सऊदी महिलाओं के लिए जीते जी नरक जैसे हैं केयर होम, कइयों को मौत के बाद ही मिलता है छुटकारा

सऊदी अरब में कथित बिगड़ी हुई लड़कियों के लिए पुनर्वास केंद्र के नाम पर ऐसे सेंटर्स चल रहे हैं जहां लड़कियों को बेहद ही बुरी स्थिति में रखा जाता है. लड़कियों को साप्ताहिक रूप से कोड़े मारे जाते हैं और जबरदस्ती धार्मिक शिक्षा दी जाती है. उन्हें सबके सामने बिना गलती मारा-पीटा जाता है.

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सऊदी अरब में अपने खिलाफ हिंसा की आवाज उठाने वाली महिलाओं को पुनर्वास केंद्रों में भेज दिया जाता है (Photo- Meta AI) सऊदी अरब में अपने खिलाफ हिंसा की आवाज उठाने वाली महिलाओं को पुनर्वास केंद्रों में भेज दिया जाता है (Photo- Meta AI)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 28 मई 2025,
  • अपडेटेड 3:47 PM IST

'अगर आपके साथ यौन हिंसा होती है और आपका पिता या फिर भाई आपको प्रेग्नेंट करता है तो परिवार की इज्जत बचाने के लिए आपको दार अल-रिया में भेज दिया जाता है...' ये कहना है सऊदी अरब की एक महिला याहिया का, जिसके पिता ने 13 साल की उम्र से ही उसका यौन शोषण शुरू कर दिया था. पिता ने धमकी दी कि अगर याहिया ने उनकी बात नहीं मानी तो वो उसे पुनर्वास केंद्र, जिन्हें दार अल-रिया कहा जाता है, भेज देंगे. 

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दार अल-रिया सेंटर्स को सऊदी अरब में केयर होम के नाम पर चलाया जा रहा है. सऊदी अरब की महिलाएं इन होम्स को जेल कहती हैं 'जहां रहना नर्क में रहने से भी बदतर है.'

याहिया अब 38 साल की है और वो सऊदी अरब से भागकर निर्वासित जीवन बिता रही हैं. जब वो 13 साल की थी तब उनके माता-पिता ने उन्हें दार अल-रिया भेजने की धमकी दी थी. वो कहती हैं, 'मेरे पिता ने कहा कि अगर मैंने उनकी बात नहीं मानी, उनकी शारीरिक मांगों को पूरा नहीं किया तो वो मुझे दार अल-रिया भेज देंगे.' 

याहिया और उनके जैसी सैकड़ों लड़कियों की यह कहानी सऊदी अरब की तरफ से पेंट की जा रही महिलाओं की उस तस्वीर पर पानी फेरती है जिसमें उन्हें हर तरह के अधिकार दिए जा रहे हैं.

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सऊदी अरब के वास्तविक शासक क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) जब 2017 में सत्ता में आए तब उन्होंने महिला सुधारों के क्षेत्र में बहुत काम किया. देश की कट्टर इस्लामिक छवि को सुधारने के लिए उन्होंने महिलाओं को कई अधिकार दिए जिसमें घर से निकलकर बाहर काम करने, अकेले घर से बाहर जाने, ड्राइविंग करने, म्यूजिक इवेंट्स में हिस्सा लेने और स्पोर्ट्स इवेंट्स में जाने की इजाजत शामिल थी.

सऊदी अरब जहां एक तरफ 2034 में फीफा वर्ल्ड कप की मेजबानी करने जा रहा है और अपनी एक सुधारवादी छवि पेश कर रहा है, वहीं दूसरी तरफ जो महिलाएं अपने साथ हुए दुर्व्यवहार की आवाज उठा रही है या फिर अधिकारों की मांग कर रही है, उन्हें हाउस अरेस्ट और जेलों में रखकर प्रताड़ित किया जा रहा है.

छोटी उम्र से ही सऊदी अरब की लड़कियों में बिठाया जाता है दार अल-रिया का डर

सऊदी अरब में कम उम्र से ही लड़कियों के मन में दार अल-रिया भेजे जाने का डर बिठाया जाता है ताकि वो अपने ऊपर हुए अत्याचार के खिलाफ आवाज न उठा सकें.

शम्स बताती हैं कि जब वो 16 साल की थीं तब उनकी स्कूल में कथित केयर होम से एक महिला को बुलाया गया था. महिला ने पूरी क्लास के सामने अपनी कहानी बताई. महिला ने बताया कि 'जब मैं क्लास में थी तब एक लड़के के साथ मेरा रिश्ता शुरू हुआ. लड़के को धार्मिक पुलिस ने पकड़ लिया और उसके पिता को इसकी जानकारी दे दी. मैं तब तक गर्भवती हो चुकी थी तो मेरे परिवार ने मुझे बेदखल कर दिया और मुझे दार अल-रिया भेज दिया गया.'

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शम्स ने कहा, 'उस महिला ने हमें बताया कि अगर कोई महिला बिना शादी के संबंध बनाती है या फिर रिश्ता रखती है तो वो घटिया औरत कहलाती है. अगर आप लड़का हैं तो इन सबके बावजूद भी आप लड़का बने रहते हैं लेकिन अगर कोई महिला खुद को घटिया बना ले तो वो जीवन भर घटिया औरत ही रहती है.'

लायला नाम की एक महिला बताती हैं कि उनके पिता और भाई ने उनका शोषण किया. दरअसल, लायला ने सोशल मीडिया पर महिला अधिकारों के बारे में पोस्ट लिखा जिसके बाद उनके पिता और भाई ने कहा कि इससे उनके परिवार की इज्जत खराब हुई है और वो अपने परिवार पर दाग हैं. उन्हें खूब मारा-पीटा गया और जब इसकी शिकायत उन्होंने पुलिस में की तो उन्हें दार अल-रिया भेज दिया गया.

