Lal Bahadur Shastri: आज भी बरकरार है मौत का रहस्य, बेटे ने जताया था ये संदेह

देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की मौत आज ही के दिन हुई थी. जानें- उनकी मौत पर क्या कहा था उनकी पत्नी और बेटे ने...

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लाल बहादुर शास्त्री लाल बहादुर शास्त्री

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 11 जनवरी 2019,
  • अपडेटेड 11:06 AM IST

आज देश के दूसरे प्रधानमंत्री लालबहादुर शास्त्री की 53वीं पुण्यतिथि आज है. 10 जनवरी, 1966 को ताशकंद में पाकिस्तान के साथ शांति समझौते पर करार के महज 12 घंटे बाद 11 जनवरी को तड़के उनकी अचानक हुई मौत पर सवाल आज भी अनसुलझे हैं. 'जय जवान जय किसान' का नारा देने वाले शास्त्री जी ने देश के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया.

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वह एक प्रसिद्ध भारतीय राजनेता, महान स्वतंत्रता सेनानी और जवाहरलाल नेहरू के बाद भारत के दूसरे प्रधानमंत्री थे. वे एक ऐसी हस्ती थे, जिन्होंने प्रधानमंत्री के रूप में देश को न सिर्फ सैन्य गौरव का तोहफा दिया, बल्कि हरित क्रांति और औद्योगीकरण की राह भी दिखाई.

जीवन परिचय

लाल बहादुर शास्त्री का जन्म 2 अक्टूबर, 1904 को मुगलसराय, उत्तर प्रदेश में 'मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव' के यहां हुआ था. उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे. अत: सब उन्हें 'मुंशी जी' ही कहते थे. परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार से नन्हे कहकर ही बुलाया करते थे. जब नन्हे अठारह महीने का हुआ तब दुर्भाग्य से पिता का निधन हो गया था.

...उस रात आखिर क्या हुआ जब हुई थी लाल बहादुर शास्त्री की मौत

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बिना पिता के बालक शास्त्री की परवरिश करने में उनके मौसा ने उसकी मां का काफी साथ दिया. ननिहाल में रहते हुए उन्होंने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की. उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और काशी विद्यापीठ (वर्तमान महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ) में हुई.

9 साल जेल

भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई के दौरान शास्त्री 9 साल तक जेल में रहे. असहयोग आंदोलन के लिए पहली बार वह 17 साल की उम्र में जेल गए, लेकिन बालिग ना होने की वजह से उन्हें छोड़ दिया गया. इसके बाद वह सविनय अवज्ञा आंदोलन के लिए 1930 में ढाई साल के लिए जेल गए. 1940 और फिर 1941 से लेकर 1946 के बीच भी वह जेल में रहे. इस तरह कुल नौ साल वह जेल में रहे.

जात-पात के सख्त खिलाफ

शास्त्री जी जात-पात के सख्त खिलाफ थे. तभी उन्होंने अपने नाम के पीछे सरनेम नहीं लगाया. शास्त्री की उपाधि उनको काशी विद्यापीठ से पढ़ाई के बाद मिली थी. वहीं अपनी शादी में उन्होंने दहेज लेने से इनकार कर दिया था. लेकिन ससुर के बहुत जोर देने पर उन्होंने कुछ मीटर खादी का दहेज लिया.

जय जवान जय किसान की कहानी

1964 में जब वह प्रधानमंत्री बने, तब देश खाने की चीजें आयात करता था. उस वक्त देश PL-480 स्कीम के तहत नॉर्थ अमेरिका पर अनाज के लिए निर्भर था. 1965 में पाकिस्तान से जंग के दौरान देश में भयंकर सूखा पड़ा. तब के हालात देखते हुए उन्होंने देशवासियों से एक दिन का उपवास रखने की अपील की. इन्हीं हालात से उन्होंने हमें 'जय जवान जय किसान' का नारा दिया.

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महिलाओं को जोड़ा ट्रांसपोर्ट सेक्टर से

ट्रांसपोर्ट मिनिस्टर के तौर पर सबसे पहले उन्होंने ही इस इंडस्ट्री में महिलाओं को बतौर कंडक्टर लाने की शुरुआत की. यही नहीं, प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए उन्होंने लाठीचार्ज की बजाय पानी की बौछार का सुझाव दिया था.

सम्मान और पुरस्कार

शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है. उन्हें साल 1966 में भारत रत्न से सम्मानित किया गया था.

पति को दिया गया था जहर!

लाल बहादुर शास्त्री की पत्नी ललिता शास्त्री ने आरोप लगाया था कि उनके पति को जहर देकर मारा गया. उनके बेटे सुनील शास्त्री ने कहा था कि उनके पिता की बॉडी पर नीले निशान थे. साथ ही उनके शरीर पर कुछ कट भी थे.

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