आजादी के बाद आखिरकार वो समय ही आ गया था, जब भारत को पहला राष्ट्रपति मिला. 24 जनवरी 1950 को संविधान सभा ने राजेंद्र प्रसाद को देश का पहला राष्ट्रपति चुना था.
26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू होने वाला था.
इस दिन से पहले तमाम बदलाव हुए. गर्वनर जनरल सी राजगोपालाचार्य को नए राष्ट्रपति को जगह देनी थी क्योंकि वह ब्रिटिश राज के प्रमुख के रूप में काम कर रहे थे.
वहीं देश की आजादी के बाद और संविधान लागू होने से पहले जल्द से जल्द एक राष्ट्रपति की जरूरत थी. खबरों के अनुसार, इस पद के लिए नेहरू की पहली पसंद थे सी राजगोपालचार्य. चेन्नई के इस राजनीतिज्ञ को लोग राजाजी के नाम से जानते थे. उस समय वह खुद गर्वनर जनरल थे. एक तरह से राष्ट्रपति की हैसियत से ही वह काम कर रहे थे. लेकिन सरदार वल्लभ भाई पटेल के दिमाग में कुछ और ही चल रहा था.
राजाजी और नेहरू सेकुलर भारत का सपना पूरा करना चाहते थे. लेकिन सरदार पटेल इस विचार से सहमत नहीं थे. पटेल ने एक बार राजाजी को आधा मुसलमान और नेहरू को कांग्रेस का एकमात्र राष्ट्रवादी मुस्लिम कह डाला था लेकिन बहुत से कांग्रेसी राजाजी के नाम पर इसलिए सहमत नहीं थे क्योंकि राजाजी ने अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन का विरोध ही नहीं किया था बल्कि खुद को उससे अलग भी कर लिया था.
एक ब्लॉग के अनुसार, पटेल की पसंद राजेंद्र प्रसाद थे. वह उन्हीं की तरह सोशल कंजर्वेटिव भी थे. राष्ट्रपति बनने के बाद तमाम बिंदुओं पर राजेंद्र प्रसाद ने बहुत कुछ ऐसा किया जो जवाहर लाल नेहरू नहीं चाहते थे.
कहा जाता है कि राजेंद्र प्रसाद को राष्ट्रपति बनवाकर पटेल चाहते थे कि नेहरू की ताकत को संतुलित करके रखा जा सके. राष्ट्रपति पद के चुनाव के एक साल बाद कांग्रेस अध्यक्ष के चुनाव के समय पटेल फिर ताल ठोककर नेहरू के सामने खड़े थे. उन्होंने फिर अपना उम्मीदवार आगे कर दिया. बताया जाता है कि उन्होंने टिप्पणी की राष्ट्रपति पद के चुनाव में नेहरू के एक गाल पर थप्पड़ पड़ा है और अब दूसरे गाल की बारी है.
राष्ट्रपति पद के लिए जब सरदार वल्लभ भाई पटेल अपना नाम तय कर चुके थे तो उन्होंने गोपनीय तरीके से अपने समर्थकों को इस बारे में अवगत करा दिया था. सार्वजनिक तौर पर उन्होंने इसके बारे में कुछ नहीं कहा. ब्लॉग में लिखी एक रिपोर्ट के मुताबिक, नेहरू ने राजेंद्र प्रसाद को 10 सिंतबर 1949 को एक पत्र लिखाकर जता दिया कि उनकी इच्छा राजाजी को ही राष्ट्रपति के रूप में बरकरार रखने की है, वह नहीं चाहेंगे कि कोई और दूसरा राष्ट्रपति बने, इससे बदलाव संबंधित जटिलताएं भी आएंगी.
इसी संदर्भ में राजेंद्र प्रसाद ने नेहरू को जवाबी पत्र लिखकर राष्ट्रपति पद की दौड़ से हटने से मना कर दिया. पटेल चुप थे. नेहरू को अंदाजा नहीं था कि क्या चल रहा है. उन्होंने पटेल को शिकायती पत्र लिखते हुए कहा कि वह प्रसाद को समझाएं, क्योंकि ज्यादातर कांग्रेस चाहते हैं कि राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति बनें.
बता दें, राजेंद्र बाबू राष्ट्रपति पद पर दो बार चुनें गए. उन्होंने 12 साल तक राष्ट्रपति पद को संभाला था.