ऋग्वेद के दशम मंडल में एक सूक्ति है,
हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेक आसीत्।
स दाधार पृथिवीं द्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम॥ --- (ऋग्वेद -10-121-1)
ऋग्वेद की इस सूक्ति में हिरण्यगर्भ शब्द का पहली बार प्रयोग होता है. यह ब्रह्मांड की वह सबसे शुरुआती अवस्था है, जहां सब कुछ है भी और नहीं भी. यानी जो है उसे व्यक्त नहीं किया जा सकता है, लेकिन वह अव्यक्त भी नहीं है. यह सोने का अंड, सारी ऊर्जा को खुद में समेटे हुए है और फिर इसी से सृष्टि की उत्पत्ति होती है. यानी वह यह गर्भ जहां आत्मा ऊर्जा के रूप में निवास करती है.
इस बात को यहां समझा पाना बेहद मुश्किल है, बल्कि पुराणों में तो ऐसा भी लिखा है कि बड़े-बड़े ज्ञानी ऋषि भी इसे न तो समझ पाए हैं और न ही इसकी पूरी तरह व्याख्या कर पाए हैं. उन्होंने इस विषय को अनादि, अनंत, अखंड, अभेद और बहुत रहस्यपूर्ण बताकर ही छोड़ दिया है. सोचिए इतने गंभीर विषय को नृत्य शैली में प्रस्तुत कर पाना कितनी बड़ी चुनौती रही होगी, लेकिन आज से लगभग 31 साल पहले श्रीराम भारतीय कला केंद्र ने इस विषय को मंच के जरिए समझाने का बीड़ा उठाया.
उन्होंने इसे संकल्प बना लिया तो यह पूरा हुआ मयूरभंज छऊ नृत्य की भावपूर्ण प्रस्तुति के तौर पर और इस अभूतपूर्व भाव को अपनी खूबसूरत-अद्भत भंगिमाओं से रोचक बना दिया शिवम साहनी की प्रस्तुति ने.
परिक्रमाः आत्मन की यात्रा
श्रीराम भारतीय कला केंद्र की ओर से आयोजित केंद्र डांस फेस्टिवल का मंगलवार को दूसरा दिन था और इस मौके पर संस्थान की ओर से विशेष प्रस्तुति दी गई है, जिसका नाम था परिक्रमा.
परिक्रमा, कुछ भी हो सकती है, सूर्य के चारों ओर धरती समेत अन्य ग्रहों की परिक्रमा, ग्रहों के चारों ओर उपग्रहों की परिक्रमा या फिर मंदिर में ईश्वर की प्रतिमा के चारों ओर श्रद्धालु की परिक्रमा.
लेकिन अब परिक्रमा के सूक्ष्म भाव की ओर बढ़िये, अपने हृदय में झांकिए, पहचानिए... क्या हम परिक्रमा नहीं कर रहे हैं? यही सवाल हजारों साल पहले जब भारतीय मनीषा के मन-मस्तिष्क में उठा तो वेद रचे गए और वेदों के जरिए आज हम ये जानते हैं कि आत्मा (आत्मन) पंच तत्वों से बना शरीर धारण करती है, फिर यह शरीर इंद्रियों और ज्ञानेंद्रियों से गति पाता है और जीवन की परिक्रमाएं शुरू हो जाती हैं.
तालियों से गूंजा कमानी सभागार
कमानी ऑडिटोरियम में हुई इस विशेष प्रस्तुति में 21 वर्षीय शिवम साहनी ने आत्मन का केंद्रीय किरदार निभाया और बड़ी ही खूबसूरती से आत्मा के मनोभावों को प्रस्तुत किया. यह आत्मा पहले हिरण्यगर्भ के भीतर उसी ईशतत्व में समाई होती है, फिर कालचक्र आगे बढ़ता है, यह ब्रह्म एक कमल पुष्प की तरह विकसित होता, पखुंड़ियां खिलते हुए खुलती हैं और फिर आत्मा धीरे-धीरे स्वरूप में विकसित होती हैं.
अब यहां आत्मा को मिलते हैं पंचभूत, आकाश, जल, अग्नि, वायु और पृथ्वी. मयूरभंज छऊ नृत्य और अष्टांग योग के सुंदर मेल के साथ नर्तकों का एक समूह इन तत्वों को प्रदर्शित करता है. मंच पर लाइटिंग का सुंदर संयोजन इन तत्वों की दैवीय उपस्थिति का अनुभव कराता है और जैसे-जैसे जो भी तत्व सामने आते हैं उनके भाव दर्शकों पर सीधे असर डालते हैं. इस बात की गवाही दे रही थी अंधेरे ऑडिटोरियम में गूंज रही तालियों की गड़गड़ाहट.
