20 साल पहले 7 जुलाई 1999 को आज ही के दिन करगिल के हीरो विक्रम बत्रा
अपने साथी ऑफिसर को बचाते हुए शहीद हो गए थे. विक्रम बत्रा के वीरता की
दास्तां इतिहास के पन्नों में अमर हो गई है. वहीं एक उनकी एक दास्तां और है
जिनके बारे में कम ही लोग जानते हैं. जी हां हम बात कर रहे हैं उनकी
प्रेमिका और उनकी प्रेम कहानी के बारे में. आइए जानते हैं.
विक्रम बत्रा एक लड़की से प्यार करते थे.
दोनों की मुलाकात करगिल युद्धल की लड़ाई से पहले 1995 में पंजाब यूनिवर्सिटी हुई
थी. जहां दोनों अंग्रेजी से MA की पढ़ाई कर रहे थे.
दोनों के बीच अच्छी दोस्ती हो गई थी. बाद में यह दोस्ती प्यार में बदल गई.
फिर 1996 में, विक्रम का इंडियन मिलिट्री अकादमी
(IMA) में सेलेक्शन हो गया जिसके बाद वह
देहरादून चले गए और कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी. विक्रम अपने सेलेक्शन से काफी
खुश थे, लेकिन उनकी प्रेमिका जानती थी कि विक्रम के दूर चले जाने पर उनके
रिश्ते में दूरियां बढ़ सकती हैं.
कारगिल युद्ध खत्म होने के बारे में विक्रम ने वादा किया था कि वह प्रेमिका से शादी करेंगे. लेकिन ऐसा नहीं हो पाया.
उनकी प्रेमिका ने वक्त को याद करते हुए कहा था कि "वो लौटा नहीं और जिंदगी
भर के लिए मुझे यादें दे गया". एक वेबसाइट को इंटरव्यू देते हुए उन्होंने
बताया था कि कैसे उनके प्यार ने उनके जीवन
को आकार दिया और यह उनके साथ हमेशा-हमेशा
तक कैसे रहेगा.
बत्रा देश की सेवा में लगे थे और सेना के कई मिशन पूरे करने में व्यस्त थे.
जिसकी वजह से उन्हें कई दिनों तक अलग रहना पड़ता था. उनकी प्रेमिका ने
बताया "विक्रम हमेशा मुझसे शादी के लिए कहते थे. साथ ही कहते थे जिसे तुम
पसंद करती हो उसका ध्यान रखो". बता दें, वह मनसा देवी और गुरुद्वारा श्री
नाडा साहब जाया करते थे.
उन्होंने बताया एक बार मैंने विक्रम से शादी की बात कर ली. क्योंकि उस वक्त
मेरा परिवार शादी का दवाब मुझ पर डाल रहा था. जिसके बाद विक्रम ने बिना
सोचे समझे ब्लेड से उंगली काटी और मेरी मांग भर दी. जिसके बाद मैंने 'पूरा
फिल्मी' कहकर विक्रम को खूब चिढ़ाया.
प्रेमिका ने कहा था कि उन्हें हमेशा एक बात का पछतावा रहा कि उनका प्यार
उनके साथ अपनी उपलब्धियों और हसीन लम्हों को याद करने के लिए साथ नहीं
रहा. आज हमारे पास हीर-रांझा, लैला मजनू जैसी कुछ प्रेम कहानियां हैं,
लेकिन विक्रम की तरह ऐसे कई भारतीय सेना के नौजवान हैं जिनकी प्रेम कहानी
आंखों में पानी ला देती है.
ऐसे वीर थे विक्रम बत्रा
विक्रम बत्रा को परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था. यह सम्मान उन्हें
1999 में मरणोपरांत मिला.वह 25 साल के थे जब उन्होंने देश की खातिर अपनी
जान न्योछावार कर दी. हिमाचल प्रदेश के पालमपुर में 9 सितंबर 1974 को
विक्रम बत्रा का जन्म हुआ था. 19 जून, 1999 को कैप्टन विक्रम बत्रा की
लीडरशिप में इंडियन आर्मी ने घुसपैठियों से कारगिल के प्वांइट 5140 चोटी
छीन ली थी. ये बड़ा इंपॉर्टेंट और स्ट्रेटेजिक प्वांइट था, क्योंकि ये एक
ऊंची, सीधी चढ़ाई पर पड़ता था. वहां छिपे पाकिस्तानी घुसपैठिए भारतीय
सैनिकों पर ऊंचाई से गोलियां बरसा रहे थे. इसे जीतते ही विक्रम बत्रा अगले
प्वांइट 4875 को जीतने के लिए चल दिए, जो सी लेवल से 17 हजार फीट की ऊंचाई
पर था और 80 डिग्री की चढ़ाई पर पड़ता था.
वो दिन 7 जुलाई 1999 का था जब एक जख्मी
ऑफिसर को बचाते हुए बिक्रम बत्रा की जान चली गई थी.
इस ऑफिसर को बचाते हुए कैप्टन ने कहा था, ‘तुम हट जाओ. तुम्हारे बीवी-बच्चे हैं.’विक्रम बत्रा के साथी नवीन, जो बंकर में उनके साथ
थे, बताते हैं कि अचानक एक बम उनके पैर के पास
आकर फटा. नवीन बुरी तरह घायल हो गए. विक्रम बत्रा ने तुरंत उन्हे वहां से हटाया, जिससे
नवीन की जान बच गई लेकिन कैप्टन ने देश की
मिट्टी के लिए जान दे दी.
पाकिस्तान ने 'शेरशाह' नाम दिया
कैप्टन विक्रम बत्रा की बहादुरी के किस्से भारत में ही
नहीं पड़ोसी देश पाकिस्तान में भी महशूर है.
पाकिस्तानी सेना ने उन्हें 'शेरशाह' नाम दिया था.