चक्की, चूल्हा-चौका, खेत-खलिहान... एमएफ हुसैन ने 14 फीट लंबी पेंटिंग में उतार दिया था पूरा ग्रामीण भारत

ग्राम यात्रा एक विशाल म्यूरल है, जो लगभग 14 फीट लंबी है. इसमें  13 दृश्यों में भारतीय ग्रामीण जीवन की झलकियां समाई हुई हैं. मीडिया बातचीत में सफ्रोनआर्ट के सीईओ और सह-संस्थापक दिनेश वज़ीरानी कहते हैं कि, "हुसैन की ग्राम यात्रा कई कारणों से एक महत्वपूर्ण कृति है. इसका विशाल आकार इसे अद्वितीय बनाता है.

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एमएफ हुसैन ने साल 1954 में ग्राम यात्रा पेंटिंग बनाई थी एमएफ हुसैन ने साल 1954 में ग्राम यात्रा पेंटिंग बनाई थी

विकास पोरवाल

  • नई दिल्ली,
  • 24 अप्रैल 2025,
  • अपडेटेड 9:19 PM IST

तकरीबन महीने भर पहले कला जगत से आई एक खबर ने न सिर्फ चौंकाया, बल्कि इस खबर ने एक बार फिर कला की दुनिया में भारत को सबसे ऊंची जगह, सबसे ऊंचा आयाम दिया. हुआ यूं कि मशहूर चित्रकार रहे एम एफ हुसैन की एक पेंटिंग अपनी सबसे महंगी नीलामी के कारण सुर्खियों में आ गई थी और जब इसके लिए फाइनल प्राइस 13.75 मिलियन डॉलर (लगभग ₹100 करोड़) का ऐलान हुआ तो नीलामी हॉस तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा.

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हुसैन की पेंटिंग, 'ग्राम यात्रा' का सम्मोहन
तालियों की ये गूंज, ये शोर क्यों मचा, जब आप तफसील से इस बारे में सोचें और हुसैन की उस पेंटिंग की बारीकी पर आपका ध्यान जाए, उससे पहले उसका टाइटल ही आपको सम्मोहित कर देगा.  हुसैन की इस पेंटिंग का नाम है ग्राम यात्रा. ये नाम सामने आता ही तालियों का शोर कहीं नेपथ्य में चला जाता है और मस्तिष्क के ध्यान केंद्र में न जाने कितने आते-जाते से दृश्य उभरने लगते हैं. 

कहीं खेत-खलिहान, कहीं गाय-गोरू, चूल्हा-चौका और चक्की, पगडंडी, पनघट, घर-झोपड़ी, ताल-तलैया और न जाने क्या-क्या. हुसैन साहब ने अपनी 'ग्राम यात्रा' पेंटिंग में इसी अहसास कूची और कलर के सहारे कैनवस पर जिंदा कर दिया था. ये बात कोई आज, कल या 10-20 साल पहले की नहीं है, उन्होंने यह काम 1954 में किया था.   

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'ग्राम यात्रा' पेंटिंग का विषय
न्यूयॉर्क के रॉकफेलर सेंटर में जब क्रिस्टीज़ की नीलामी में मकबूल फिदा हुसैन की प्रतिष्ठित कृति 'ग्राम यात्रा (1954)' 13.75 मिलियन डॉलर (लगभग ₹100 करोड़) में बिकी थी. यह आधुनिक भारतीय कला के लिए अब तक की सबसे बड़ी धन राशि साबित हो रही है. इससे पहले यह रिकॉर्ड अमृता शेरगिल की 1937 की ऑयल पेंटिंग 'द स्टोरी टेलर' के नाम था, जो सितंबर 2023 में मुंबई में सफ्रोनआर्ट के जरिए 7.4 मिलियन डॉलर में बिकी थी. हुसैन का पिछला रिकॉर्ड 3.1 मिलियन डॉलर का था, जो बीते साल लंदन में उनकी पेंटिंग 'अनटाइटल्ड (रिइंकार्नेशन)' के जरिए बना था. 