इन सारे भावों को प्रस्तुत करने में आपको कितनी मुश्किलों का सामना करना पड़ा? प्रस्तुति के बाद यह सवाल जब कोरियोग्राफर की भूमिका में रहे राजकुमार शर्मा से किया गया तो उन्होंने कहा, इस कॉन्सेप्ट को मंच पर उकेरने का विचार जब पहली बार बना तो सबसे पहले इसी सवाल से सामना हुआ कि हम आत्मन को कैसे दिखाएंगे? तो उसे एक सफेद पोशाक में सामने लाए. पंच तत्वों को दिखाना था तो हमने पुराणों में वर्णित उनकी खूबियों को देखा-समझा. वायु तत्व के लिए हमारे नृत्य कलाकार भागते हुए बवंडर जैसा दृश्य बनाते हैं. जल तत्व के लिए वह लेटकर लहर की तरह सामने आते हैं. अग्नि तत्व की खूबी है कि उसे नियंत्रित नहीं किया जा सकता, तो उसे हमारी नृत्यांगनाएं अपनीं तीव्र लचक वाली नृत्य शैली से प्रस्तुत करती हैं. उनके बाल खुले होते हैं जो लपटों का संकेत हैं.
भावुक कर देने वाला पलः शिवम साहनी
शिवम साहनी इस प्रस्तुति को लेकर जब अपने अहसास बयां करते हैं तो वह कहते हैं कि मेरे लिए ये वाकई एक भावुक कर देने वाला पल होता है. प्रस्तुति के बाद जब प्यारी ऑडियंस मिलने आती है और वे बताते हैं कि उन्हें आत्मन का ये खूबसूरत नैसर्गिक स्वरूप उनके भीतर तक उतर गया है तो सच मानिए ऐसा लगता है कि एक साध पूरी हो गई है. खुशी होती है यह जानकर कि जिस भाव को लेकर हमारे गुरु हमें यह सिखा रहे थे, और जब मैंने इसे मंच पर प्रस्तुत किया तो यह लोगों के बीच उसी साधारण और आसान भाषा में पहुंचा.
आत्मन के किरदार के विषय में वह कहते हैं कि यह परिक्रमा आत्मा की यात्रा का है. आप इसे सिर्फ जीवन और मरण के बीच के सफर के तौर पर मत देखिए. यह बात उससे भी परे है. गीता भी कहती है कि आत्मा के साथ जो चेतना है, जो ऊर्जा है उसका चक्र चलता रहता है. आत्मा जिस ब्रह्म से निकलकर संसार में आती है, फिर लौटकर उसी ब्रह्म में मिल जाती है और फिर दोबारा आती है. इस तरह परिक्रमा चलती रहती है.
नृत्य में योग और आसन भी शामिल
इस नृत्य संरचना को संजोने वाले गुरु शशिधरन नायर इस प्रस्तुति में साल दर साल आए बदलाव के बारे में बताते हुए कहते हैं कि 32 सालों में एक बदलाव तो ये आया है कि इसके कलाकार बदलते रहे हैं. वह हंसते हुए कहते हैं कि मैं खुद भी आत्मन को प्रस्तुत कर चुका हूं और उस समय तो योग आसन की बहुत सी क्रियाएं और अवस्थाएं भी शामिल थीं. इस प्रस्तुति की मांग है कि शरीर में एक जरूरी लोच तो होना ही चाहिए, ताकि योगासन स्पष्ट तरीके से प्रस्तुति में शामिल हो सके और 'परिक्रमा' का सही संदेश, सही रूप में दर्शकों तक पहुंचे.
बैकग्राउंड में शुभा मुद्गल के संगीत से सजे हुए कबीर के पद आत्मन के भाव को विस्तार देने में सहज ही सहयोगी लगे. कान में जब आवाज पड़ती है तो भीतर तक शांति ही शांति घुलती चली जाती है और मंच की आवाज अंदर गूंजने लगती है.
'बहुरि हम काहे कूं आवहिगे,
बिछुरे पंचतत की रचना,तब हम रांमहिं पांवहिगे,
पृथी का गुण पाणीं सोष्या,पांनों तेज मिलांवहिगे.'
परिक्रमा का भाव हमारे जन्म और मृत्यु से परे आत्मा और परमात्मा के मिलन की बात करता है, लेकिन सहजता के साथ देखें तो यह परिक्रमा हमारी रोजमर्रा की जिंदगी में भी है. एक आम आदमी सुबह घर से निकलता है, काम पर जाता है, मेहनत करता है, थक कर घर लौटता है, सो जाता है और अगली सुबह फिर से उसी यात्रा पर चल देता है. यह हर आम आदमी के रोज के, हर एक दिन की बात है. यही सच है. परिक्रमा हमारा-आपका हम सबका सच है.
पंचायत वेब सीरिज में एक सीन है. सचिव जी आर्केस्ट्रा में नाचने वाली एक लड़की से पूछते हैं कि मन लगता है आपका ये सब करने में? जवाब में वह नाचने वाली भी सचिव जी से सवाल दाग देती है कि आप जो कर रहे हैं, उसमें आपको अच्छा लग रहा है? सचिव जी कहते हैं नहीं... नाचने वाली लड़की कहती है फिर नाच तो आप भी रहे हैं. हम सब अपनी-अपनी जिंदगी में नाच तो रहे ही हैं.
परिक्रमा हमें सच से रूबरू कराने की ताकत रखता है, और सच दिखाता भी है.
विकास पोरवाल