क्या सिर्फ नाम और चुनाव चिह्न से ही तय होता है कि असली पार्टी कौनसी है या फिर ब्रांड नेम भी मायने रखता है? ये बात इसलिए क्योंकि महाराष्ट्र विधानसभा चुनाव के नतीजे आज आने हैं. ये नतीजे सिर्फ यही तय नहीं करेंगे कि सरकार किसकी बनेगी. बल्कि ये भी तय करेंगे कि 'असली पार्टी' कौन सी है.
चुनाव के नतीजे साफ करेंगे कि असली शिवसेना और असली एनसीपी कौनसी है. दोनों पार्टियों की विरासत भी दांव पर है.
महाराष्ट्र की दो बड़ी पार्टियां- शिवसेना और एनसीपी, दोनों ही टूट चुकी हैं. टूट के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव है, जब दोनों पार्टियों के दोनों धड़े आमने-सामने है. कानूनी लड़ाई के बाद शिवसेना का नाम और चुनाव चिह्न धनुष-बाण शिंदे गुट के पास है. इसी तरह से अजित पवार के गुट को भी एनसीपी का चुनाव चिह्न घड़ी मिल चुका है. उद्धव ठाकरे गुट की शिवसेना इस बार 'मशाल' तो शरद पवार गुट की एनसीपी 'तुरही बजाते आदमी' के चुनाव चिह्न के साथ मैदान में है. हालांकि, 'ठाकरे ब्रांड' शिवसेना (यूबीटी) और 'शरद पवार ब्रांड' एनसीपी (एसपी) के पास ही है.
लंबी कानूनी लड़ाई के बाद संख्या बल को देखते हुए अदालत और चुनाव आयोग ने असली शिवसेना शिंदे गुट और असली एनसीपी अजित पवार गुट को माना था. लेकिन आज जनता तय करेगी कि 'असली शिवसेना' और 'असली एनसीपी' कौनसी है?
असली एनसीपी की सबसे बड़ी लड़ाई बारामती सीट से होगी. बारामती सीट पर 1967 से पवार परिवार का कब्जा है. 1967 से 1991 तक शरद पवार यहां से विधायक थे. 1991 के बाद से अजित पवार यहां से जीतते आ रहे हैं.
इसी साल हुए लोकसभा चुनाव में यहां एनसीपी (एसपी) से सुप्रिया सुले की जीत हुई थी. उन्होंने अपनी भाभी को हराया था. उनका मुकाबला अजित पवार की पत्नी सुनेत्रा पवार से था. सुप्रिया सुले ने सुनेत्रा पवार को लगभग डेढ़ लाख वोटों के अंतर से हराया था.
विधानसभा चुनाव में भी बारामती में मुकाबला दो पवार के बीच है. बारामती से डिप्टी सीएम अजित पवार आठवीं बार चुनाव लड़ रहे हैं. उनका मुकाबला एनसीपी (एसपी) के युगेंद्र पवार से है. युगेंद्र पवार, अजित पवार के भतीजे और शरद पवार के पोते हैं.
वहीं, दोनों शिवसेनाओं के बीच असली मुकाबला कोपरी पचपाखड़ी सीट पर होगा. यहां से मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे मैदान में हैं. उनके सामने शिवसेना (यूबीटी) ने केदार दिघे को उतारा है. केदार दिघे, दिवंगत नेता आनंद दिघे के भतीजे हैं. एकनाथ शिंदे, आनंद दिखे को अपना गुरु मानते थे.
इस विधानसभा चुनाव में डेढ़ दर्जन सीटें ऐसी हैं, जिनपर सीधा मुकाबला शिंदे गुट और ठाकरे गुट की शिवसेना के बीच है. लोकसभा चुनाव में शिंदे गुट की शिवसेना ने 9 और ठाकरे गुट की शिवसेना ने 7 सीटें जीती थीं. एक तरह से मामला तकरीबन बराबरी का रहा था.
लेकिन इन नतीजों से साफ हो जाएगा कि जनता की नजरों में 'असली' कौन है. अगर नतीजे शिंदे गुट के पक्ष में आते हैं तो इसका मतलब होगा कि ठाकरे ब्रांड के बिना भी शिवसेना हो सकती है. इसी तरह असली एनसीपी की लड़ाई तो शायद विधानसभा चुनाव में ही खत्म हो जाए. अगर महाराष्ट्र में हंग असेंबली की स्थिति बनती है तो अजित पवार और शरद पवार फिर साथ आ सकते हैं.
लेकिन असली शिवसेना की लड़ाई बीएमसी चुनाव तक जारी रहेगी. अगर शिंदे गुट को ज्यादा सीटें मिलती हैं, तो ठाकरे को बीएमसी चुनाव में बड़ा झटका लगेगा. अगर ठाकरे को बढ़त मिलती है तो वो बीएमसी पर अपना दबदबा बनाए रख सकते हैं. क्योंकि शिवसेना की राजनीति स्थानीय निकाय में ही है.
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