
भारत के राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद का कार्यकाल 24 जुलाई को खत्म हो रहा है. उन्होंने जुलाई 2017 में राष्ट्रपति पद की शपथ ली थी. वो देश के दूसरे दलित राष्ट्रपति बने थे.
नए राष्ट्रपति के लिए चुनाव 18 जुलाई को होंगे और इनका नतीजा 21 जुलाई को आएगा.
इसी बीच राष्ट्रपति कोविंद का एक बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है जिसमें उन्होंने भारत में पिछड़ी जाति के जजों की संख्या कम होने का मुद्दा उठाया है. ये बयान एक न्यूज रिपोर्ट में लिखा है जिसे शेयर करते हुए कई लोग उन पर तंज कस रहे हैं कि उन्होंने पिछले 5 सालों में पिछड़ी जाति के हक में कोई बात नहीं की. और अब, जब उनका कार्यकाल खत्म हो रहा है तो वो ऐसे बयान दे रहे हैं.
वायरल न्यूज रिपोर्ट की हेडलाइन है," राष्ट्रपति ने पूछा- ओबीसी, एससी, एसटी, महिला जज इतने कम क्यों?"
मिसाल के तौर पर एक ट्विटर यूजर ने लिखा, "पिछले 5 साल संघवाद के साथ मज़बूती के से खड़ा रहने के बाद विदाई के वक़्त दलित, ओबीसी और आदिवासी याद आए दलित राष्ट्रपति को.”

हमने अपनी जांच में पाया कि ये बयान राष्ट्रपति कोविंद ने हाल-फिलहाल में नहीं बल्कि नवंबर 2017 में दिया था.
कैसे पता लगाई सच्चाई?
कीवर्ड सर्च के जरिये खोजने पर हमने पाया कि इस अखबार की कटिंग को कई फेसबुक यूजर्स ने साल 2017 में शेयर किया था.
‘फर्स्टपोस्ट’ वेबसाइट की 25 नवंबर 2017 की एक खबर के मुताबिक, ये बयान राष्ट्रपति कोविंद ने उसी दिन दिल्ली में आयोजित सम्मेलन में दिया था. ये सम्मेलन राष्ट्रीय विधि दिवस के मौके पर नीति आयोग और भारतीय विधि आयोग ने आयोजित किया था.
हमें इसी खबर से जुड़ी 'हिंदुस्तान टाइम्स' और 'लेटेस्ट लॉ' की भी रिपोर्ट्स मिली.
‘डीडी न्यूज’ के यूट्यूब चैनल पर राष्ट्रपति कोविंद के इस बयान का वीडियो भी मौजूद है. ये वीडियो 25 नवंबर 2017 को अपलोड किया गया था. इस भाषण में उन्होंने कहा था कि हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के कुल 17,000 जजों में सिर्फ 4,700 के करीब महिलाएं हैं. साथ ही उन्होने ओबीसी, एससी और एसटी समुदाय के जजों की कमी को लेकर भी सवाल उठाए थे.
साफ है कि राष्ट्रपति कोविंद का एक पुराना बयान हाल-फिलहाल का बता कर शेयर किया जा रहा है.
(यश मित्तल के इनपुट के साथ)