केंद्र सरकार की ओर से लाए गए तीन कृषि सुधार कानूनों के खिलाफ पंजाब से शुरू हुई विरोध की चिंगारी आखिर इसी राज्य तक ही क्यों सिमट कर रह गई है? कुछ समय के लिए हरियाणा में भी इन कानूनों के खिलाफ आवाज उठी थी लेकिन बाद में वहां क्यों शांत हो गई?
पिछले डेढ़ महीने से भी ज्यादा समय से पंजाब में आंदोलन कर रहे किसान नेताओं ने दावा किया था कि 5 नवंबर को 200 किसान संगठन राष्ट्रव्यापी बंद का आयोजन करेंगे लेकिन यह चक्का- जाम सिर्फ पंजाब तक ही सीमित रहा. कुल मिलाकर अब सिर्फ पंजाब के ही किसान संगठन नए कृषि कानूनों के खिलाफ प्रदर्शन कर रहे हैं. बाकी राज्यों में या तो नाममात्र के प्रदर्शन हुए या फिर थम गए.
कृषि कानूनों को लेकर आपस में बंटे किसान संगठन
शुरुआत में हरियाणा के कृषक संगठन पंजाब के संगठनों के पक्ष में आए थे और कई जगहों पर लाठीचार्ज और धरने-प्रदर्शन आयोजित हुए लेकिन बाद में सब शांत हो गया. इन किसान संगठनों के मुताबिक हरियाणा में आयोजित किए जा रहे धरने प्रदर्शन कांग्रेस समर्थित थे जिसे बाद में ज्यादा समर्थन नहीं मिला.
किसान आंदोलन को आम किसानों का ज्यादा समर्थन इसलिए भी नहीं मिला क्योंकि आम किसानों को अपनी फसल बेचने, उस पर मिलने वाले एमएसपी और सरकारी खरीद की सुविधा बराबर मिलती रही और उसमें कोई रुकावट पैदा नहीं हुई. पंजाब में 30 के लगभग कृषि संगठन केंद्र के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ लामबंद हैं लेकिन अब ये प्रदर्शन अब अलग-थलग पड़ता दिखाई दे रहा है.
दरअसल पंजाब में किसान संगठनों के दो धड़े हैं. एक धड़ा जो वामपंथी दलों से ताल्लुक रखता है और दूसरे धड़े के किसान संगठन या तो स्वतंत्र हैं या फिर किसी ना किसी राजनीतिक पार्टी से ताल्लुक रखते हैं. वामपंथी दलों से संबंध रखने वाले किसान संगठन अपने धरने प्रदर्शन जारी रखना चाहते हैं जबकि दूसरे संगठन अपनी मांगें मनवा कर वापिस खेतों में लौटना चाहते हैं.
पंजाब में क्योंकि गेहूं और दूसरी फसलों की बुआई का काम शुरू हो गया है इसलिए ज्यादातर किसान अब घरों को लौट गए हैं. जो किसान संगठन जगह-जगह विरोध कर रहे हैं उनके पास प्रदर्शनकारियों की ज्यादा संख्या नहीं है. कई जगहों पर तो प्रदर्शनकारियों की संख्या एक दर्जन या उससे भी कम है.
इस पर जब हमने पंजाब के वयोवृद्ध किसान नेता सुखदेव सिंह कोकरी से बात की तो उन्होंने भी माना कि पंजाब की तर्ज पर किसी दूसरे राज्य में आंदोलन इतना लंबा नहीं चला. लेकिन उनका मानना है कि देश के लगभग 400 किसान संगठन केंद्र के कृषि कानूनों के खिलाफ लामबंद हैं. कोकरी ने बताया कि 26 और 27 नवंबर को दिल्ली में आयोजित किए जा रहे विरोध प्रदर्शन में लगभग 400 किसान संगठन हिस्सा लेंगे.
उधर इस मसले पर जब भारतीय जनता पार्टी के नेता विनीत जोशी से बात की गई तो उन्होंने कहा कि पंजाब को छोड़कर देश के किसी भी दूसरे हिस्से में अब प्रदर्शन नहीं हो रहे हैं क्योंकि पंजाब में हो रहे प्रदर्शनों की बुनियाद झूठ और अफवाहों पर टिकी है. क्योंकि न तो केंद्र सरकार ने एमएसपी वापस लिया और न ही खाद्यान्न की सरकारी खरीद बंद की.
