दिलचस्प है जिमीकंद को जमीन के भीतर से निकालकर गमले तक पहुंचाने की ये कहानी

एक दिन जब मैं पानी देने गया और दूर से ही देखा गमले में कोई नयी चीज नजर आ रही है. थोड़ा करीब पहुंचा तो लगा जैसे कोई सांप हो. जब तक पत्ते निकल कर नहीं आते, जिमीकंद का पौधा ऐसा ही लगता है.

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Elephant foot yam plant Elephant foot yam plant

मृगांक शेखर

  • नई दिल्ली,
  • 13 नवंबर 2023,
  • अपडेटेड 4:38 PM IST

सर्दियों के मौसम में और दिवाली के अवसर पर जिमीकंद की डिमांड बहुत बढ़ जाती है. आमतौर पर जिमीकंद की सब्जी बनाए जाने की परंपरा रही है, लेकिन अब बनारस जैसे शहरों में मिठाई की दुकानों पर जिमीकंद के लड्डू भी मिलने लगे हैं. जिमीकंद कई नामों से जाना जाता है- कहीं ओल, कहीं सूरन तो ऑनलाइन ये  Elephant Foot Yam के नाम से भी मिलता है.आज आपको बताते हैं गमले में जिमीकंद उगाने की पूरी कहानी.

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बचपन में तो मैंने देखा था कि बगैर बोये भी ये हर साल उग आता था लेकिन गमले में लगाने के लिए कई बार प्रयास करने पड़े. हालांकि, एक बार मेरे गमले में जगह बना लेने के बाद इसने कभी निराश नहीं किया और परंपरा निभाते हुए हर साल ये अपने आप उग आता है. जिमीकंद से बचपन की मेरी बहुत सारी यादें जुड़ी हुई हैं. गांव में हमारे घर के पीछे खाली जमीन थी, जिस पर हम लोग खेती-खेती खेला करते थे.

लकड़ी में खुरपी बांधकर हल बना लेते और कभी अकेले तो कभी दोस्तों के साथ अपना खेत भी जोत डालते. कभी कोई किसान बन जाता और कभी कोई बैल भी बन जाता. हमारी खेती तो एक छोटे से हिस्से में ही होती, लेकिन उस जमीन का बड़ा हिस्सा जंगल बना रहता. चारों ओर से बाउंड्री होने के चलते कोई जानवर भी नहीं आ सकता था जो चारा न मिले तो तोड़ फोड़ ही मचा दे. नीम, बबूल, अमरूद और शरीफा जैसे फलों के पेड़ भी लगे थे, लेकिन वे ऊपर ही दिखाई पड़ते थे. जिमीकंद के पत्तों ने पूरी जमीन ही ढक डाली थी.

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जब खेती से हम लोग थक जाते या मन ऊब जाता तो जिमीकंद वाले इलाके में जाकर चोर सिपाही खेलना शुरू कर देते. जिमीकंद के तने काफी चौड़े होते हैं, लेकिन बड़े ही नाजुक होते हैं. हरे भरे और हवा के साथ झूमते. मस्त. सुबह सुबह ओस की बूंदे ओढ़े हुए. कभी ये हमारे लिये चोर होते तो कभी उत्पात मचा रही भीड़. वहां पहुंचते ही हम में से कोई जोर से कमांड देता… लाठीचार्ज. और उसके बाद हम टूट पड़ते. देखते-देखते बहुत सारे जिमीकंद टूट कर जमीन पर बिखरे हुए होते. जैसे कोई बुलडोजर चला दिया गया हो. 

खेती तो हम लोग खुलेआम कर सकते थे, लेकिन इस खेल के लिए हमें घर वालों की नजर बचा कर निकलना पड़ता था. असल में जिमीकंद की घनी बस्ती में नीचे सांप-बिच्छू भी छुपे होते थे.  ऐसे तो हम लोग कहीं भी नंगे पांव खेलने निकल जाते थे, लेकिन इस ड्यूटी पर जूते पहन कर ही जाते थे. कई जूते तो रखे रखे छोटे हो गये थे. अगर इस्तेमाल हुए होंगे तो जिमीकंद के साथ चोर सिपाही के खेल में ही हुए होंगे.

कई बार तो सांप बिच्छू के डर से हम लोग खुद ही भाग खड़े होते, और ऐसा भी हुआ होगा कि हमारे डंडों से डर कर सांप बिच्छू भी भाग जाते हों. हमारी खुशकिस्मती रही कि कभी कोई हादसा नहीं हुआ. 

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जमीन छूट जाने के बाद जब मैंने गमले में खेती शुरू की तो सबसे पहले जिमीकंद की ही याद आई थी. गमले में उगाने के लिए पहली चुनौती तो यही थी कि बीज कहां मिलेंगे. नर्सरी वाले ने तो पहले ही हाथ खड़े कर दिये थे. जब कई बार जाकर पूछा तो कोई भी पौधा उठाकर थमाने की कोशिश करते. अपनी तरफ से समझाते कि जिमीकंद को गमले में उगाया ही नहीं जा सकता. 

