अक्षय या आंवला नवमी (Akshay Amla Navami) हर साल कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को मनाई जाती है. यह तिथि दीपावली और गोवर्धन पूजा के बाद आती है और इसे सतयुग का प्रारंभ दिवस भी माना जाता है. इस दिन आंवले के पेड़ की पूजा का विशेष महत्व होता है, इसलिए इसे “आंवला नवमी” कहा जाता है.
इस दिन किया गया दान, पूजन, स्नान और व्रत सब कुछ अक्षय फल प्रदान करता है, यानी इसका फल कभी नष्ट नहीं होता. इसी कारण इसे अक्षय नवमी भी कहा जाता है.
हिंदू धर्म में आंवला (Indian Gooseberry) को अत्यंत पवित्र वृक्ष माना गया है. कहा जाता है कि इसमें भगवान विष्णु का वास होता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, इस दिन आंवले के वृक्ष के नीचे भगवान विष्णु और देवी लक्ष्मी की पूजा करने से घर में सुख, समृद्धि और दीर्घायु का आशीर्वाद मिलता है. गरुड़ पुराण और स्कंद पुराण में भी आंवला नवमी के पूजन का उल्लेख मिलता है. यह तिथि तुलसी विवाह के ठीक दो दिन पहले आती है और इसे सतयुग का आरंभ दिवस भी कहा गया है.
पौराणिक कथा के अनुसार, सतयुग के आरंभ के दिन ब्रह्मा जी ने आंवले के वृक्ष की रचना की थी. यह वृक्ष इतना पवित्र था कि स्वयं भगवान विष्णु ने इसमें वास करने का निश्चय किया. कहा जाता है कि जब देवता और असुरों ने समुद्र मंथन किया, तब आंवले का फल अमृत समान निकला. तब से यह वृक्ष अक्षय फलदायी माना गया और इस दिन इसकी पूजा करने की परंपरा चली आ रही है.