
विद्यार्थी जीवन से ही मुझमें साहित्य और साहित्यकारों के प्रति आदर और कृतज्ञता का भाव रहा है. समय के साथ, साहित्य के प्रति विशेष सम्मान का यह भाव और अधिक गहरा होता गया है." राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु ने राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र में 'साहित्यिक सम्मिलन' का उद्घाटन करते हुए यह बात कही.
याद रहे कि 'साहित्य आजतक 2024' के दौरान राष्ट्रपति ने 'आजतक साहित्य जागृति सम्मान समारोह' के दौरान 'साहित्यकारों से प्रथम नागरिक के मिलने' के गीतकार गुलज़ार के आग्रह पर कहा था कि वे अपनी ओर से राष्ट्रपति भवन में साहित्यकारों को बुलाकर मिलेंगी. राष्ट्रपति के इस वचन के अनुपालन में संस्कृति मंत्रालय, साहित्य अकादेमी और राष्ट्रपति भवन सांस्कृतिक केंद्र ने दो दिवसीय 'साहित्यिक सम्मिलन' का आयोजन किया है, जिसका मुख्य विषय 'कितना बदल गया है साहित्य' है.
साहित्यिक सम्मिलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि साहित्य पर केन्द्रित इस सम्मिलन में आप सबके बीच आकर मुझे बहुत प्रसन्नता हो रही है. उन्होंने कहा कि मैं साहित्यकारों से मिलती रही हूं. मेरी इच्छा थी कि राष्ट्रपति भवन में अनेक साहित्यकारों का आगमन हो. इस आयोजन के लिए मैं संस्कृति मंत्रालय और साहित्य अकादेमी की हृदय से सराहना करती हूं.
राष्ट्रपति ने कहा कि लगभग एक सौ चालीस करोड़ देशवासियों के हमारे विशाल परिवार में अनेक भाषाएं हैं और अनगिनत बोलियां हैं तथा साहित्यिक परम्पराओं की असीम विविधता है. लेकिन इस विविधता में भारतीयता का स्पंदन महसूस होता है.भारतीयता का यही भाव हमारे देश के सामूहिक अवचेतन में भी रचा-बसा है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि देश की सभी भाषाओं और बोलियों को मैं अपनी ही भाषा और बोली समझती हूं. मैं मानती हूं कि सभी भाषाओं का साहित्य मेरा साहित्य है. अपनेपन की इस भावना को व्यक्त करने के लिए मैं ओड़िआ भाषा में लिखित, उत्कलमणि गोपबंधु दास की इन पंक्तियों का प्रायः उल्लेख करती हूं:
“थिले जहीं तहीं भारत बक्षरे
मणिबि मुं अछि आपणा कक्षरे
मो नेत्रे भारत-शिला शालग्राम
प्रति स्थान मोर प्रिय पुरी-धाम”
अर्थात मैं भारत-माता की गोद में जहां कहीं भी रहूं, मैं मानता हूं कि मैं अपने ही घर में हूं. मेरी दृष्टि में भारत-भूमि का एक-एक पत्थर शालिग्राम की तरह उपासना योग्य है. भारत का प्रत्येक स्थान मुझे जगन्नाथ पुरी धाम की तरह प्रिय है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि साहित्यकार का सत्य, इतिहासकार के तथ्य से अधिक प्रभावी सिद्ध हुआ है, क्योंकि वह जन-गण के जीवन-मूल्यों को व्यक्त करता है. ओड़िशा के मयूरभंज जिले में मेरा गांव है. वहीं 'सीताकुंड' नाम का एक पर्यटन स्थल है. कहा जाता है कि वनवास के समय सीता और राम ने वहां कुछ समय बिताया था. इस जनश्रुति का तथ्य-परक होना महत्त्वपूर्ण नहीं है. बड़ी बात यह है कि आदिकवि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण और विभिन्न भाषाओं में रची गई राम और सीता की कथाओं ने भारत को भावात्मक एकता के सूत्र में बांधकर रखा है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि मैं अपने विद्यार्थी-जीवन की एक बात आप सबके साथ साझा करना चाहती हूं. भारत के सुप्रसिद्ध कथाकार, व्यासकवि फ़कीरमोहन सेनापति द्वारा लिखी गई 'रेवती' नामक अमर कहानी ने मेरे अन्तर्मन पर गहरा प्रभाव डाला था. यह कहानी उन्नीसवीं शताब्दी में लिखी गई थी. रेवती नाम की एक लड़की की पढ़ाई करने की ललक इस कहानी का मूल कथ्य है. दादी के मना करने के बावजूद रेवती पढ़ाई के लिए ज़िद करती है. उसके पिता उसकी पढ़ाई की व्यवस्था कर देते हैं. उन दिनों, देश के अधिकांश क्षेत्रों में, लड़कियों की पढ़ाई एक असंभव-सी बात थी. इस कहानी के ज़रिये नारी-शिक्षा के प्रति समाज में सकारात्मक सोच उत्पन्न करने का अमूल्य साहित्यिक प्रयास किया गया था. मेरे जैसी अनेक महिलाओं के जीवन पर उस कहानी का सकारात्मक प्रभाव पड़ा होगा. ऐसे साहित्य को परिवर्तन का साहित्य कहा जा सकता है.
