Hathras Case: सबूत, जांच और कोर्ट का फैसला... जानिए, कैसे छूट गए हाथरस कांड के तीन आरोपी

अदालत ने इस केस में तीन आरोपियों को बरी करने का आधार तीन अहम बिंदुओं को बनाया है. अब एक बार फिर हम आपको वारदात और पुलिस की कहानी की तरफ ले चलते हैं. क्योंकि अदालत के फैसले को समझने के लिए वारदात के हर पहलू को जानना भी ज़रूरी है.

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कोर्ट ने इस केस में तीन आरोपियों को बरी कर दिया है कोर्ट ने इस केस में तीन आरोपियों को बरी कर दिया है

अनीषा माथुर / कुमार अभिषेक / परवेज़ सागर

  • नई दिल्ली,
  • 03 मार्च 2023,
  • अपडेटेड 6:11 PM IST

यूपी का चर्चित हाथरस कांड एक बार फिर सुर्खियों में है. जिसकी वजह है कोर्ट का फैसला. जिसमें एससी-एसटी कोर्ट ने गुरुवार को मुख्य आरोपी संदीप को दोषी करार देते हुए आजीवन कारावास की सजा सुना दी. साथ ही उस पर 50 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया. लेकिन अन्य तीन आरोपियों को कोर्ट ने बरी कर दिया और रेप की धारा भी हटा दी. आइए जानते हैं, वो तीन खास बातें, जिनके आधार पर छूट गए इस केस के तीन आरोपी.

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अदालत का फैसला
हाथरस कांड की सुनवाई करने वाली एससी-एसटी कोर्ट ने तीन आरोपियों को बरी करते हुए तीन खास बातों का जिक्र किया है-

वजह नंबर 1- 
कोर्ट ने कहा है कि अन्य तीन अभियुक्तों के नाम पहले एफआईआर में नहीं थे. साथ ही 14 सितंबर 2020 को लड़की या उसके पिता ने पहले जो बयान दिए थे, उसमें भी उन तीनों का नाम नहीं था.

वजह नंबर 2-
कोर्ट ने यह भी कहा है कि पीड़िता के शरीर पर पाए जाने वाले चोट के निशान गैंगरेप के आरोपों का समर्थन नहीं करते हैं, क्योंकि कुछ दिनों के बाद मेडिकल जांच और फोरेंसिक जांच की गई थी और पीड़िता के शरीर पर कोई वीर्य या रक्त नहीं मिला था.

वजह नंबर 3-
कोर्ट ने यह भी माना है कि पीड़िता के शरीर पर दूसरी इंजरी बलात्कार को साबित नहीं करती हैं, क्योंकि पोस्टमार्टम में पीड़िता के प्राइवेट पार्ट में "ओल्ड हील्ड टियर्स" और "रक्त के थक्के" का उल्लेख किया है, जो मेडिकल जांच से 10 दिन से पहले के थे.

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अदालत ने तीन आरोपियों को बरी करने का आधार इन्हीं तीन अहम बिंदुओं को बनाया है. अब एक बार फिर हम आपको वारदात और पुलिस की कहानी की तरफ ले चलते हैं. क्योंकि अदालत के फैसले को समझने के लिए वारदात के हर पहलू को जानना भी ज़रूरी है.

14 सितंबर 2020
यही वो तारीख थी, जब हाथरस के बूलगढ़ी गांव में एक दलित लड़की के साथ दरिंदगी किए जाने का मामला सामने आया था. आरोप है कि युवती की जीभ काट दी गई थी. उसकी रीढ़ की हड्डी भी तोड़ दी गई थी. हैवानियत का शिकार हुई युवती को इलाज के लिए अलीगढ़ मेडिकल कॉलेज में भर्ती कराया गया था. बाद में उसे दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल रेफर कर दिया गया था, जहां इलाज के दौरान 29 सितंबर 2020 को उसकी मौत हो गई थी.