14 फीट लंबी और 13 दृश्यों में बंटी 'ग्राम यात्रा'
ग्राम यात्रा एक विशाल म्यूरल है, जो लगभग 14 फीट लंबी है. इसमें  13 दृश्यों में भारतीय ग्रामीण जीवन की झलकियां समाई हुई हैं. मीडिया बातचीत में सफ्रोनआर्ट के सीईओ और सह-संस्थापक दिनेश वज़ीरानी कहते हैं कि, "हुसैन की ग्राम यात्रा कई कारणों से एक महत्वपूर्ण कृति है. इसका विशाल आकार इसे अद्वितीय बनाता है, लेकिन इससे भी महत्वपूर्ण इसका विषय है, जो भारतीय ग्रामीण जीवन को दर्शाता है. यह महात्मा गांधी के दर्शन से मेल खाता है, जो ग्रामीण भारत को राष्ट्र के विकास का आधार मानते थे. यह पहली बार है जब हुसैन की कृति ने भारतीय कला बाजार में विश्व रिकॉर्ड बनाया है, जो पहले रज़ा, तय्यब मेहता, अमृता शेरगिल और वी.एस. गायतोंडे जैसे कलाकारों ने हासिल किया था."

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यह पेंटिंग, जिसे 'वोलोडार्स्की हुसैन' के नाम से भी जाना जाता है, पिछले 70 वर्षों से भारत में नहीं देखी गई थी. क्रिस्टीज़ के अनुसार, इसे यूक्रेनी मूल के नॉर्वे-निवासी डॉक्टर लियोन एलियास वोलोडार्स्की ने खरीदा था, जो विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए नई दिल्ली में थोरैसिक सर्जरी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने आए थे. वोलोडार्स्की ने 1964 में इस पेंटिंग को ओस्लो यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल को दान कर दिया था. नीलामी से प्राप्त राशि का उपयोग अस्पताल में भविष्य के डॉक्टरों के प्रशिक्षण के लिए किया जाएगा.

1954 में बनाई गई थी पेंटिंग
अब थोड़ी बातें मशहूर पेंटर के बारे में भी कर लेते हैं. भारतीय आधुनिक कला के पर्याय और अपनी कृतियों के जरिए भारत की आत्मा को कैनवास पर उतारने वाले मकबूल फिदा हुसैन ने कई कृतियां रचीं जो सीधे अंतिम पंक्ति में खड़े व्यक्ति को समर्पित रहीं. उनकी 1954 में बनाई गई पेंटिंग ग्राम यात्रा न केवल उनकी कला की गहराई को दर्शाती है, बल्कि भारतीय ग्रामीण जीवन के सार को भी जीवंत करती है. 

ग्राम यात्रा में भी सामूहिक रूप से भारत के गांवों की जीवंतता, सादगी और सामुदायिक भावना को उजागर होती है और 1954 की यह पेंटिंग उस दौर की है, जब भारत स्वतंत्रता के बाद अपने राष्ट्रीय चरित्र को परिभाषित करने की प्रक्रिया में था. इस समय, महात्मा गांधी के ग्रामीण भारत को राष्ट्र की रीढ़ मानने वाले दर्शन ने देश के बुद्धिजीवियों और कलाकारों को गहराई से प्रभावित किया था. हुसैन ने इस पेंटिंग के जरिए गांधीवादी आदर्शों को कला के रूप में सामने रखा था. 

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हुसैन की यह कृति अपने विशाल आकार के कारण भी अनूठी है. 14 फीट की लंबाई इसे उनकी सबसे महत्वपूर्ण और प्रभावशाली रचनाओं में से एक बनाती है. प्रत्येक दृश्य में ग्रामीण जीवन के विभिन्न पहलू—जैसे खेती, सामुदायिक उत्सव, दैनिक कार्य, और पारिवारिक जीवन—को जीवंत रंगों और गतिशील रेखाओं के साथ चित्रित किया गया है. यह पेंटिंग न केवल दृश्यात्मक रूप से प्रभावशाली है, बल्कि भावनात्मक और वैचारिक स्तर पर भी गहरी छाप छोड़ती है.

हुसैन की ग्राम यात्रा उनकी शैली की कई विशेषताओं को प्रदर्शित करती है, जो उन्हें भारतीय आधुनिक कला में अग्रणी बनाती हैं. इनमें शामिल हैं, रंगों का जीवंत उपयोग. हुसैन ने इस पेंटिंग में मिट्टी के रंगों, जैसे लाल, पीला, और भूरा के साथ चटकीले रंगों का संतुलन बनाया है. ये रंग ग्रामीण भारत की मिट्टी, फसलों, और उत्सवों की जीवंतता को दर्शाते हैं. प्रत्येक दृश्य में रंगों का चयन उस विशेष दृश्य की भावना को और गहरा करता है.