इस सम्मिलन में 'भारत का नारी-वादी साहित्य' यानी feminist literature पर एक विशेष सत्र भी रखा गया है. यह बहुत महत्वपूर्ण है और सराहनीय भी है. राष्ट्रपति मुर्मु ने द्रौपदी के चरित्र पर आधारित प्रतिभा राय के ओड़िआ उपन्यास 'याज्ञसेनी' की लोकप्रियता का भी उल्लेख किया और कहा कि किसी महिला रचनाकार द्वारा महिला चरित्र पर केन्द्रित इस उपन्यास की लोकप्रियता साहित्य प्रेमियों के लिए प्रसन्नता का विषय है. इससे यह विश्वास भी दृढ़ होता है कि यदि रचना में संप्रेषणीयता हो तो पाठक साहित्यिक कृतियों का बढ़-चढ़कर स्वागत करते हैं.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि परिवर्तनशील संदर्भों के बीच स्थाई मानवीय मूल्यों की स्थापना कालजयी साहित्य की पहचान होती है. जैसे-जैसे समाज और सामाजिक संस्थान बदले हैं, चुनौतियां और प्राथमिकताएं बदली हैं, वैसे-वैसे साहित्य में भी बदलाव देखे गए हैं. लेकिन साहित्य में कुछ ऐसा भी होता है जो सदियों बाद भी प्रासंगिक बना रहता है. स्नेह और करुणा के साहित्यिक संदर्भ बदलते रहते हैं किन्तु उनकी भाव-भूमि नहीं बदलती.
राष्ट्रपति ने कहा कि साहित्य से प्रेरणा लेकर मनुष्य सपने देखता है और उन्हें साकार करता है. गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर ने लिखा है:
"मानबेर माझे आमि बांचिबारे चाइ" अर्थात 'मैं मानवता के बीच जीना चाहता हूं.' गुरुदेव की इस पंक्ति से जीवन के प्रति आस्था और मानवता के प्रति लगाव की भावना जागृत होती है. भारतीय काव्य-जगत को समृद्ध करनेवाले प्रख्यात ओड़िआ कवि गंगाधर मेहेर ने लिखा है:
'मूँ जे अमृतसागर बिंदु' अर्थात् मैं तो अमृतसागर की एक बूंद हूं. वास्तव में जीवन-प्रवाह अविरल और अनंत है. धाराएं बदलती हैं, जल-तत्व वही रहता है. साहित्य हमें यही संदेश देता है.
राष्ट्रपति मुर्मु ने कहा कि आज का साहित्य उपदेशात्मक नहीं हो सकता. आज का साहित्य प्रवचन नहीं हो सकता. आज का साहित्य नीति-ग्रंथ नहीं हो सकता. आज का साहित्यकार सह-यात्री की तरह साथ-साथ चलता है, देखता है और दिखाता है; अनुभव करता है और कराता है.
मैं आशा करती हूं कि इस साहित्य सम्मिलन में वक्ताओं और प्रतिभागियों के बीच रचनात्मक संवाद स्थापित होगा. हमारे साहित्यकार, अपनी अभिव्यक्ति के चरम-उत्कर्ष को प्राप्त करें, इसी शुभकामना के साथ मैं अपनी वाणी को विराम देती हूं.
