उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) के मिर्जापुर जिले में स्थित विंध्यवासिनी मंदिर (Vindhyavasini Temple) भारत के प्रमुख शक्तिपीठों में से एक है और इसे मां विंध्यवासिनी के रूप में पूजी जाने वाली आदिशक्ति का पावन स्थल माना जाता है. यह मंदिर विंध्य पर्वत श्रृंखला के मध्य स्थित होने के कारण ‘विंध्याचल धाम’ के नाम से भी प्रसिद्ध है. मान्यता है कि देवी दुर्गा ने महिषासुर का वध करने के बाद यहां निवास किया था, इसलिए भक्तों के लिए यह धाम अत्यंत शक्तिशाली और सिद्ध स्थल माना जाता है.
मंदिर में स्थापित मुख्य प्रतिमा ‘विंध्यवासिनी देवी’ की है, जिन्हें ‘माया देवी’ और ‘कालीखोहवाली मां’ के रूप में भी जाना जाता है. मंदिर के आसपास तीन प्रसिद्ध शक्तिपीठ, अष्टभुजा देवी, कालीखोह, और विंध्यवासिनी देवी मिलकर ‘त्रिकोण धाम’ बनाते हैं, जिसे हिंदू धर्म में अत्यंत पवित्र माना जाता है. नवरात्रि के चैत्र और शारदीय, दोनों पर्व यहां अत्यधिक धूमधाम से मनाए जाते हैं, जब लाखों श्रद्धालु दर्शन के लिए पहुंचते हैं.
विंध्याचल धाम सिर्फ धार्मिक महत्व ही नहीं बल्कि प्राकृतिक सौंदर्य का भी अनोखा संगम है. गंगा नदी के तट पर स्थित यह स्थान शांत वातावरण, घाटों और पवित्र कुंडों से युक्त है. यहां का विंध्यवासिनी घाट, कालभैरव मंदिर, सिंहस्थली, और रजबन वाली गली भी दर्शनीय स्थल हैं. मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए चौड़ी सीढ़ियां और सुव्यवस्थित मार्ग बनाए गए हैं, जिससे श्रद्धालुओं को आसानी रहती है.
सरकार और स्थानीय प्रशासन ने पिछले कुछ वर्षों में विंध्याचल धाम के विकास के लिए कई प्रोजेक्ट शुरू किए हैं, जिनमें कॉरिडोर निर्माण, सफाई अभियान और श्रद्धालुओं के लिए सुविधाओं का विस्तार शामिल है.
आज विंध्यवासिनी मंदिर न केवल आस्था का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत, आध्यात्मिक ऊर्जा और प्राचीन परंपराओं का सजीव प्रतीक भी है. यहां आने वाला हर भक्त मां के चरणों में शांति, शक्ति और सकारात्मक ऊर्जा का अनुभव करता है.