पेंटिंग का बारीकियों में गतिशीलता और ऊर्जा
अब आप पेंटिंग को देखते हुए इसकी रेखाओं पर गौर कीजिए. हुसैन अपनी पेंटिंग में जो आउटलाइन रखते हैं, उनमें एक गतिशीलता भी दिखती है और ऊर्जा से भरी होती हैं. ग्राम यात्रा में, मानव और पशु आकृतियां सरल लेकिन प्रभावशाली रेखाओं के साथ बनाई गई हैं, जो ग्रामीण जीवन की गतिशीलता को दर्शाती हैं. पेंटिंग के 13 दृश्य एक कहानी की तरह जुड़े हुए हैं, जो ग्रामीण भारत की सामूहिक यात्रा को दर्शाते हैं. इसमें खेतों में काम करते किसान, गाँव के उत्सव, और परिवारों के दैनिक जीवन के क्षण शामिल हैं. यह कृति ग्रामीण जीवन की सादगी और उसकी गहरी सांस्कृतिक जड़ों को उजागर करती है.

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ग्राम यात्रा कृति उस समय अस्तित्व में आई, जब भारत अपनी स्वतंत्रता के बाद अपनी पहचान को फिर से परिभाषित कर रहा था. 1947 में स्वतंत्रता के बाद, भारतीय कलाकारों ने पश्चिमी प्रभावों और अपनी सांस्कृतिक जड़ों के बीच संतुलन खोजने की कोशिश की. हुसैन, जो तब प्रोग्रेसिव आर्टिस्ट्स ग्रुप (PAG) के फाउंडर मेंबर्स में से एक थे, उन्होंने इस पेंटिंग में आधुनिकता और परंपरा का अनूठा संगम उकेर कर सामने रखा. 

ग्राम यात्रा का इतिहास भी उतना ही रोचक है जितनी कि यह कृति. इसे यूक्रेनी मूल के नॉर्वे-निवासी डॉक्टर लियोन एलियास वोलोडार्स्की ने 1950 के दशक में खरीदा था, जब वे विश्व स्वास्थ्य संगठन के लिए नई दिल्ली में थोरैसिक सर्जरी प्रशिक्षण केंद्र स्थापित करने आए थे. वोलोडार्स्की ने 1964 में इस पेंटिंग को ओस्लो यूनिवर्सिटी हॉस्पिटल को दान कर दिया, जहाँ यह पिछले 70 वर्षों तक रही. इस दौरान यह पेंटिंग भारत में नहीं देखी गई, जिसने इसे एक रहस्यमयी आकर्षण प्रदान किया.

2025 में क्रिस्टीज़ की नीलामी में इस पेंटिंग की बिक्री ने इसे फिर से भारत ला दिया. क्रिस्टीज़ ने इसे एक "अज्ञात संस्थान" द्वारा खरीदा गया बताया, लेकिन कला संग्रहकर्ता हर्ष गोयनका ने दावा किया कि इसे किरण नदर ने खरीदा है. यदि यह सच है, तो यह पेंटिंग संभवतः किरण नदर म्यूज़ियम ऑफ़ आर्ट में प्रदर्शित हो सकती है, जिससे भारतीय कला प्रेमियों को इसे देखने का अवसर मिलेगा.

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अन्य कलाकारों की कृतियों के प्रति भी बढ़ेंगा सम्मान
ग्राम यात्रा की रिकॉर्ड-तोड़ बिक्री ने भारतीय कला बाजार को नई ऊंचाइयों पर पहुँचाया है. इससे पहले, अमृता शेर-गिल की द स्टोरी टेलर ने 7.4 मिलियन डॉलर का रिकॉर्ड बनाया था, लेकिन हुसैन की यह कृति लगभग दोगुनी कीमत पर बिकी. यह बिक्री न केवल हुसैन की कृतियों की कीमतों को बढ़ाएगी, बल्कि रज़ा, मेहता, शेर-गिल, और गायतोंडे जैसे अन्य आधुनिक भारतीय कलाकारों की कृतियों के मूल्य को भी प्रभावित करेगी.

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