न नारेबाजी...न शोरगुल... क्या है नीतीश की 'खामोशी' का संकेत, आखिरी जोरदार पारी या फेयरवेल?

बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और इस बार का माहौल थोड़ा अलग दिख रहा है. नितीश कुमार अब शोर-शराबे वाली रैलियों की जगह शांत और सोच-समझकर चुनावी अभियान चला रहे हैं. उनकी ताकत कहीं बाहर नहीं बल्कि लोगों के बीच उनके काम और भरोसे में छिपी हुई है.

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बिहार चुनाव में होगी नीतीश के भरोसे और अनुभव की परीक्षा (Photo:ChatGPT) बिहार चुनाव में होगी नीतीश के भरोसे और अनुभव की परीक्षा (Photo:ChatGPT)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 07 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 2:58 PM IST

,बिहार में विधानसभा चुनाव नजदीक हैं और जो माहौल अब है, वो पुरानी राजनीति की याद दिलाता है. साथ ही इस बार कुछ बदलता हुआ भी दिख रहा है. साल 2015 में 'फिर एक बार, नीतीश कुमार' नारा छाया हुआ था. उस चुनाव ने नीतीश को बिहार का अटल नेता बना दिया था जो स्थिरता और विकास का प्रतीक माने जाते हैं.

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अब 2025 का चुनाव कुछ अलग है. अब ज्यादा जोरदार रैलियों की जगह शांत और सोच-समझकर चलाए जा रहे अभ‍ियानों ने जगह बना ली है. गांवों और छोटे शहरों में JD(U) के कार्यकर्ता घर-घर जाकर लोगों से मिल रहे हैं. ऐसा लगता है कि यही नीतीश का 'छिपा हुआ फायदा' है. जहां विपक्ष शोर मचाकर वोट मांग रहा है, वहीं नीतीश की पहले के कार्यकाल की छवि और भरोसा अभी भी लोगों के दिमाग में है.

महिलाओं में नीतीश की ताकत

नीतीश की सबसे बड़ी ताकत बिहार की महिलाओं में है. उनकी योजना मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना (MMRY) के तहत अब तक 10 लाख से ज्यादा महिलाओं को प्रत‍ि मह‍िला 10,000 रुपए दिए जा चुके हैं. कुल 10,000 करोड़ रुपए का लक्ष्य है ताकि महिलाएं आत्मनिर्भर बन सकें. इसके अलावा सरकार ने 11 लाख स्वयं सहायता समूह बनाए हैं जिनमें 1.40 करोड़ महिलाएं शामिल हैं.

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गौरतलब है कि साल 2006 में बिहार ने पंचायती राज संस्थाओं में 50% महिलाओं के लिए आरक्षण दिया. 2013 में पुलिस सेवाओं में 35% महिलाओं को आरक्षित किया गया. इन कोशिशों ने महिलाओं को वोट बैंक के रूप में मजबूत किया. इसलिए हर चुनाव में महिलाओं की उपस्थिति नीतीश के लिए फायदेमंद रही है.

बाइक पर लड़कियां और एजुकेशन...

नीतीश की सबसे चर्चित तस्वीर रही है बाइक पर स्कूल जाती लड़कियां जो मुख्यमंत्री बालिका साइकिल योजना (2006-07) के जरिए संभव हुई. इससे लड़कियों की शिक्षा बढ़ी, स्कूल में उपस्थिति बढ़ी और बाल-विवाह और गर्भधारण में देरी हुई. इस योजना से लड़कियों की सेकेंडरी शिक्षा में लगभग 30% की बढ़ोतरी हुई.

शांत लेकिन असरदार अभियान

अगर 2015 में सबकुछ तय और उत्साहपूर्ण था तो 2025 का चुनाव शांत पर गहरा असर वाला दिख रहा है. बहुत से लोग इसे नीतीश की संभव अंतिम पारी मान रहे हैं. उनके ही सहयोगियों के बीच भी माना जा रहा है कि शायद ये उनका आखिरी टर्म हो जिसकी वजह से stakes यानी दांव बहुत बड़े हैं.

भरोसे और अनुभव की परीक्षा

इस बार का चुनाव सिर्फ जीत-हार का नहीं, बल्कि ये नीतीश के भरोसे और अनुभव की परीक्षा है. विपक्ष नए वोटरों और युवा उम्मीदों को साधने की कोशिश कर रहा है लेकिन नीतीश का अनदेखा फायदा उनकी स्थिरता और विश्वसनीयता है.

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नीतीश उन कम नेताओं में से हैं जो सबसे लंबे समय तक मुख्यमंत्री रहे, बावजूद इसके कि उनका खुद का राजनीतिक आधार बहुत छोटा है. उन्होंने महिलाओं और सभी जातियों के बीच अपना वोट बैंक बनाया जिससे उन्हें 'बिना पार्टी वाले नेता' की उपाधि मिली.

आखिरी फैसला

2025 का चुनाव सिर्फ वोटों का मुकाबला नहीं है बल्कि ये सवाल है कि अनुभव और भरोसे की ताकत क्या नए वादों और बदलाव की लालच को पीछे छोड़ पाएगी. वही 2015 का नारा, 'फिर एक बार, नीतीश कुमार' अब यही सवाल उठा रहा है कि क्या ये उनकी सत्ता जारी रहने का संकेत है या बिहार के लंबे समय तक सेवा देने वाले नेता की सम्मानजनक विदाई?

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(लेखक मारया शकील इंडिया टुडे ग्रुप की मैनेजिंग एडिटर हैं. इस लेख में व्यक्त विचार लेखक के अपने हैं.)

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