लोकसभा चुनाव में बंपर जीत के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अगुवाई में मोदी सरकार की एक बार फिर सत्ता में वापसी हुई है. सत्ता वापसी के साथ ही भारत को अमेरिका ने बड़ी राहत दी है. दरअसल, अमेरिका ने भारत को मुद्रा की निगरानी समिति से मंगलवार को बाहर कर दिया है. इस फैसले के बाद अमेरिका भारतीय रुपये को पहले के मुकाबले ज्यादा तवज्जो दे सकेगा.
अमेरिका ने भारत के अलावा स्विट्जरलैंड को भी इस सूची से बाहर कर दिया है. हालांकि चीन की मुद्रा युआन अब भी अमेरिका की निगरानी समिति में है. यह चीन के लिए कारोबार के लिहाज से बड़ा झटका है.अमेरिका ने इसके साथ ही चीन से लगातार कमजोर मुद्रा से बचने के लिए जरूरी कदम उठाने की अपील की है.
भारत पर अमेरिका ने क्या कहा
अमेरिका के वित्त मंत्रालय ने इस फैसले के पीछे भारत द्वारा उठाए गए कुछ महत्वपूर्ण कदमों का जिक्र किया. मंत्रालय ने कहा कि इन कदमों से मौद्रिक नीति को लेकर उसकी आशंकाएं दूर हुई हैं.
मंत्रालय ने कहा कि भारत की परिस्थितियां उल्लेखनीय तरीके से बेहतर हुई
हैं. साल 2018 के पहले छह महीने में रिजर्व बैंक द्वारा की गई शुद्ध बिक्री
से जून 2018 तक की चार तिमाहियों में विदेशी मुद्रा की शुद्ध खरीद कम होकर
4 अरब डॉलर यानी सकल घरेलू उत्पाद के महज 0.2 फीसदी पर आ गई.’’
बता दें भारत को अमेरिका ने पहली बार मई 2018 में इस सूची में डाला था. भारत के साथ ही पांच अन्य देशों चीन, जर्मनी, जापान, दक्षिण कोरिया और स्विट्जरलैंड को भी इस सूची में शामिल किया गया था. वहीं अब अमेरिका की नई सूची में चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, जर्मनी, इटली, आयरलैंड, सिंगापुर, मलेशिया और वियतनाम शामिल हैं.
क्यों अमेरिका करता है ऐसा
दरअसल, अमेरिका की निगरानी समिति दुनिया भर की करेंसी पर गौर करती है. जो करेंसी अमेरिका के मानदंडों पर खरी नहीं उतरती है उसे निगरानी समिति की सूची में डाल दिया जाता है. यह समिति उस देश से करेंसी के सुधार के लिए जरूरी कदम उठाने का आग्रह करती है. जिस देश की करेंसी समिति के अधीन रहती है, उसे अमेरिका कम तवज्जो देता है.