यूपीएससी में चुने जाने का सपना लेकर उन्नाव से मुखर्जी नगर पहुंचे आशीष कुमार का साल 2019 में जनवरी में यूपीएससी में चयन हो गया. कमजोर पारिवारिक बैकग्राउंड से आने वाले आशीष अपने यूपीएससी चयन से सात साल पहले से सरकारी नौकरी कर रहे थे. Aajtak.in से बातचीत में उन्होंने बताया कि किस तरह उनके लिए नौ साल के इंतजार के बाद यूपीएससी मेन्स क्लीयर करके इंटरव्यू में पहुंचना किसी सपने से कम नहीं था. उन्होंने बताया कि इंटरव्यू में उनसे किस तरह के सवाल पूछे गए. उसमें से एक सवाल बीजेपी नेता के हाई प्रोफाइल मामले से संबंधित था, जानें- आशीष ने कैसे दिए थे इन सवालों के जवाब, जिनके जवाब से हो गया सेलेक्शन.
आशीष बताते हैं कि जनवरी में जब उनका इंटरव्यू हुआ, उस दौरान किसी एक पार्टी का नाम चर्चा में जिसपर रेप का इल्जाम लगा था. इंटरव्यू में उनसे पूछा गया कि आपने ये मामला तो पढ़ा होगा. मैंने कहा कि जी, जरूर पढ़ा है. उन्होंने कहा कि जिस तरह रेप पीड़िता के पिता की जेल में मौत की बात की जा रही है, अगर आप उस जेल के जेलर होते तो क्या करते.
आशीष कहते हैं कि इस सवाल पर मैंने बिना कुछ सोचे, वही जवाब दिया जो मैं पहले भी खबरें पढ़ते हुए सोच रहा था. मैंने कहा कि मैं सबसे पहले पूरे मामले की निष्पक्ष जांच पर जोर देता. मैं पता लगाता कि जहां वो घटना हुई, वहां के सीसीटीवी कैमरे ठीक से काम कर रहे थे या नहीं. मौका-ए-वारदात में जिन लोगों ने ये घटना देखी, उनका क्या रिऐक्शन है.
आशीष बताते हैं कि दूसरा सवाल फीमेल इंटरव्यूवर ने पूछा. ये सवाल भी रेप मामले में फंसे नेता से संबंधित था. उन्होंने पूछा कि आपने राग दरबारी किताब पढ़ी है. मैंने हां में जवाब दिया तो उन्होंने पूछा कि उस किताब में भी एक किरदार था जिसका चरित्र इस मामले में पीड़ित के पिता से मेल खाता है. संयोग से मुझे उस पुस्तक में लंगड़ का किरदार याद था. मैंने वही नाम लिया तो उन्होंने तारीफ की. बता दें कि आशीष को यूपीएससी में नौकरी के साथ तैयारी के बावजूद 817वीं रैंक मिली है.
आशीष कहते हैं कि मैं उत्तर प्रदेश के उन्नाव जिले से हूं और सात साल से अहमदाबाद में जॉब कर रहा हूं. मुझसे इस बारे में भी पूछा गया कि मुझे उन्नाव ज्यादा पसंद है या अहमदाबाद, इस पर मैंने कहा कि वो जन्मभूमि है इसलिए पसंद है. लेकिन सात साल में अहमदाबाद भा गया है.
बता दें कि आशीष का ये नौवां और आखिरी प्रयास था. इससे पहले वो 5 मेन्स और 2 इंटरव्यू दे चुके हैं. वो बताते हैं, उन्नाव जिले के मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर मेरा गांव है. मेरी पूरी पढ़ाई गांव व उन्नाव जिले में ही हुई है. गणित विषय के साथ स्नातक और इतिहास विषय में परास्नातक किया है. वो कहते हैं कि मैं कभी भी पढ़ने में बहुत अच्छा नहीं रहा हूं. हमेशा सेकेंड ही पास होता था. न ही सिविल सेवा में आने का मेरा बचपन से कोई सपना रहा है. गांव के दूसरे लड़कों की तरह मेरी इच्छा बस एक अदद सरकारी नौकरी तक ही थी. इसीलिए मैंने पहले एक दिवसीय परीक्षाओं की शुरू की थी.
प्रतीकात्मक फोटो
वो कहते हैं कि इन्हीं दिनों में ही उन्हें सिविल सेवा के बारे में पता चला. वो कहते हैं कि मैं 2009 में इस परीक्षा में बैठने लगा तो तमाम रिश्तेदारों, मित्रों ने मजाक उड़ाया कि एक नौकरी तक मिलती नहीं और सीधे आईएएस बनने का ख्वाब देखने लगे. घर की आर्थिक हालत बहुत अच्छी नहीं थी. लेकिन मेहनत और किस्मत के योग से 23 साल की उम्र में सरकारी नौकरी मिल गई. इससे पहले मैंने 17 साल की उम्र में ट्यूशन पढ़ाकर पढ़ाई की.
की ये नौकरियां
आशीष ने एक साल अध्यापक की नौकरी, एक साल सिविल आर्मी में ऑडिटर ( कर्मचारी चयन आयोग ) के बाद, 2010 में एक्साइज एंड कस्टम विभाग में इंस्पेक्टर की जॉब के साथ मैंने एक दिवसीय एग्जाम देना बंद कर दिया. इसके बाद एकलौता लक्ष्य सिविल सेवा बनाया. उसके बाद हिंदी माध्यम से तैयारी करते हुए उन्होंने ये सफलता हासिल की. आज वो अपने उन्नाव जिले ही नहीं देश के लिए एक मिसाल बन चुके हैं.