राष्ट्रपति मुर्मु के संबोधन से पहले केंद्रीय संस्कृति और पर्यटन मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत ने उपस्थित साहित्यकारों का स्वागत करते हुए साहित्य अकादेमी की सराहना की और महामहिम का धन्यवाद ज्ञापित किया.विशिष्ट अतिथि के रूप में उपस्थित शेखावत ने कहा कि साहित्य समाज के, समाज की भावनाओं के और समाज की स्थितियों के दर्पण स्वरूप है तथा दर्पण होने के साथ-साथ यह समाज के मार्गदर्शन का काम भी करता है. उन्होंने आगे कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में हमारा देश सांस्कृतिक पुनरुद्धार के दौर से गुजर रहा है. ऐसी स्थिति में साहित्य सृजकों की भूमिका और भी महत्त्वपूर्ण हो जाती है.
कार्यक्रम के आरंभ में संस्कृति मंत्रालय की विशेष सचिव और वित्तीय सलाहकार रंजना चोपड़ा ने भारत सरकार के संस्कृति मंत्रालय के अंतर्गत कार्य करने वाली संस्थाओं में साहित्य अकादेमी एक अग्रणी तथा व्यापक प्रभाव वाली संस्था है. पिछले कुछ वर्षों में अकादेमी ने कई कीर्तिमान स्थापित किए हैं और अपनी सक्रियता से सबका ध्यान आकर्षित किया है. यह सम्मिलन भी अकादेमी की विशिष्ट सक्रियता का उल्लेखनीय उदाहरण है. उन्होंने आशा व्यक्त की यह सम्मिलन साहित्य के बदलावों के प्रति हमारी दृष्टि को और अधिक व्यापक करेगा.
स्वागत भाषण के पश्चात् साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु तथा पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत का अंगवस्त्रम और पुस्तक भेंट कर अभिनंदन एवं स्वागत किया. उद्घाटन सत्र के बाद 'सीधा दिल से: कवि सम्मिलन' का आयोजन किया गया, जिसकी अध्यक्षता उर्दू के प्रख्यात शायर शीन काफ निज़ाम ने की. इस सत्र में विशिष्ट अतिथि के रूप में साहित्य अकादेमी के अध्यक्ष माधव कौशिक उपस्थित रहे. कविता-पाठ करने वाले कवियों में रणजीत दास (बाङ्ला), ममंग दई (अंग्रेजी), दिलीप झवेरी (गुजराती), अरुण कमल (हिंदी), महेश गर्ग (हिंदी), शफ़ी शौक (कश्मीरी), दमयंती बेशरा (संताली) और रवि सुब्रह्मण्यम् (तमिऴ) ने अपनी कविताओं का पाठ किया. सत्र के आरंभ में अकादेमी के सचिव डॉ के श्रीनिवासराव ने सभी कवियों का पारंपरिक अंगवस्त्रम प्रदान कर अभिनंदन और स्वागत किया. सत्रों का संचालन अलका सिन्हा द्वारा किया गया. राष्ट्रपति ने इससे पूर्व साहित्य अकादेमी के स्टॉल का निरीक्षण किया और आमंत्रित साहित्यकारों के साथ चित्र भी खिंचवाया.
साहित्य सम्मिलन के दूसरे दिन यानी कल 'भारत की स्त्रीवादी साहित्य: नए आधार की तलाश में', 'साहित्य में परिवर्तन बनाम परिवर्तन का साहित्य' एवं 'वैश्विक परिप्रेश्य में भारतीय साहित्य की नई दिशाएँ' विषयक तीन सत्रों में साहित्य के बदले स्वरूपों पर प्रतिष्ठित भारतीय लेखकों एवं विद्वानों द्वारा विचार-विमर्श होगा. अंत में देवी अहिल्याबाई होलकर की 300वीं जयंती के अवसर पर हिमांशु बाजपेयी तथा प्रज्ञा शर्मा द्वारा अहिल्याबाई गाथा की प्रस्तुति की जाएगी.