है. पोस्ट पर जब गर्ल्स के ऐसे में कमेंट्स देखती हूं, तो समझ आता है कि उनके लिए दुनिया बहुत कड़वी रही होंगी और शायद यही वजह है कि वो अपना खुन्नस हम पर निकालती हैं, जिसपर मैं तो बिलकुल भी ध्यान नहीं देती हूं.
सवाल: इस फिल्म से आपका टेकअवे क्या रहा?
हुमा: मेरा टेकअवे का तो नहीं पता लेकिन मैंने सोनाक्षी को बहुत कुछ सिखाया है. सारी गलत चीजें. टाइम पर कैसे आते हैं (हंसते हुए). मैंने अपना काम ईमानदारी से निभाया है. जोक्स अपार्ट, मैं तो इस फिल्म में इतनी इनवॉल्व हो गई थी कि रोजाना खाती जा रही थी. एक वक्त ऐसा आया कि मुदस्सर ने आकर मुझसे कहा कि भई आप मोटे होने की कोशिश मत करो, क्योंकि आप मोटे हो चुके हो. अब रहम कर लो. सोनाक्षी ने तो बहुत वेट बढ़ाया है लेकिन मैं तो पागल हो गई थी. मुझे लग रहा था कि पैसे भी मिल रहे हैं और खाना भी मिल रहा है और क्या चाहिए बस फैल जाओ. हालांकि ये रिस्क मैं शायद आगे किसी फिल्म के लिए न उठाऊं. मैं हमेशा देखती थी कि बड़े एक्टर्स अपनी फिल्मों में बॉडी ट्रांसफॉर्म करते थे, तो देखकर मैं खुश हो जाती थी. मैं वो जर्नी से गुजरना चाहती थी. इतना तो पता था कि इसके लिए मुझे तारीफ ही मिलेगी.
सवाल: कहा जाता है कि एक्ट्रेसेज कभी दोस्त नहीं होती हैं. आप दोनों इस मिथ को तोड़ती नजर आ रही हैं?
हुमा: अरे नहीं, हम तो एक दूसरे को बर्दाश्त नहीं कर पाते हैं. ये सब तो नाटक चल रहा है, फिल्म प्रमोशन के लिए हम साथ हैं. हमें पैसे मिले हैं कि दुनिया को दिखाओ कि तुम एक दूसरे के बहुत करीबी दोस्त हो. अरे मैं मजाक रही हूं, नहीं मैं मानती हूं कि एक्ट्रेसेज एक दूसरे की दोस्ती होती हैं. रियल लाइफ में भी असल में कई दोस्त हैं. कई बार तो ऐसा हुआ है कि बाज दफे मुझे और सोना को एक ही फिल्म ऑफर की गई है. जिसे कभी उन्होंने कर लिया और कभी मैंने. हम तो इन चीजों को खुशी-खुशी से डिसकस करते हैं. ऐसा तो नहीं है न कि आपका बहुत कम काम है और आप दूसरे का काम खा जाओ. अब ऐसा नहीं होता है. ये बहुत ओल्ड फैशन विचार है. यह बहुत गलत सोच है यहां हर किसी के लिए काम है. देखिए आपकी किस्मत का जो काम है, वो आपको ही मिलता है.
सवाल: सोनाक्षी सिन्हा स्टार किड हैं और आप आउटसाइडर हैं. दोनों की अलग दुनिया है, ऐसे में एक दूसरे को कैसे कॉम्प्लीमेंट किया है?
हुमा: सच कहूं, सोना भी इससे सहमत होंगी. उससे ज्यादा मैं फिल्मी हूं. कई बार तो मुझे उसे फिल्मी ट्रेनिंग देनी होती थी. मुझे काफी स्ट्रेंज और साथ खूबसूरत भी लगता था कि कोई कैसे इंडस्ट्री फैमिली से होने के बावजूद नॉन फिल्मी हो सकता है. हम तो ऐसे लोग हैं, जहां मैं पापा रेस्त्रां चलाते हैं और मां हाउसवाइफ है, और हमने फिल्म थिएटर्स में जाकर देखी है. हम इतने फिल्मी होते थे, बचपन से ही हमारे खून में सिनेमा बसने लग जाता था. हमारे लिए तो सिनेमाई दुनिया ही अलग रही है. इसलिए मैं तो पूरी फिल्मी हूं. जब सोना आकर मुझसे पूछती थी कि ये कौन है और कौन सी फिल्म थी, तो मैं बोलती क्या यार, शर्म कर ले.
सवाल: प्रोड्यूसर के तौर पर आप एक नई जर्नी की शुरूआत करने जा रही हैं. कुछ बदलाव महसूस करती हैं.
हुमा: हां, यह मेरे लिए बिलकुल नया सा है. मैं इस दौरान काफी कुछ सीख रही हूं. मैं जिनके साथ जुड़ी हूं, वे लोग अच्छे हैं. मेरी यही कोशिश है कि हम एंटरटेनिंग, फन लविंग फिल्मों पर फोकस करें. मैं अलग तरह का कॉन्टेंट लोगों के सामने लेकर आऊं. मेरी जो जर्नी रही है, मैंने भी बतौर एक्टर कोशिश की है कि अलग-अलग तरह की फिल्में करती जाऊं. मैंने एक्स्पेरिमेंट किया है और चाहूंगी बतौर प्रोड्यूसर भी उस तरह के एक्स्पेरिमेंट करती रही हूं.
सवाल: लगातार फिल्में फ्लॉप हो रही हैं. आपको क्या लगता है कमी रह जाती है?
हुमा: ये तो किसी को पता नहीं चल पा रहा है. पिछले दो सालों में लोगों के नजरिये में जबरदस्त बदलाव आया है. दर्शकों का टेस्ट बदला है. लेकिन ऐसा नहीं है कि थिएटर्स बंद हो गए हैं. थिएटर्स तो चलते रहेंगे. हां, अभी वापस से फॉर्म में आने में समय लगेगा. वो कहते हैं न इंजन जब बंद होता है, तो उसमें पेट्रोल डालकर दोबारा चलाते हैं. बस उसी का इंतजार है. मुझे दुख भी होता है कि फिल्में नहीं चलती हैं, तो लोग शोक भरे मेसेज लिखना शुरू कर देते हैं कि फिल्म इंडस्ट्री बंद हो गई. ये फिल्में जो रिलीज हुई हैं, वो कोरोना के टाइम पर मुश्किल से बनी फिल्मे हैं. इतनी मुश्किलातों के बावजूद वो उन्हें थिएटर पर लेकर आ रहे हैं, तो हम बजाए सराहना के उसकी धज्जी उड़ाने में लगे हुए हैं. आप देखें, तो पूरे वर्ल्ड में चार से पांच फिल्में चली हैं. हर कोई एक ट्रांजिशन फेज से गुजर रहा है. हमें इंतजार करना चाहिए. देखिए हम ऑडियंस के लिए फिल्में बनाते हैं और उनका प्यार हमारे लिए हर तरह से मायने रखता है.
नेहा वर्मा