देश में ऐसे वक्त चुनाव हो रहे हैं, जब साल के सबसे गर्म दिनों की शुरुआत हो चुकी है. वोटर टर्नआउट में गिरावट और एक केंद्रीय मंत्री के निधन के लिए हीटवेव को जिम्मेदार माना जा रहा है. ज्यादातर लोग इसके पीछे जलवायु परिवर्तन को वजह मानते हैं. लेकिन आम वोटरों और राजनीतिक पार्टियों के लिए ये मुद्दा कितना अहम है?
मौसम वैज्ञानिकों ने बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश और कर्नाटक के कुछ हिस्सों के लिए हीटवेव की चेतावनी जारी की थी, जहां 26 अप्रैल को दूसरे फेज की वोटिंग हुई. आने वाले समय में और ज्यादा तापमान बढ़ने के आसार हैं.
वर्ल्ड बैंक के मुताबिक, भारत की 80 फीसदी आबादी ऐसे इलाकों में रहती है, जहां जलवायु परिवर्तन से जुड़ी आपदाओं का खतरा है. पिछले साल नवंबर में वर्ल्ड बैंक ने कहा था कि बढ़ता तापमान, बारिश के पैटर्न में बदलाव, ग्राउंडवाटर लेवल में गिरावट, पिघलते ग्लेशियर और समुद्री स्तर में गिरावट की वजह से आजीविका, खाद्य सुरक्षा और अर्थव्यवस्था के लिए बड़ा संकट खड़ा हो सकता है.
वर्ल्ड मीटियरोलॉजिकल ऑर्गनाइजेशन (WMO) की एक रिपोर्ट में दावा किया गया है भारत में 90 लाख से ज्यादा लोग जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभावों से पीड़ित हैं.
फर्स्ट टाइम वोटर्स के लिए कितना बड़ा मुद्दा?
पिछले साल Deloitte ने एक सर्वे किया था. इस सर्वे में दावा किया गया था कि भारत में 1.8 करोड़ से ज्यादा फर्स्ट टाइम वोटर्स के लिए जलवायु परिवर्तन तीसरा सबसे अहम मुद्दा था. लेकिन इसके बावजूद चुनावी अभियानों में इस मुद्दे को चर्चा नाममात्र के लिए भी नहीं होती दिखाई पड़ी है.
इंडिया टुडे/आजतक ने जलवायु परिवर्तन से जुड़ी नीतियों का आकलन करने के लिए दो प्रमुख राष्ट्रीय पार्टियां- बीजेपी और कांग्रेस के घोषणापत्र का विश्लेषण किया.
विश्लेषण में क्या सामने आया?
पर्यावरणीय क्षरण को लेकर 'जलवायु' शब्द कांग्रेस के घोषणापत्र में 10 बार दिखाई देता है. जबकि 'मोदी की गारंटी 2024' के नाम से जारी बीजेपी के घोषणापत्र में चार बार ही इसका इस्तेमाल हुआ है. हालांकि, कांग्रेस के न्याय पत्र में 'पर्यावरण, जलवायु परिवर्तन और आपदा प्रबंधन' को लेकर अलग से सेक्शन बना है.
बीजेपी का मकसद नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) जैसे इनिशिएटिव को मजबूत करने और जीरो कार्बन इमिशन हासिल करने का है. जबकि, कांग्रेस ने कई नई नीतियां लागू करने का वादा किया है.
दोनों ही पार्टियों के घोषणापत्र में कुछ बातें आम भी हैं. इनमें फॉरेस्ट कवर को बढ़ाना, कोस्टल इकोसिस्टम की रक्षा करना, ह्यूमन-एनिमल कॉन्फ्लिक्ट और वायु प्रदूषण को कम करना शामिल हैं.
बीजेपी के वादे...
बीजेपी के घोषणापत्र में 2070 तक जीरो कार्बन इमिशन की बात कही है. 2021 में COP26 में भारत ने इसे लेकर कमिटमेंट किया था.
इसके अलावा, बीजेपी ने क्लीन एनर्जी टेक्नोलॉजी के लिए वैश्विक स्तर पर सेंटर फॉर एक्सीलेंस और भारत को विंड, सोलर और ग्रीन हाइड्रोजन टेक्नोलॉजी के लिए ग्लोबल मैनुफैक्चरिंग हब के रूप में स्थापित करने का वादा किया है. बीजेपी सरकार ने हाल ही में ग्रीन क्रेडिट प्रोग्राम शुरू किया है, जो वाटर कन्सर्वेशन जैसे मुद्दों से जुड़ा है. बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में बांध निर्माण, अमृत सरोवर कंस्ट्रक्शन और बेसिन मैनेजमेंट को इंटीग्रेट करने का वादा किया गया है.