15 सितंबर 2020
जानकारी के मुताबिक, इस वारदात को लेकर 15 सितंबर को केस दर्ज किया गया था. दिलचस्प बात यह है कि मामले को आरोपी और पीड़िता के बीच पारिवारिक झगड़ा बताया गया था. उस दौरान कई मीडिया रिपोर्टस् में कहा गया था कि पीड़िता अपनी मां के साथ जानवरों के लिए चारा इकट्ठा कर रही थी, तभी एक युवक आया और वह पीड़िता के ऊपर बैठ गया. उसने पीड़िता को घसीटा और गला दबाकर उसकी हत्या करने का प्रयास किया. पीड़िता ने विरोध और शोर मचाया. तब आरोपी मौके से फरार हो गया. पीड़िता के भाई ने आरोपी के खिलाफ मामला दर्ज कराया था. उस वक्त अखबार में प्रकाशित खबरों में पीड़िता के साथ किसी तरह के यौन शोषण का जिक्र नहीं था. आरोपी की पहचान संदीप सिंह के रूप में की गई थी.

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केवल एक आरोपी
पुलिस ने दावा किया था कि दोनों पक्षों में काफी समय से पारिवारिक विवाद चल रहा था और कोर्ट में केस भी चल रहा था. ध्यान देने वाली बात यह है कि उस दौरान कवर की गई रिपोर्ट में कहीं भी रेप का जिक्र नहीं था और आरोपियों की संख्या एक थी.

भाई की तहरीर पर दर्ज हुई थी FIR
पीड़िता के भाई ने सबसे पहले दर्ज कराई गई एफआईआर में बताया था कि आरोपी संदीप खेत में उसकी बहन का गला घोंटने की कोशिश कर रहा था. उसकी चीख-पुकार सुनकर जब मां वहां पहुंची तो आरोपी वहां से फरार हो गया था. पहली शिकायत में पीड़िता के भाई ने सिर्फ एक आरोपी संदीप का नाम लिखवाया था. अपनी शिकायत में उन्होंने वारदात का वक्त 9.30 बजे का लिखवाया था. उसके बाद एससी/एसटी अधिनियम और आईपीसी की धारा 307 के तहत एफआईआर दर्ज की गई थी. 

19 सितंबर 2020
एएमयू के जेएन मेडिकल कॉलेज में भर्ती पीड़िता की हालत काफी नाजुक थी. लेकिन अगले हफ्ते वो होश में आई और उसने अपने परिवार से बात की. उसी वक्त पीड़िता का बयान भी दर्ज किया गया. उसने संदीप समेत दो हमलावरों का नाम लिया. छेड़छाड़ का भी दावा किया. इस बयान के आधार पर पुलिस ने धारा 307 (हत्या का प्रयास) और 354 (छेड़छाड़) के तहत कार्रवाई शुरू कर दी है. संदीप को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया. इस मामले में गौर करने वाली बात यही है कि संदीप के अलावा तीनों आरोपियों का नाम पहले दर्ज की गई एफआईआर में नहीं था. 

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22 सितंबर 2020
घटना के आठ दिन बाद 22 सितंबर को पहली बार इस मामले में रेप के आरोप सामने आए. उसी दिन लड़की के बयान और उसी बयान के आधार पर तीन और लोगों को आरोपियों के तौर पर FIR में जोड़ा गया था. उस दौरान रिपोर्ट में भी कहा गया था कि कांग्रेस नेता श्योराज जीवन ने पीड़िता के परिवार से मिलने के बाद पीड़िता से मुलाकात की थी, जिसके बाद इस वारदात की कहानी बदलने लगी. अब ये मामला गैंग रेप का बन चुका था. इसी लेकर बवाल होने लगा था. पीड़िता को हाथरस की निर्भया कहकर संबोधित किया जा रहा था. 

