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जानें- ब्रिज के निर्माण में किन-किन बातों का ध्यान रखना जरूरी

प्रियंका शर्मा
  • 03 जुलाई 2018,
  • अपडेटेड 3:58 PM IST
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मुंबई के अंधेरी इलाके में मंगलवार सुबह एक बड़ा हादसा हुआ. यहां एक रोड ओवरब्रिज का स्लैब गिर गया.
जिसमें 6 लोगों के घायल होने की खबर आई है. वहीं इससे पहले वाराणसी में ब्रिज गिरने से 15 से ज्यादा लोगों की मौत हो गई थी. लगातार ब्रिज का यूं अचानक गिर जाना या सही समय पर उनकी कंस्ट्रक्शन न करवाना गंभीरता का विषय बनते जा रहा है. आइए जानते हैं पुल निर्माण कैसे होता है और किन बातों का ध्यान रखना चाहिए. (फोटो- मुंबई पुलिस, सोशल मीडिया)

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बीबीसी की रिपोर्ट के मुताबिक दिल्ली के पीडब्लूडी विभाग के पूर्व प्रमुख सचिव और इंजिनियर इन चीफ सर्वज्ञ श्रीवास्तव ने बताया कि ब्रिज के निर्माण के वक्त कई नियम हैं जिनका पालन करना जरूरी है. सबसे पहले नियमों के मुताबिक ऐसे किसी ब्रिज के निर्माण के समय निमार्णाधीन साइट पर काम जब चल रहा हो तो ट्रैफिक की आवाजाही पर रोक होनी चाहिए. किसी कारण से अगर ऐसा नहीं हो सकता तो ऐसे काम सिर्फ रात में करने की इजाजत दी जाती है. (फोटो- मुंबई पुलिस, सोशल मीडिया)


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जानें- तरह-तरह के पुल के निर्माण के बारे में:
बिंब ब्रिज (Beam Bridge): सबसे सिंपल और सरल बिंब ब्रिज होता है. ये ब्रिज लंबे समय तक चलता है. इसे बनाने के लिए एक साथ सारे बिंब बना दिए जाते हैं, फिर इसके ऊपर एक सतह बना दी जाती है. कई सारे बिंब ब्रिज को बनाने में स्टील और कांक्रिट का इस्तेमाल किया जाता है.  इससे ये ब्रिज वेट को कंट्रोल करता है. आपको बता दें, हर ब्रिज का अपना एक वेट सिस्टम होता है. उसी के आधार पर तय किया जाता है एक ब्रिज कितना वेट झेल सकता है. ये ब्रिज ज्यादा दूरी के लिए नहीं बनाया जा सकता. क्योंकि ये सक्सेसफुल नहीं है.

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सस्पेंशन ब्रिज (Suspension Bridge): जैसा कि नाम से पता चला रह है कि कोई चीज जो टंगी हुई हो. इस ब्रिज में एक केबल की मदद से सारे वेट को पृथ्वी तक भेजा जाता है. पहले इसके दो किनारों पर एक बहुत ही ठोस एंकोरेज बनाते हैं जो इस ब्रिज को सीधा रखता है. फिर वहां से एक केबल निकालते हुए दो टॉवर के बीच से गुजारते हैं और इसमें टॉवर की भूमिका ये होती है जैसे ही इस ब्रिज से कोई वेट होकर जाता है. पहले उस वेट को केबल को झेलना पड़ता है. उसके बाद वह टॉवर तक पहुंचता है और फिर टॉवर उस वजन को पृथ्वी तक पहुंचाता है. जिससे कोई भी दवाब उस ब्रिज पर नहीं पड़ पाता. लेकिन इसके कठिन डिजाइन के कारण इसे बनाने में काफी खर्चा आता है. जिससे हर देश बना नहीं बना पाता. खास तौर पर वह देश जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं.


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आर्क ब्रिज (Arch Bridge): बताया जाता है आर्क ब्रिज कहे जाने वाले इस ब्रिज का डिजाइन लगभग 2 हजार साल पुराना है. इसे बनाने का तरीका है कि सबसे पहले कई सेमीसर्कुलर आर्क बनाते हैं. और फिर उसके ऊपर एक लेयर बनाते हैं होरिजोंटल (horizontal). जिसके बाद जो पूरा ब्रिज तैयार होता है. जिसके बाद ब्रिज में बने सेमीसर्कुलर आर्क सारे वेट को ट्रांसफर कर देता है. मतलब सारा दवाब पृथ्वी की ओर चला जाता है.

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जंगम ब्रिज (Movable Bridge): इन ब्रिज का निर्माण काफी चुनौतीपूर्ण होता है. इस ब्रिज का निर्माण बीच में बंद कर दिया था लेकिन फिर इसे बनाने की शुरुआत की गई.

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आपको बता दें, ब्रिज छोटा और बड़ा, लेकिन उसे बनाते समय एक ही टेक्निक का इस्तेमाल किया जा सकता है जिससे वजन सीधे तौर पर ब्रिज न पड़े. इससे ब्रिज के टूटने और ढह जाने का कम रहता है. वहीं ब्रिज को टूटने और ढहने से बचाने के लिए उनका समय सीमा के भीतर मेंटेनेंस और ब्रिज बनाते समय सामान का सही और उचित सामान का चुनाव करना सबसे महत्पूर्ण है. इसी साथ डिजाइन के साथ ब्रिज का निर्माण होना जरूरी है.


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