पहाड़ों पर लगने वाले इस एक सेब की कीमत 500 रुपये! जानें क्यों कहलाता है ब्लैक डायमंड?

आमतौर पर लाल सेब के पेड़ों पर फल तकरीबन 4-5 सालों में आने लगते हैं. लेकिन, पेड़ पर काला सेब लगने में 8 साल या उससे अधिक का समय लग जाता है. माना जाता है कि ये अधिक सेब मीठे तो होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए लाल सेबों की तरह फायदेमंद नहीं होते हैं.

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 Black diamond tibet Black diamond tibet

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 4:53 PM IST

यदि लाल सेब का रंग काला पड़ने लगता है तो इसमें सड़न आने लगती है और इसे उठाकर फेंक देते हैं. लेकिन दुनिया में एक ऐसी जगह भी है, जहां काले सेब की खेती की जाती है. इसके प्रत्येक सेब की कीमत तकरीबन 500 रुपये होती है. महंगी कीमत के चलते इसे ब्लैक डायमंड कहा जाता है. इस सेब की खेती तिब्बत की पहाड़ियों पर की जाती है. 

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क्यों काला हो जाता है ये सेब?

तिब्बत की स्थानीय भाषा में इस सेब को नियू नाम से जाना जाता है. बता दें तिब्बत ऊंची पहाड़ियों पर स्थित है. ऐसे में यहां पर सूरज की किरणें फलों और फसलों पर सीधे पड़ती है. सूर्य की रोशनी और अल्ट्रावॉयलेट रेज पड़ने की वजह से सेब काले होने लगते हैं. इस सेब की चमक लोगों को अपनी ओर खींचती है. इस सेब का रंग बैंगनी भी हो जाता है. 

कब शुरू हुई थी इसकी खेती?

वैज्ञानिकों के अनुसार, इसके पेड़ पर फल आने में 8 साल तक का समय लगता है. सामान्य सेबों के मुकाबले इसका उत्पादन भी कम होता है. तिब्बत में इसकी खेती 2015 में शुरू की गई थी. 8 सालों में उगने के बाद इन सेबों की लाइफ स्पैन सिर्फ दो महीने की होती है. माना जाता है कि ये सेब मीठे और कुरकुरे होते हैं, लेकिन स्वास्थ्य के लिए लाल सेबों की तरह फायदेमंद नहीं होते हैं.

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आमतौर पर लाल सेब के पेड़ों में फल तकरीबन 4-5 सालों में आने लगते हैं. लेकिन, काले सेब में फल आने में 8 साल या उससे अधिक का समय लग जाता है. लाल सेब के पेड़ में 80 फीसदी सेब का उत्पादन हर साल होता है. वहीं, काले सेब के पेड़ में सिर्फ 30 फीसदी ही उत्पादन हो पाता है. जो खेतों से सीधे दूसरे देशों में निर्यात हो जाता है. जिसकी वजह से यह सेब तिब्बत के लोगों को भी भरपूर मात्रा में नहीं मिल पाता.

 

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