दार अल-रिया से कोई महिला तभी बाहर निकल सकती है जब उसके परिवार वाले इस बात से पूरी तरह आश्वस्त हो जाएं कि वो पूरी तरह 'सुधर' चुकी है यानी उनके खिलाफ एक शब्द नहीं बोलेगी और अपने मन का कुछ भी नहीं करेगी.

महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली सऊदी अरब की एक एक्टिविस्ट कहती हैं, 'इन महिलाओं का कोई नहीं होता. इनका कोई गुनाह नहीं होता,बावजूद इसके सालों-साल तक इनकी कोई खबर नहीं लेता. दार अल-रिया से बाहर निकलने का बस एक ही रास्ता है कि आपके परिवार का कोई पुरुष गार्डियन आपको बाहर निकलवाएं, कोई बूढ़ा आपसे शादी करके ले जाए या फिर आप बिंल्डिंग से कूदकर अपनी जान दे दें.'

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वो आगे बताती हैं, 'बूढ़े पुरुष या फिर पूर्व अपराधी, जिन्हें दुल्हनें नहीं मिलतीं, वो यहां निकाह के लिए आते हैं. कुछ लड़कियां उनसे निकाह को राजी हो जाती हैं क्योंकि बाहर निकलने का यही एक रास्ता दिखता है उन्हें.'

हर हफ्ते कोड़ों की मार, नर्क जैसे हालातों में रह रहीं लड़कियां

दार अल-रिया में रहने वाली लड़कियों ने बताया कि वहां रहना किसी नर्क में रहने से भी ज्यादा बदतर है जहां हर हफ्ते उन्हें कोड़ों से मारा जाता है, जबरन धार्मिक शिक्षा दी जाती है और बाहरी दुनिया से कोई संपर्क रखने नहीं दिया जाता है.

दार अल-रिया की स्थिति इतनी खराब है कि कई लड़कियों ने सुसाइड भी कर लिया. निर्वासित जीवन जी रही सऊदी की एक महिला ने बताया कि दार अल-रिया में रहना कितना मुश्किल था.

वो बताती हैं, 'सऊदी अरब में बड़ी हो रही हर लड़की को दार अल-रिया के बारे में पता है और वो जानती है कि वहां रहना कितना खतरनाक है. जब मुझे पता चला कि मुझे भी दार अल-रिया ले जाया जा रहा है तो मैंने खुद को खत्म करने का सोच लिया था. मुझे पता था कि वहां महिलाओं के साथ क्या होता है और वहां जाकर मैं जिंदा नहीं बचूंगी.'

सऊदी के कथित केयर होम्स के खिलाफ कैंपेन चलाने वाली सारा अल याहिया ने कई लड़कियों से बात की है जो दार अल-रिया में रह चुकी हैं.

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वो बताती हैं, 'दार अल-रिया जेल है न कि केयर होम जैसा कि वो बताते हैं. वहां लड़कियों को नबंर से बुलाया जाता है जैसे 35 नंबर, इधर आओ. अगर कोई लड़की अपने घर का नाम बता दे तो उसे कोड़े पड़ते हैं, अगर कोई नमाज पढ़ने से इनकार कर दे तो भी उसे कोड़े पड़ते हैं. अगर कोई लड़की अकेले में किसी दूसरी लड़की से बात करती मिल जाए तो उसे लेस्बियन बताकर कोड़े मारे जाते हैं. जब लड़कियों को मारा जाता है तो गार्ड वहां जमा हो जाते हैं और उन्हें पिटता हुआ देखते हैं.'

सारा ने बताया कि दार अल-रिया में लड़कियां जब पहली बार आती हैं तो पूरे कपड़े उतारकर उनकी तलाशी ली जाती है और उनकी वर्जिनिटी टेस्ट की जाती है. उन्हें सुलाने के लिए बेहोशी की दवाएं दी जाती हैं.

मानवाधिकार समूह ALQST का कहना है कि दार अल-रिया सेंटर्स सऊदी अरब में बदनाम हैं और सऊदी अधिकारी जिस महिला सशक्तिकरण की बात करते हैं, इन सेंटर्स की कहानी उसके ठीक विपरित है.

क्या बोली सऊदी अरब की सरकार?

वहीं, दार अल-रिया सेंटर्स को लेकर जब सऊदी सरकार से सवाल किया गया तो उनके एक प्रवक्ता ने जबरन जेल में डालने, महिलाओं से दुर्व्यवहार या जबरदस्ती के दावों को खारिज किया. प्रवक्ता ने कहा कि दार अल-रिया सेंटर्स खास तरह के देखभाल का एक नेटवर्क है जो घरेलू हिंसा से प्रभावित महिलाओं और बच्चों समेत कमजोर समूहों का समर्थन करता है.

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प्रवक्ता ने कहा, 'ये हिरासत केंद्र नहीं हैं, और यहां दुर्व्यवहार के किसी भी आरोप को गंभीरता से लिया जाता है, उसकी पूरी जांच की जाती है...महिलाएं किसी भी समय बाहर जाने के लिए आजाद हैं. उन्हें चाहे स्कूल जाना हो, नौकरी करनी हो या कुछ और काम, वो जब चाहें स्थायी रूप से दार अल-रिया सेंटर्स से बाहर निकल सकती हैं. उनके बाहर निकलने के लिए परिवार के किसी सदस्य की मंजूरी की जरूरत नहीं है.'

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