3 अन्य आरोपियों की गिरफ्तारी
इसके बाद 23, 25 और 26 सितंबर को तीनों नामजद अभियुक्त गिरफ्तार कर लिए गए थे. हालांकि इस मामले का मुख्य आरोपी संदीप को ही बताया गया था. पहले इस मामले की जांच के लिए एसआईटी का गठन किया गया. फिर मामले सीबीआई के हवाले कर दिया गया था. सीबीआई ने अपनी चार्जशीट में संदीप समेत चार लोगों को आरोपी बनाया था.

कौन है दोषी संदीप?
हाथरस कांड का आरोपी संदीप सिंह उसी बुलगढ़ी गांव का रहने वाला है, जिस गांव की पीड़िता थी. संदीप का घर पीड़िता के घर से ज्यादा दूर नहीं था. दसवीं पास है और पल्लेदारी का काम किया करता था. उसका संबंध उच्च जाति वर्ग से है. संदीप के पिता नरेंद्र सिंह खेती बाड़ी करते थे. उसके परिवार में उसकी मां और एक छोटा भाई और है, जो उस वक्त पढ़ाई कर रहा था. पकड़े जाने के बाद संदीप ने दावा किया था कि पीड़िता के साथ उसकी दोस्ती थी, जिससे उसका परिवार नाराज था. 

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एफआईआर में मां का बयान
पीड़िता की मां ने दूसरी FIR में बताया था "जब मैंने अपनी बेटी को वहां देखा, तो वह नग्न अवस्था में पड़ी हुई थी और उसके शरीर से बहुत ही खून बह रहा था. मैंने उसे अपने दुपट्टे और उसके खून से लथपथ कपड़ों से ढंक दिया. हम बेहद असमंजस में थे और एकदम सदमे की हालत में थे. हमारी बेटी बेहोश थी. जाहिर है, हम हाथरस के चंदपा पुलिस थाने में पुलिस को बलात्कार या सामूहिक बलात्कार का बयान नहीं दे सकते थे, जहां पहली प्राथमिकी दर्ज की गई थी. क्योंकि तब तक हमें नहीं पता था कि बेटी के साथ सामूहिक बलात्कार हुआ था. हमारी बेटी ने अपने भाइयों के कान में एक आरोपी संदीप का नाम लिया और बेहोश हो गई. तो हमने सोचा कि गांव में रहने वाले संदीप नाम के लड़के ने उसकी पिटाई की है." यही सब पहली एफआईआर में भी दर्ज था.

26 सितंबर 2020
पीड़िता की हालत बहुत खराब हो चुकी थी. लिहाजा, उसे इलाज के लिए दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल में रेफर किया गया था. इसके बाद भारी सुरक्षा इंतजा के साथ पीड़िता को दिल्ली के सफदरजंग अस्पताल ले जाया गया था. जहां उसकी हालत में कोई सुधार नहीं हो रहा था. इस मामले की देशव्यापी कवरेज और बढ़ते हंगामे के बीच यूपी सरकार ने बूलगढ़ी गांव में पत्रकारों की एंट्री बैन कर दी थी.

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29 सितंबर 2020
पीड़िता की सफदरजंग अस्पताल में मौत हो गई थी. पीड़िता की मौत के बाद भीम आर्मी और कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने सफदरजंग अस्पताल के बाहर विरोध प्रदर्शन किया था. दिनभर चले विरोध और ड्रामे के बाद पीड़िता के शव को हाथरस में उनके पैतृक गांव ले जाया गया. आरोप है कि सुबह करीब 3 बजे डीएम हाथरस के आदेश पर पुलिस अफसरों ने पीड़िता का जबरन अंतिम संस्कार कर दिया था. अंतिम संस्कार के समय परिवार का कोई सदस्य मौजूद नहीं था. उस दौरान उसके परिवारवालों को वहां जाने नहीं दिया गया था. जबरन दाह संस्कार कराने को लेकर प्रशासन निशाने पर था. दलित पीड़िता के पिता, परिवार और अन्य रिश्तेदारों ने पुलिस पर जबरन दाह संस्कार कराने का आरोप लगाया था. 

