
कोरोना वायरस महामारी और फिर उसके चलते लगे लॉकडाउन ने आम लोगों की जिंदगी पर बुरा असर डाला है. इस महामारी के फैलने की वजह से मार्च के महीने से ही करोड़ों लोगों का जीवन परेशानियों से भर गया और उसमें भी रही सही असर लॉकडाउन ने पूरी कर दी. लॉकडाउन के चलते जहां लोग महीनों तक घरों में ही रहे, तो वहीं लाखों प्रवासी मजदूर खुद पर आए इस संकट के बादल को हटाने के लिए पैदल ही अपने आपने गांव के लिए भूखे-प्यासे निकल पड़े. ऐसे में अन्न सुरक्षा अभियान के तहत 'हंगर वॉच सर्वे' किया गया, जिसमें कई चौंकने वाली बातें सामने आई हैं. यह पूरा सर्वे गुजरात के 9 जिलों में किया गया है.
इस सर्वे के मुताबिक, सितंबर और अक्टूबर महीने में ही 8.9% लोगों को कई बार भोजन नहीं मिला, जबकि कोरोना संकट काल के समय 20.1 प्रतिशत लोगों को बराबर भोजन नहीं मिला. वहीं 21.8 प्रतिशत घरों में एक वक्त का चूल्हा नहीं जल सका. इतना ही नहीं, कोविड लॉकडाउन खत्म होने के पांच महीने बाद भी भूख की स्थिति काफी गंभीर रही.
सर्वे की मानें तो इस दौरान 65 फीसदी घरों की आय घट गई. अनाज, दालें, सब्जियां, अंडे/मांसाहारी पदार्थों, पोषण गुणवत्ता की मात्रा में कमी आई. इसके अलावा 45 फीसदी घरों में भोजन खरीदने के लिए पैसे उधार लेने की जरूरत पड़ गई. साथ ही गुजरात में कोरोना काल के दौरान ज्यादातर लोगों की खुराक कम हो गई.

आपको बता दें कि ये पूरा सर्वे गजरात के अहमदाबाद, आणंद, भरूच, भावनगर, दाहोद, मोरबी, नर्मदा, पंचमहल और वडोदरा समेत 9 जिलों में किया गया है. सर्वे करने वाली संस्था ANANDI के संस्थापक सेजल दंडे का कहना हे कि ये सर्वे सितम्बर और अक्टूबर में हुआ था.
इस सर्वे से जुड़ी टीम ने बताया कि राज्य सरकार ने लोगों की मदद के लिए काफी प्रयास किए. भुखमरी पर काबू पाने के लिए कुछ प्रभावी कदम भी उठाए. यही नहीं केन्द्र सरकार ने राशन दिया, गुजरात सरकार ने भी अनाज वितरित किया. लेकिन हालात कुछ खास नहीं सुधर सके.
इस सर्वे के जरिए सरकार को ये सुझाव भी दिया गया है कि अन्न सुरक्षा अधिकार अभियान के तहत डिस्ट्रीब्यूशन सिस्टम को और बेहतर बनाने की जरूरत हैं, जिससे महामारी या कुदरती आपदा के वक्त ज्यादा से ज्यादा लोगों को इसका फायदा मिल पाए.
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