पंजाब सरकार भड़का रही है किसान संगठनों को: बीजेपी
भारतीय जनता पार्टी के नेताओं का मानना है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार किसानों को भड़काने में लगी हुई है, और उसी की शह पर जगह-जगह धरना प्रदर्शन आयोजित किए जा रहे हैं क्योंकि इससे कांग्रेस अपने राजनीतिक हित साधना चाहती है.
विनीत जोशी कहते हैं, "यही कारण है कि पंजाब की कांग्रेस सरकार राज्य के हितों को नजरअंदाज करके आंदोलन की आग को हवा दे रही है अगर सरकार चाहती तो इतने इतनी जगहों पर धरने प्रदर्शन आयोजित ना होते.”
विनीत जोशी के मुताबिक धरने -प्रदर्शन आयोजित करने की इजाजत देना या ना देना संबंधित जिला प्रशासन के हाथ में होता है. यही कारण है कि पड़ोसी राज्य हरियाणा में कानून व्यवस्था के चलते धरने प्रदर्शन सिमट गए और पंजाब में खुली छूट मिलने के कारण आज भी जारी है.
क्या पंजाब सरकार किसान आंदोलन को हवा देकर फंस गई है?
शुरुआत में पंजाब के कांग्रेस नेताओं को लग रहा था कि किसान संगठनों का साथ मिलने के बाद उनको भविष्य में बड़ा राजनीतिक फायदा होगा. इसलिए राज्य की कांग्रेस सरकार ने किसान संगठनों को जगह -जगह पर प्रदर्शन करने की छूट दे दी. लेकिन बाद में किसान संगठनों का आंदोलन न केवल खुद किसानों को बल्कि पंजाब सरकार पर भी भारी पड़ने लगा.
पिछले डेढ़ महीने के दौरान पंजाब सरकार पंजाब के उद्योगों और केंद्र सरकार को हजारों करोड़ रुपए का नुकसान हो चुका है. अब तक 1986 यात्री ट्रेनें और 3090 मालगाड़ियां रद्द की गई है. आंदोलनकारी किसान पटरियों और रेलवे स्टेशनों पर डटे हुए हैं. पहले से ही राजस्व घाटा झेल रही पंजाब सरकार अब एक और आर्थिक संकट से गुजर रही है. मालगाड़ियां ठप हो जाने से किसानों को यूरिया और दूसरे उर्वरकों की आपूर्ति नहीं हो पा रही है.
इसके बावजूद पंजाब सरकार किसान संगठनों को खुश करने में लगी हुई है. क्योंकि दो साल बाद राज्य में विधानसभा चुनाव होने हैं और राज्य में किसान वोटरों की तादाद अच्छी खासी है. कांग्रेस सरकार किसान संगठनों को खुश करने के लगातार प्रयास कर रही है. इसी के चलते न केवल तीन (संशोधन) विधेयक विधानसभा में पास किए गए बल्कि दिल्ली में जाकर केंद्र सरकार के खिलाफ प्रदर्शन भी किए गए. जबकि सच्चाई यह है कि कांग्रेस द्वारा पास किए गए तीन विधेयक शायद ही कानून बन पाएं. केंद्र सरकार ने भी साफ कर दिया है कि वह किसी भी सूरत में कृषि कानूनों को रद्द नहीं करेगी.
केंद्र के इस अड़ियल रवैये के चलते अब कई किसान संगठन सिर्फ एमएसपी और खाद्यान्न की सरकारी खरीद का आश्वासन मिलने के बाद अपना आंदोलन वापस लेना चाहते हैं. 13 नवंबर को दिल्ली में हुई बैठक में कुछ किसान नेताओं ने तो केंद्र के कानूनों में संशोधन की बात भी की. इसका मतलब यह है कि कई किसान संगठन कानून रद्द करने के पक्ष में नहीं है और उनमें छोटा बड़ा बदलाव चाहते हैं. लेकिन कई संगठन कानून रद्द करवाने पर अड़े हुए हैं.
उधर केंद्र सरकार भी किसान संगठनों से उलझने के मूड में नहीं है. वह भी गतिरोध का हल निकालना चाहती है क्योंकि साल 2022 में पंजाब में विधानसभा चुनाव होने हैं. एक तरफ जहां केंद्र सरकार ने अब की बार धान के एमएसपी में प्रति क्विंटल 53 रुपए की बढ़ोतरी की है वही पिछले साल की तुलना में 38 फ़ीसदी ज़्यादा धान खरीदा गया है.
साफ है कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ छेड़ा गया किसान आंदोलन पंजाब तक ही सीमित होकर रह गया है और अलग-थलग पड़ रहा है. किसान संगठन आंदोलन को लेकर न केवल दिग्भ्रमित हैं बल्कि बंटे हुए भी हैं.