30 सितंबर 2020
उस दिन आरोपियों के परिवार ने दावा किया था कि लंबे समय से पारिवारिक कलह को लेकर उन पर झूठा आरोप लगाया गया. एक आरोपी की मां ने दावा किया था कि इससे पहले पीड़िता के दादा ने अपने आप को दो बार जख्मी किया था, ताकि उनके परिवार के लोग जेल जा सकें. उन्होंने दावा किया, ''उनका बेटा रामू चिलर पर काम कर रहा था. वहां काम करने वाले लोगों और उपस्थिति रजिस्टर में भी इसकी पुष्टि हुई है.'' इस मामले में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एसआईटी जांच के आदेश दिए थे. हाथरस केस को लेकर देशभर में विरोध प्रदर्शन हो रहे थे. 

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1 अक्टूबर 2022
यूपी के एडीजी प्रशांत कुमार ने एएनआई को बताया था कि फॉरेंसिक रिपोर्ट में पीड़िता के शरीर से लिए गए नमूनों में शुक्राणु या वीर्य नहीं मिला है. उन्होंने कहा कि पीड़िता के साथ रेप नहीं हुआ है. ऐसी ही बात पोस्टमार्टम में सामने आई थी. उधर, प्रियंका गांधी ने पीड़िता के पिता का एक वीडियो साझा किया, जिसमें उन्होंने दावा किया कि उन पर दबाव डाला जा रहा था. पीड़िता के पिता ने मामले में सीबीआई जांच की मांग की.

2 अक्टूबर 2022
सीएम योगी आदित्यनाथ ने प्रारंभिक जांच रिपोर्ट के आधार पर एसपी, डीएसपी, इंस्पेक्टर और कुछ अन्य अधिकारियों को निलंबित करने का निर्देश दिया था. साथ ही यूपी सरकार ने आरोपी, शिकायतकर्ता और मामले में शामिल पुलिस अधिकारियों के नार्को और पॉलीग्राफ टेस्ट का भी फरमान सुनाया था.

3 अक्टूबर 2022
एसआईटी की जांच पूरी हो चुकी थी. तब मीडिया को पीड़ित परिवार के गांव तक जाने की छूट दी गई. उसी दिन पीड़िता की मां ने आजतक से कहा था कि वह इस मामले की सीबीआई जांच नहीं चाहती हैं. नहीं, हम नहीं चाहते कि सीबीआई मामले की जांच करे. हम चाहते हैं कि सुप्रीम कोर्ट के जज की निगरानी में एक टीम इस मामले की जांच करे.

पीड़िता की मां ने यह भी कहा था कि परिवार नार्को टेस्ट नहीं कराएगा. उनका तर्क था कि वे नहीं जानते कि नार्को टेस्ट क्या होता है और इसलिए वे इसे नहीं लेना चाहेंगे? साथ ही, एक कांग्रेस समर्थक साकेत गोखले ने जांच अधिकारियों को पीड़िता के परिवार का नार्को टेस्ट कराने से रोकने के लिए इलाहाबाद उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था. 

योगी आदित्यनाथ ने उसी दिन सीबीआई जांच के आदेश दिए. पीड़िता के भाई ने इस फैसले का विरोध किया क्योंकि एसआईटी की जांच जाहिर तौर पर चल रही थी. इस दौरान पीड़िता के भाई ने कुछ विरोधाभासी बयान भी दिया था. 

21 नवंबर 2020
सीबीआई ने अलीगढ़ जेल में बंद चारों अभियुक्तों का पॉलीग्राफ और ब्रेन मैपिंग की. 

18 दिसंबर 2020 
सीबीआई ने जांच के बाद हाथरस के एससी-एसटी कोर्ट में चारों अभियुक्तों के खिलाफ आरोप पत्र दाखिल किया था. 

2 मार्च 2023
एससी-एसटी कोर्ट ने एक आरोपी संदीप को दोषी माना और  तीन आरोपियों लव-कुश, रामू और रवि को बरी कर दिया.

 

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