कुतुबुद्दीन-अशोक परमार: गुजरात मॉडल पर क्या सोचते हैं दंगों के दो सबसे बड़े ‘पोस्टर बॉय’?

गोधरा कांड और गुजरात दंगों की हिंसा में झुलसा गुजरात आज भी उस हिंसा की याद को भुला नहीं पा रहा है. 20 साल पहले हुए इस दंगे से जुड़ी दो तस्वीरें काफी चर्चा में रही थीं. तस्वीरों में दिखने वाले दो नाम थे अशोक परमार और कुतुबुद्दीन अंसारी.

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गुजरात दंगे से जुड़ी अशोक परमार और कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीरें चर्चित रहीं.   (आजतक) गुजरात दंगे से जुड़ी अशोक परमार और कुतुबुद्दीन अंसारी की तस्वीरें चर्चित रहीं. (आजतक)

सौरभ वक्तानिया

  • अहमदाबाद,
  • 23 नवंबर 2022,
  • अपडेटेड 1:07 PM IST

गोधरा कांड के बाद गुजरात दंगों में झुलस गया. 2002 का ये वाकया भारत की राजनीति का अहम मोड़ है. इस घटना के 20 साल गुजर चुके हैं. 2002 में जब ये हादसा हुआ तो 2 व्यक्तियों की तस्वीरें काफी चर्चित हुईं. इनमें से एक थे अशोक परमार और दूसरे थे कुतुबुद्दीन अंसारी. ये तस्वीरें अलग अलग स्थानों की थी, लेकिन इन तस्वीरों ने गुजरात दंगों की कहानी कह दी थी. इस तस्वीर में अशोक परमार के हाथों में तलवार है तो कुतुबुद्दीन अंसारी रोते हुए हाथ जोड़े नजर आ रहे हैं. 

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इस हिंसा के 20 साल गुजर चुके हैं. इतने लंबे समय के बाद अशोक परमार और कुतुबुद्दीन अंसारी की हालत कैसी है. राजनीति के मौजूदा दौर पर वो क्या सोचते हैं? गुजरात मॉडल पर उनका क्या सोचना है? पीएम मोदी और अरविंद केजरीवाल पर इनकी क्या राय है? इन तमाम सवालों का जवाब जानने के लिए आजतक ने इन दोनों से बात की. 

सड़क किनारे जूते-चप्पल सिलते हैं अशोक परमार

अशोक परमार आजकल अहमदाबाद में सड़क के किनारे जूते-चप्पल सिलते हैं. वे मौजूदा राजनीतिक व्यवस्था से बेहद नाराज हैं. सवाल पूछते ही फट पड़ते हैं. परमार का कहना है कि बीस साल में गरीबों की जिंदगी में कोई फर्क नहीं पड़ा है. राजनीति में बहुत फर्क पड़ा है. महंगाई की वजह से गरीबों की जिंदगी बेहद मुश्किल हो गई है. अशोक परमार ने कहा कि गुजरात में मेरा कोई फेवरेट नहीं है. न कांग्रेस, न बीजेपी.  

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अहमदाबाद में एक सड़क के किनारे अशोक परमार की दुकान (फोटो- आजतक)

दलितों, मुसलमानों और गरीबों के लिए फेल गुजरात मॉडल

अशोक परमार ने गुजरात मॉडल पर अपनी राय देते हुए कहा कि गुजरात मॉडल दलितों, मुसलमानों और गरीबों के लिए फेल है, बाकी लोगों के लिए भले ही अच्छा रहा होगा. ये बड़ी कंपनियों और बड़े व्यापारियों के लिए अच्छा होगा.  

सड़क के किनारे एक चप्पल की मरम्मत में मशगूल अशोक परमार का कहना है कि दंगों के बाद उनकी तस्वीरें छपने से उन्हें 10 साल तक मुसीबतें झेलनी पड़ीं, उनपर हमले की भी कोशिश की गई. परमार कहते हैं कि वे किसी संगठन से जुड़े नहीं थे, लेकिन तस्वीर छपने से वे इस मामले में आ गए. परमार ने कहा कि उन्होंने अपनी मर्जी से वो तस्वीर दी थी. 

