नीतीश ने टेका माथा, तेजस्वी ने लिया प्रसाद... पटना के महावीर मंदिर का इतिहास जहां आशीर्वाद लेने पहुंचते हैं नेता

बिहार विधानसभा चुनाव के दो चरणों के बाद आज मतगणना जारी है, जिसमें उम्मीदवारों की किस्मत का फैसला हो रहा है. पटना के प्रसिद्ध महावीर मंदिर में भी चुनावी माहौल देखने को मिल रहा है, जहां राजनीतिक नेताओं ने पूजा-अर्चना की.

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पटना जंक्शन के बाहर मौजूद है प्रसिद्ध महावीर मंदिर पटना जंक्शन के बाहर मौजूद है प्रसिद्ध महावीर मंदिर

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 नवंबर 2025,
  • अपडेटेड 10:43 AM IST

बिहार विधानसभा चुनाव में आज बड़ा महत्वपूर्ण दिन है. दो चरणों में हुए मतदान के लिए काउंटिंग शुरू हो चुकी है. मतगणना जारी है और इसीके साथ उम्मीदवारों की किस्मत का पिटारा भी खुलने लगा है. इन सबके बीच चर्चा में है पटना का प्रसिद्ध महावीर मंदिर. इस चुनावी दौर में हनुमान जी के इस मंदिर में भी गहमा-गहमी और वीआईपी हलचल बढ़ गई है. 

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नीतीश कुमार ने चुनाव परिणाम से पहले इस मंदिर में दर्शन कर पूजन किया था और जीत की कामना के लिए माथा टेका था. वहीं राजद नेता तेजस्वी यादव भी शुक्रवार सुबह जब एक पोलो मार्ग पर स्थित आवास में बने वार रूम पहुंचे तो यहां मौजूद उनके वॉलंटियर्स ने उन्हें पटना महावीर मंदिर की पूजा का प्रसाद खिलाया. तेजस्वी ने प्रसाद खाने के बाद मतगणना के रुझानों के देखना शुरू किया.

असल में पटना का महावीर मंदिर बिहार ही नहीं बल्कि दूर-दूर तक प्रसिद्ध हो चुका है. पटना जंक्शन के ठीक पास ही स्थित यह मंदिर सीढ़ीदार गोपुरम शैली में बना है. मंदिर का निर्माण बहुत प्राचीन नहीं है, लेकिन इसकी मौजूदगी बीते 70-80 साल के इतिहास को समेटे हुए है.

क्या है मंदिर का इतिहास?
इस मंदिर का इतिहास देखने जाएं तो पता चलता है कि एक साधु महाराज रेलवे स्टेशन के पास मौजूद एक पीपल के पेड़ के नीचे रखी हनुमत विग्रह की पूजा किया करते थे.  
आज यह मंदिर पटना जंक्शन के ठीक सामने है, जहां पहले एक विशाल पीपल का पेड़ हुआ करता था. शुरुआत में रेलवे की जमीन पर महावीर हनुमान जी की एक जोड़ी प्रतिमा स्थापित की गई और पूजा के लिए श्रद्धालु इकट्ठा होने लगे. 

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उस समय स्टेशन तक बैलगाड़ियां चलती थीं और तब चंदे से जुटाई गई ईंटें इन्हीं बैलगाड़ियों से ढोई गईं और मंदिर का निर्माण शुरू हुआ. मंदिर बनने तक श्रद्धालु यहां ढोलक झाल आदि बजाते हुए चैता गाते थे और मंदिर निर्माण का प्रचार करते थे. चैत्र नवरात्र के समय यहां विशेष आयोजन किया जाता था और रामनवमी के साथ चैत्र पूर्णिमा पर बड़ी भीड़ जुटने लगी थी. 

कैसे हुआ मंदिर का निर्माण?
मंदिर के वर्तमान स्वरूप का निर्माण वर्ष 1983 से 1985 के बीच हुआ, जिसमें आचार्य किशोर कुणाल और उनके भक्तों का विशेष योगदान रहा. मंदिर में भगवान हनुमान की दो युग्म प्रतिमाएं स्थापित हैं पहली "परित्राणाय साधूनाम्" (सज्जनों की रक्षा के लिए) और दूसरी "विनाशाय च दुष्कृताम्" (दुष्टों के विनाश के लिए).

यह मंदिर 1900 ईस्वी तक रामानंद संप्रदाय के अंतर्गत आता था, फिर 1948 तक यह गोसाईं संन्यासियों के अधीन रहा. आज यह मंदिर बिहार का महत्वपूर्ण और प्रभावशाली मंदिर है. यहां खास मौकों पर राजनीतिक जमावड़ा भी लगता है. मंदिर का प्रसादम् भी बेहद महत्वपूर्ण है जो तिरुपति लड्डू की ही तरह नैवेद्यम के रूप में जाना जाता है. तिरुपति मंदिर के बाद यह दूसरा ऐसा मंदिर है जहां सबसे अधिक मात्रा में नैवेद्यम (लड्डू) की बिक्री होती है.
 

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