इजरायल ने शनिवार को अपने बड़े हमलों में हिज्बुल्लाह चीफ नसरल्लाह को मार गिराया. IDF के जारी बयान में इजरायल ने हिज्बुल्लाह चीफ हसन नरसल्लाह को मारने का दावा किया और ऑफिशियल एक्स हैंडल पर एक पोस्ट में लिखा, हसन नरसल्लाह अब दुनिया को आतंकित नहीं कर सकेगा. इसी के साथ इजरायल ने एक बात और कही, जिसके शब्द इजरायल और हिज्बुल्लाह के 24 साल पुराने इतिहास की और ले जाते हैं.
नेतन्याहू ने कहा- हमारी नसें इस्पाती
लेबनान में हुए हमले में चीफ नसरल्लाह की मौत पर इजराइली पीएम नेतन्याहू का बयान सामने आया, जिसमें उन्होंने कहा, 'हमारे दुश्मनों को लगता था कि हम मकड़ी के जाले जैसे हैं, लेकिन वो गलत थे. वो नहीं जानते थे कि ये जाल स्टील के हैं. हमारी नसें इस्पाती हैं और अब हमने सही तरीके से जवाब दिया. सिर्फ आज ही नहीं, हम आगे भी ऐसा करना जारी रखेंगे.'
साल 2000 की 24 साल पुरानी घटना
नेतन्याहू के इस बयान ने 24 साल पहले की उस घटना पर ट्रिगर कर दिया, जहां से इस बयान की उपज मानी जा सकती है. यह घटना साल 2000 की है. जब इज़रायल और हिज़बुल्लाह के बीच लंबे समय से जारी संघर्ष में उस दौरान जरूरी मोड़ आ गया था. असल में इज़रायल ने 1982 में दक्षिणी लेबनान को अपने कंट्रोल में ले लिया था. इजरायल तब लेबनान के उस एरिया में फलस्तीनी उग्रवादियों का सफाया करने और अपनी उत्तरी सीमा को भी उनसे सुरक्षित करने के मिशन पर था. ऐसे में इजरायली सेना ने लेबनान में सैन्य हस्तक्षेप किया. अगले दो दशकों में, इज़रायल ने इस क्षेत्र में अपनी मौजूदगी बनाए रखी, लेकिन उसे लगातार हिज्बुल्लाह के बढ़ते प्रतिरोध का सामना करना पड़ा.
इजरायल ने लेबनान से की थी सैन्य वापसी
फिर आया साल 2000. तब इज़रायल ने दक्षिणी लेबनान से अपनी सेनाओं को वापस बुलाने का फैसला किया. इजरायल के इस फैसले को फॉरेन अफेयर्स के जानकार और विश्लेषक कई तरह से परिभाषित करते हैं. एक्सपर्ट्स की राय में यह फैसला न केवल युद्ध में थकावट का परिणाम था, बल्कि एक तरह से इजरायल पर पॉलिटिकल प्रेशर भी पड़ रहा था. कुछ विश्लेषक ऐसा भी मानते हैं कि घरेलू स्तर पर इज़रायल की जनता के बीच भी विरोध बढ़ रहा था, क्योंकि बड़ी संख्या में सेना का बड़ा हिस्सा सिर्फ इसी मिशन पर अपनी ऊर्जा खर्च कर रहा था और वह हताहत भी हो रहे थे.
क्या कहते हैं विश्लेषक?