मार्केट गए तो मालूम हुआ सब्जी वाले जिमीकंद को टुकड़ों में काट-काटकर बेच रहे थे. किसी सब्जीवाले ने ही बताया कि मंडी में मिल सकता है. मंडी में जिमीकंद का पूरा फल तो मिल रहा था, लेकिन वो हिस्सा डैमेज नजर आता जिससे पत्तियां और तने उगने की संभावना होती है. तभी याद आया कि क्यों न एक बार गांव में पूछें. कोई आनेवाला होगा तो मंगा लेंगे. जिस जमीन पर जिमीकंद उगे होते थे, उसके कुछ हिस्से पर तो कंस्ट्रक्शन हो चुका था, लेकिन कुछ हिस्से में अब भी फल-फूल और तरह तरह के पौधे लगे हुए हैं - लेकिन अब वहां जिमीकंद नहीं उगते. क्योंकि जमीन से चार-पांच फीट ऊपर तक मिट्टी डाल दी गई है. ये भी तो जरूरी नहीं कि मिट्टी ही डाली गई हो, गड्ढे भरने के लिए तो कंकड़-पत्थर कुछ भी डाल देते हैं. 

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मन में लगा जिमीकंद को बचपन की यादों के साथ अलविदा ही कहना पड़ेगा. तब तक मुझे समझ में आ चुका था कि कोई सब्जी वाला ही इस काम में मदद कर सकता है. एक एक करके कई सब्जीवालों से कहते रहे. यहां तक बोल चुके थे कि कितना भी बड़ा मिले, कितनी भी कीमत क्यों न हो, मुझे लाकर दें. सभी आश्वस्त करते कि ला देंगे. बाद में जब भी पूछते, एक ही जवाब सुनने को मिलता - नहीं मिला. मालूम नहीं उनमें से कितने मेरी बातों को गंभीरता से लेते. 

काफी दिनों बाद एक लड़का मिला. वो कभी कभी मेरे यहां सब्जी देने आता था. एक दिन वो दो बैंगन और एक मिर्च का पौधा लेकर आया. बोला, ‘सर आप इसे अपनी बालकनी में लगा लीजिये.’

मुझे हैरानी हुई कि इसे कैसे मालूम कि मेरी बालकनी में ऐसे पौधे लगे हैं. कभी अंदर तो आया नहीं. पूछा तो उसने बताया कि जब भी वो हमारी तरफ से गुजरता है, मेरे गमले में लगे गन्नों को रुक कर जरूर देखता है. पूछने पर उसने बताया कि ये बात उसे सोसाइटी के गार्ड से मालूम हुई थी. और जब मैंने उससे सब्जी मंगवाई तो साथ में वो पौधे भी लेकर आ गया. 

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मुझे लगा ये तो मेरी खेती का इकिकाई मिल गया. मुझे विश्वास हो चुका था कि वो लड़का मुझे जिमीकंद का बीज जरूर ला देगा. वो पहला शख्स था जो बीच बीच में खुद ही अपडेट करता रहा कि वो रोज मंडी में मेरे लिए जिमीकंद खोजता है, लेकिन उसे मिला नहीं. और एक दिन वो एक बड़े से जिमीकंद के साथ मुस्कुराते हुए मेरे सामने खड़ा था. साथ में दो छोटे छोटे जिमीकंद भी थे जिनके उग आने की संभावना थी. 

मैंने तीनों को अलग-अलग गमलों में लगा दिया. एक तो बड़ा गमला था, दो छोटे वाले थे. काफी दिनों तक पानी देते वक्त उन गमलों के पास इस उम्मीद के साथ पहुंचता कि शायद उग आया हो, लेकिन करीब होकर भी कामयाबी आसानी से नजर तो आती नहीं. मेरी उम्मीद कभी कम नहीं होती, लेकिन इस मामले में मैं निराश हो चुका था. लगता था, गमले में सब कुछ उगाया जा सकता है, लेकिन जिमीकंद नामुमकिन है. 

कुछ दिन बाद मैंने दोनों छोटे गमलों की मिट्टी बड़े वाले गमले में पलट दी, और उनमें दूसरे प्लांट लगा दिये. फिर एक दिन बड़े वाले गमले में नीम लगा दिया. लंबे गैप के चलते मुझे तब याद नहीं रहा कि उसी गमले में जिमीकंद लगे हुए हैं. गमले में नीम का पौधा धीरे धीरे बड़ा होने लगा. अब में जिमीकंद के लिए नहीं, बल्कि नीम के लिए गमले में पानी और खाद डाला करता था. कहीं कोई उम्मीद नजर नहीं आ रही थी, शायद इसीलिए जिमीकंद की सारी यादें ओझल होने लगी थीं. मेरा फोकस बदल चुका था. मैं जिमीकंद को भुलाकर दूसरे पौधों के साथ जीने लगा था.

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किसान चाहे गांव में जमीन पर खेती करे, चाहे शहर में गमले में वो किसान ही होता है. अपने खेतों की भी वो घर की तरह ही हमेशा देखभाल करता है. पौधे और फसल भी उसके परिवार के ही सदस्य होते हैं - और हरियाली ही किसान के लिए खुशहाली होती है. एक दिन जब मैं पानी देने गया और दूर से ही देखा गमले में कोई नई चीज नजर आ रही है. थोड़ा करीब पहुंचा तो लगा जैसे कोई सांप हो. जब तक पत्ते निकल कर नहीं आते, जिमीकंद का पौधा ऐसा ही लगता है.

पास पहुंचा तो समझ में आया कि चमत्कार हो चुका है. मुझे उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिये थी. मैंने तो अपना कर्म किया ही था. फल भला वक्त से पहले मिलता किसे है. तभी ये भी समझ में आया कि जिमीकंद तो अपने मौसम में ही उगता है, समय से पहले तो मैंने बेकार की उम्मीदें पाल रखी थी. जब पहली बार गमले में जिमीकंद का पौधा देखा तो ऐसा लगा जैसे बचपन में बिछड़ा भाई या घर छोड़कर गया हुआ बेटा वापस लौट आया हो. 

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