अस्पताल में सफाईकर्मी मां की होनहार बेटी हैं रोह‍िणी, जेनेवा में 'जय श्रीराम' बोलकर चर्चा में आईं

UN के सम्मेलन में जय श्री राम का जयकारा लगाकर अपनी बात शुरू कर रही रोहिणी घावरी काफी चर्चा में हैं. सोशल मीडिया में उन्हें एक तरफ तारीफ मिल रही है तो कई लोग उन्हें ट्रोल भी कर रहे हैं. आइए- चर्चा में आईं इंदौर की रहने वाली रोह‍िणी घावरी के बारे में जानते हैं. 

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Rohini Ghavri with family (Credit: aajtak.in/ Special Permission) Rohini Ghavri with family (Credit: aajtak.in/ Special Permission)

मानसी मिश्रा

  • नई दिल्ली ,
  • 18 मार्च 2024,
  • अपडेटेड 7:30 PM IST

होनहार छात्रा और प्रखर वक्ता रोहिणी घावरी बेबाकी से अपनी बात रखने में माह‍िर हैं. इन दिनों उनकी चर्चा संयुक्त राष्ट्र के मंच पर 'जय श्री राम' का नारा लगाने को लेकर हो रही है. इससे पहले 2019 में रोहिणी सुर्ख‍ियों में आई थीं. तब उन्हें मध्य प्रदेश सरकार के अनुसूचित जनजाति विभाग ने एक करोड़ रुपए की स्कॉलरशिप दी थी. aajtak.in ने रोहिणी से बातचीत की और जाना कि उनका अब तक का सफर कैसा रहा है. 

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रोहिणी बताती हैं कि मेरा बचपन मध्य प्रदेश के इंदौर जिले के पलासिया इलाके में बीता है. उनका जन्म 28 अगस्त को हुआ, वो दलित समाज से आती हैं. वो कहती हैं कि मेरी मम्मी अभी भी इंदौर के बीमा हॉस्प‍िटल में सफाई कर्मी हैं, वहीं पिता अब समाजसेवा करते हैं. रोहिणी के घर में उनके अलावा उनकी दो छोटी बहनें और एक छोटा भाई है. उनकी मां ने बहुत अभाव से अपनी बेट‍ियों को पाला है. उन्होंने बताया कि मां ने बच्चों को अपने जेवर बेचकर इस काबिल बनाया है.

मां अब भी करती हैं सफाई का काम

रोहिणी ने अपनी शुरुआती पढ़ाई इंदौर से की. वहीं उनकी दो छोटी बहनों में एक डेंटिस्ट है जो कि हाल ही में अभी मेडिकल ऑफिसर बनी हैं. वहीं दूसरी बहन लॉ कर रही है , एक भाई है जो इंजिनियरिंग कर रहा है. वो कहती हैं कि हम चारों बहनें और भाई अभी अपना करियर बनाने के लिए पढ़ाई में ही लगे हैं, अभी भी मेरी मां सफाईकर्मी का ही काम करती है. 

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वो कहती हैं कि मैंने पूरी गरीबी से लेकर आज तक की कहानी देखी है. मैं भाई बहनों में सबसे बड़ी हूं, मैंने देखा है कैसे एक ही कमरे के घर में हम चारों भाई बहनों को एक गद्दे में सोना पड़ता था. पिता की कमाई भी ऐसी नहीं थी कि वो हमारे खर्च उठा पाते, बस किसी तरह मां हमारी फीस भरती रहीं. फिर, एमएससी की पढ़ाई के बाद मुझे एक करोड़ रुपये की स्कॉलरश‍िप मिली, जिससे मैं यहां रहकर पीएचडी कर रही हूं. लेकिन स्व‍िटजरलैंड इतना महंगा है कि यहां प्रत‍िमाह दो लाख रुपये तक का खर्च आता है, उस पर पढ़ाई का खर्च भी. 

पार्ट टाइम जॉब करके कर रही पढ़ाई 

रोहिणी बताती हैं कि स्विटजरलैंड आकर भी मेरा संघर्ष खत्म नहीं हुआ है. मैंने अपनी पढ़ाई के साथ स्टूडेंट वीजा के मुताबिक कभी वेट्रेस तो कभी किसी स्टोर में पार्ट टाइम जॉब करके अपना खर्च निकाला है. इसके साथ ही बचे पैसे से मैंने मां की जूलरी जैसे मंगलसूत्र और अंगूठी आदि भी बनवाई है. मैं अपनी मां को फिर से जेवर बनाना चाहती हूं. दलित मुद्दों पर मुखरता से बोलने वाली रोहिणी कहती हैं कि मैं अंबेडकरवादी हूं, मैं समय समय पर दलितों पर हुए अत्याचारों पर अपनी बात रखती हूं. मुझे भविष्य में भी इसी द‍िशा में हिम्मत से खड़े रहना है. 

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ट्रोलिंग या विवाद क्यों हुआ? 
रोहिणी कहती हैं कि जेनेवा में जो बोली हूं उस पर मेरही ट्रोलिंग हुई क्योंक‍ि मैं अंबेडकरवादी हूं तो लोग मुझसे इसकी अपेक्षा नहीं कर रहे थे. लेकिन, जब किसी मुद्दे पर विदेश में अपने देश की आलोचना तो भारतीय के तौर पर मेरा राय रखना मुझे जरूरी लगा. वो कहती हैं कि मैं आगे भी वाल्मीकि समाज के लिए अपनी बात प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलकर रखना चाहती हूं. देश में समान काम, समान वेतन का नियम जल्द से जल्द लागू होना चाहिए. हाड़तोड़ मेहनत से गंदगी साफ करने वाले सफाईकर्मचारियों को भी दूसरों के समान वेतन मिलना चाहिए. 

जेनेवा में क्या कहा 
रोहिणी ने जेनेवा में हुए संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन में कहा था कि अयोध्या में नए उद्घाटन किए गए राम मंदिर ने भारत की आस्था, विरासत और सद्भाव को जोड़ा है. अपने संबोधन के दौरान उन्होंने यह भी कहा कि ऐतिहासिक और सांस्कृतिक महत्व के अलावा, अयोध्या राम मंदिर का बड़ा आर्थिक महत्व भी है. यह राष्ट्र के लिए नौकरियां और विकास पैदा करके आर्थिक विकास में योगदान देता है. 

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