अशोक ने नाराजगी जताते हुए यह भी कहा कि दलितों को हिन्दू धर्म में कभी धार्मिक और सामाजिक समानता नहीं मिलेगी. 

गुजरात में किसकी हवा चल रही है?

अशोक परमार का कहना है कि आज गुजरात में जातिवाद चलता है. हार्दिक पटेल अपने मतलब के लिए राजनीति में आए. सभी सत्ता के सौदागर हैं. 

इस चुनाव में किसकी हवा चल रही है? इस सवाल पर अशोक परमार कहते हैं कि गुजरात में मेरा कोई फेवरेट नहीं है, न तो कांग्रेस और न ही बीजेपी.  जनता सब कुछ देख रही है और इसका जवाब देगी. हालांकि उनका कहना है कि इस बार बदलाव होना चाहिए. लोग कांग्रेस, बीजेपी को देख चुके हैं इस बार केजरीवाल को मौका देना चाहिए. 

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गुजरात की राजनीति पर क्या कहते हैं कुतुबुद्दीन अंसारी?

गुजरात दंगों से चर्चित हुए पोस्टर में जो दूसरी तस्वीर थी वो कुतुबुद्दीन अंसारी की थी. हाथ जोड़े हुए, रोते हुए कुतुबद्दीन अंसारी की तस्वीर दुनिया भर में छा गई. आजतक ने जब कुतुबुद्दीन अंसारी से मुलाकात की तो उन्होंने खुलकर अपनी राय दी. 

कुतुबुद्दीन अंसारी का कहना है कि गुजरात में चीजें बदल चुकी हैं. 2002 के बाद गुजरात में दंगे नहीं हुए. महंगाई की मार से कुतुबुद्दीन अंसारी उतने ही परेशान हैं जितने अशोक परमार दिखे. कुतुबुद्दीन अंसारी का कहना है कि गुजरात की मुख्य समस्या महंगाई की है. हर चीज की कीमत बढ़ गई है. जिंदगी काटना मुश्किल हो गया है. रोजाना की चीजें जुटाना, बच्चों की पढ़ाई मुश्किल हो गई है. हमें अपनी जरूरतें कम करनी पड़ी हैं. 

कुतुबुद्दीन अंसारी

गुजरात दंगों को याद करते हुए कुतुबुद्दीन अंसारी कहते हैं कि गुजरात पहले रहने के लिए अच्छी जगह थी आज भी है, लेकिन मुझे ये सोचकर बुरा लगता है कि कैसे एक घटना ने पूरे गुजरात को बदल दिया, ये ताउम्र हमारे साथ रहेगा. जो दंगा करने वाले लोग थे वे सालों से एक दूसरे के दोस्त थे, लेकिन पता नहीं रातोरात क्या हुआ कि हालात पूरी तरह से बदल गए.  

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गुजरात मॉडल अच्छा है?

अशोक परमार जहां दलितों, गरीबों और मुसलमानों के लिए गुजरात मॉडल को फेल बताते हैं वहीं कुतुबुद्दीन अंसारी गुजरात मॉडल को अच्छा बताते हैं. कुतुबुद्दीन का कहना है कि गुजरात मॉडल अच्छा है, बिजनेस करने के लिए ये मॉडल अच्छा है. 

दिन भर मेहनत करता हूं

कुतुबुद्दीन अंसारी कहते हैं कि वे अब राजनीति के बारे में नहीं सोचते हैं. खासकर 2002 के बाद. वे दिन भर मेहनत करते हैं और शाम को अपने बच्चों के साथ समय गुजारते हैं. वो कहते हैं, "वोट देना हमारा अधिकार है लेकिन 2002 के बाद राजनीति में मेरी रुचि खत्म हो गई है." 

परिवर्तन आना चाहिए

गुजरात में बदलाव की उम्मीद कर रहे कुतुबुद्दीन अंसारी का मानना है कि परिवर्तन आना चाहिए, उम्मीद पर दुनिया कायम है. कई राजनीतिक पार्टियां आईं, लेकिन लोगों को सत्ताधारी पार्टी से ही उम्मीद होती है.  

बता दें कि गुजरात में पहले चरण का चुनाव 1 दिसंबर को और दूसरे चरण का चुनाव 5 दिसंबर को है. मतगणना 8 दिसंबर को होगी. 

 

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