घोषणापत्र में 'मौसम' नाम से एक नेशनल एटमस्फरिक मिशन शुरू करने का वादा भी किया गया है, जिसका मकसद भारत को 'मौसम के लिए तैयार' और 'क्लाइमेट स्मार्ट' के लिए तैयार करना है.
कांग्रेस ने क्या वादे किए?
कांग्रेस भी 2070 तक जीरो कार्बन इमिशन के लक्ष्य को हासिल करने के लिए कमिटेड है. NCAP और ह्यूमन-एनिमल कॉन्फ्लिक्ट को कम करने जैसे कुछ वादे ऐसे हैं, जो बीजेपी ने भी किए हैं.
कांग्रेस ने एन्वायर्मेंट प्रोटेक्शन एंड क्लाइमेट चेंज अथॉरिटी और जलवायु को लेकर सरकारी और निजी क्षेत्र के साथ मिलकर काम करने के लिए ग्रीन ट्रांजिशन फंड की स्थापना करने के साथ-साथ 2013 के प्रोहिबिशन ऑफ द मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट को फिर से लागू करने का वादा भी किया गया है.
अमेरिका की तर्ज पर भारत में भी एक स्वतंत्र पर्यावरण संरक्षण एजेंसी की स्थापना करने का वादा भी किया गया है. इसके अलावा नेशनल एक्शन प्लान ऑन क्लाइमेट चेंज को शुरू करने की बात भी कांग्रेस ने की है. ग्रीन ट्रांजिशन फंड के अलावा ग्रीन न्यू डील इन्वेस्टमेंट प्रोग्राम शुरू करने का वादा भी किया गया है, जिससे नई नौकरियां पैदा होने का भी दावा किया गया है. कांग्रेस ने घोषणापत्र में पहाड़ी इलाकों में लैंडस्लाइड की समस्याओं को रोकने के लिए एक हाईलेवल कमेटी सेटअप करने का वादा भी किया है.
एक्सपर्ट का क्या है कहना?
हालांकि, जानकारों का कहना है कि ये सब जलवायु परिवर्तन से जुड़ी चिंताओं को दूर के लिए काफी नहीं हैं. मुंबई स्थित देबाश्री दास का कहना है कि एक फैशन मैग्जीन के सर्वे के मुताबिक, फैशन इंडस्ट्री से जुड़े 87% कपड़े लैंडफिल में डम्प हो जाते हैं. इस हिसाब से हर साल 4 करोड़ टन वजन के बराबर कपड़े लैंडफिल में चले जाते हैं. देबाश्री का कहना है कि इस कचरे को कम करने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है.
22 साल की क्लाइमेट एक्टिविस्ट पूर्णिमा साई को लगता है कि कागजों पर वादों के बावजूद जमीन पर बहुत कम काम किया जा रहा है. उन्होंने उत्तरकाशी के सुरंग हादसे का जिक्र करते हुए कहा कि इस बात का ध्यान रखना भी जरूरी है कि शहरी विकास का असर पर्यावरण पर न पड़े.
भारत को 2070 जीरो कार्बन इमिशन का टारगेट हासिल करना है तो पावर सेक्टर में सुधार करना जरूरी है. इसके लिए 2030 तक नॉन-फॉसिल एनर्जी को 500 गीगावाट तक लाना होगा. इसके अलावा 2030 तक ही एक अरब टन कार्बन उत्सर्जन को भी कम करना होगा.
ये इसलिए करना होगा, क्योंकि कार्बन उत्सर्जन में पावर सेक्टर की हिस्सेदारी लगभग 34 फीसदी है. हालांकि, अभी भी बिजली की ज्यादातर जरूरत कोयले से ही पूरी हो रही है. अब भी 75 फीसदी बिजली कोयले से ही बन रही है.
जेन-जी वोटरों के लिए ध्वनि प्रदूषण और प्रदूषण नियंत्रण सबसे बड़ी चिंता है, लेकिन उसके बावजूद पार्टियों के घोषणापत्र में इसे लेकर कुछ ठोस वादे नहीं किए गए हैं.
बिदिशा साहा