बिहार के आरा जिले में लौटती मॉनसून तबाही का पैगाम लेकर आई है. यहां गंगा किनारे मौजूद गांव डूबने की कगार पर हैं. बाढ़ और तबाही की आशंका देख लोगों ने गांव खाली कर दिया है. लेकिन कुछ बुजुर्ग अपने घर का मोह अभी भी नहीं छोड़ पा रहे हैं. टाट के सहारे अटके एक बुजुर्ग से जब पूछा गया कि बाढ़ अब उनके घर को डुबोने को तैयार है तो वे अपना घर क्यों नहीं छोड़ रहे हैं.
इसके जवाब में गोदी में बच्चे को और कंधे पर धोती को रखे इस बुजुर्ग की आवाज भरभराकर रह जाती है. शब्द कुछ फूटते हैं, कुछ मुंह में ही विलीन हो जाते हैं. वो भोजपुरी में कहते हैं, "घर-द्वार त्यागल जाता बबुआ... सुगा से पिंजरा छोड़ के न ही जाता न बबुआ, आखिरी में चल जाई आदमी, का करब."
इस बुजुर्ग ने कहा कि बहुत मेहनत की कमाई से घर बनाया है. कुदाल चलाते-चलाते जान निकल जाती है. एक बार फिर से भोजपुरी में जवाब देते हुए इस बुजुर्ग ने घर बनाने का संघर्ष बताया, "खटल धन ह बबुआ, पसीना छूट जाता बबुआ खेत काटे में. का करब, माई के कृपा." इसका मतलब है कि 'बहुत मेहनत से इस धन को हासिल किया है, खेत काटने में पसीना छूट जाता है, क्या करें सब मां की कृपा है.' इसके बाद वो हंसते हैं और हंसते हंसते ही उनकी आवाज रूंध जाती है.
इस बुजुर्ग की पीड़ा पर लल्लनटॉप में विस्तार से वीडियो बनाया गया है.
इस बुजुर्ग ने कहा कि उन्हें किसी सरकारी मदद का लालच नहीं है. अपने मेहनत से कमाए हुए धन का लालच है. हम लोग कहां से जाएं. बुजुर्ग कहते हैं कि चाय और ब्रेड के लिए हाथ पसारने में उन्हें शर्म आती है. आगे की बात कहते कहते बुजुर्ग के आंख फिर से भर आते हैं.
बिहार के आरा में गंगा नदी का जलस्तर खतरे के निशान से ऊपर बना हुआ है, लेकिन स्थिति नियंत्रण में है. अगस्त 2025 में भारी वर्षा और नेपाल से जलप्रवाह के कारण गंगा उफान पर थी, जिससे भोजपुर समेत 10 जिलों में 25 लाख लोग प्रभावित हुए. आरा के निचले इलाकों में जलभराव अभी भी हैं और फसलें बर्बाद हुईं हैं.
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