टाइम्स ऑफ इजरायल ने साल 2015 में लेबनान से इजरायली सेना की वापसी पर एक आर्टिकल पब्लिश किया था. इसमें अवॉर्ड विनिंग राइटर मैटी फ्राइडमैन लिखते हैं कि, 'अचानक लिए गए वापसी के इस फैसले ने हैरान किया था. साउथ लेबनान के गलील में मौजूद अपने गार्डन में तब मैं गुलाब चुन रहा था.'फ्राइडमैन लिखते हैं कि उस समय ऐसा लग रहा था कि यह युद्ध जितने इजरायली सैनिकों की जान बचा रहा था, उससे अधिक उनकी जान ले रहा था. एवरेज में देखें तो हर साल 36 से 40 सैनिक मारे जा रहे थे. तब लोग सोचने लगे थे कि इजरायल के लिए ये संकट इसलिए है, क्योंकि वह लेबनान में है और अगर वह यहां से निकल जाए तो इस संकट से भी निकल सकता है. फ्राइड मैन ने कहा "लोगों को लगा कि वापसी ही समस्या का हल हैं."
इजरायल के पीएम रहे एहुद बराक ने कही थी ये बात
तब के इजरायली पीएम एहुद बराक ने भी इस वापसी को लेकर कहा था कि, इज़रायल की वापसी, हमारी सुरक्षा के हित में थी. हम लेबनान में शांति लाने गए थे, लेकिन अब स्पष्ट हुआ कि हमारी सेना की मौजूदगी से वहां शांति नहीं आ रही है.
फ्राइडमैन लिखते हैं और मानते हैं कि 'तब वापसी उचित थी, लेकिन इस वापसी ने हिज्बुल्लाह को शांत और संतुष्ट नहीं किया, बल्कि इससे उसके सहयोगी और समर्थक दुस्साहसी हो गए. इजरायल की वापसी को उसने कमजोरी की तरह लिया. लेबनान से इजरायल की वापसी पूरे मिडिल ईस्ट में जिहादी समूह के लिए एक "टिपिंग प्वाइंट" बन गई.
हिज्बुल्लाह चीफ हसन नसरल्लाह ने दिया था ये बयान
जब इजरायल ने सेना वापस बुला ली तब हिज्बुल्लाह खुद को ताकतवार मानने लगा और चीफ हसन नसरल्लाह ने इसे इजरायल के लिए 'मकड़ी के जाले' वाल बयान दिया. इज़रायल की वापसी को हिज्बुल्लाह ने अपनी बड़ी जीत के रूप में प्रचारित किया. हिज़बुल्लाह के नेता हसन नसरल्लाह ने कहा 'इज़रायल की सेना और उसके सुरक्षा ढांचे की ताकत केवल "मकड़ी के जाले" जैसी है—यह दिखने में मजबूत है, लेकिन आसानी से टूट सकती है.
क्या सैन्य वापसी को कमजोरी की तरह देखा गया?
इस "मकड़ी के जाले" वाले बयान का विशेष संदर्भ यह था कि इज़रायल की लगातार सैन्य उपस्थिति के बावजूद हिज्बुल्लाह ने उन्हें रणनीतिक रूप से पीछे हटने पर मजबूर कर दिया. हिज्बुल्लाह ने इससे अपनी लड़ाई को वैलिड करार दिया और इज़रायल के प्रति अपनी जीत के रूप में सामने रखा.यह बयान केवल युद्धक्षेत्र में जीत का प्रतीक नहीं था, बल्कि यह मनोवैज्ञानिक युद्ध का हिस्सा भी था, जहां हिज़बुल्लाह इज़रायल की छवि को कमजोर और अपनी छवि को मजबूत दिखाना चाहता था.
इजरायल के पीछे हटने के बाद हिज्बुल्लाह की ताकत और प्रतिष्ठा लेबनान और पूरे अरब दुनिया में बढ़ गई. यह संगठन न केवल दक्षिणी लेबनान के संरक्षक के रूप में उभरा, बल्कि इसने इज़रायल विरोधी ताकतों के लिए प्रेरणा का काम भी किया. दूसरी ओर, इज़रायल ने इसे सामरिक वापसी के रूप में देखा, जो भविष्य में अपने उत्तरी सीमा की सुरक्षा के लिए आवश्यक थी, लेकिन यह भी माना था कि यह हिज़बुल्लाह की मनोवैज्ञानिक जीत थी.
विकास पोरवाल