वित्त मंत्री अरुण जेटली ने अक्टूबर महीने में कहा था कि नोटबंदी का एक लक्ष्य देश को कैशलेस इकोनॉमी में परिवर्तित करने का भी था. नोटबंदी के एक साल बाद यह लक्ष्य पूरा होता नहीं दिख रहा है. लोगों ने फिर कैश में लेनदेन बड़े स्तर पर करना शुरू कर दिया है.
भारत में भले ही कैशलेस लेनदेन को ज्यादा तवज्जो नहीं दी जाती है, लेकिन एक ऐसा देश है जहां कई ऐसी दुकानें और होटल हैं, जो कैश नहीं लेते. इन दुकानों और होटलों के बाहर लगे बोर्ड पर लिखा होता है, ''हम कैश स्वीकार नहीं करते.''
हम बात कर रहे हैं स्वीडन की. यहां 99 फीसदी वित्तीय लेनदेन कैशलेस होते हैं. आप बस से सफर करना चाहते हैं या फिर सड़क पर ठेला लगाने वाले शख्स से कुछ खरीदना चाहते हैं, तो आपको कार्ड या फिर डिजिटल जरिये से पेमेंट करनी होगी.
स्वीडन की अर्थव्यवस्था में कैश की मौजूदगी महज 3 फीसदी है. यहां के चार राष्ट्रीयकृत बैंक अब नगदी में लेनदेन करते ही नहीं हैं. स्वीडन
का लक्ष्य है कि वह 2030 तक पूरी तरह कैशलेस हो जाएगा. इसके साथ ही यह देश
दुनिया का पहला ऐसा देश होगा, जहां 100 फीसदी कैशलेस लेनदेन होते हैं.
स्वीडन में 2008 में 110 बैंक डकैती हुई थीं, लेकिन 2011 में यह आंकड़ा 16 पर आ गया. दरअसल यहां के बैंकों ने अब कैश में डील करना बहुत कम कर दिया है.
बिजनेस इनसाइडर की एक रिपोर्ट के मुताबिक यहां कोई अगर बैंक में कैश निकालने के लिए पहुंच जाता है, तो लोग उसे शक की निगाह से देखते हैं. नगदी की मांग करने पर कई नजरें आप पर गड़ जाती हैं और कई सवालिया निशान आपके कैश मांगने पर लगाए जाते हैं.
जिस तरह नोटबंदी के दौरान पेटीएम कैशलेस पेमेंट का सबसे पसंदीदा विकल्प बनकर उभरा था. उसी तरह स्वीडन में iZettle भी एक मोबाइल पेमेंट ऐप है. जिसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल यहां किया जाता है.
फेरीवाले से लेकर छोटे व बड़े दुकानदारों के पास यह ऐप होना तय है. ज्यादातर लोग इसी से पेमेंट करना पसंद करते हैं. सरकार भी यहां कैशलेस पेमेंट्स को बढ़ावा देती है और इसी के बदौलत ये दुनिया का पहला कैशलेस देश बनने जा रहे हैं.