साल 2023 के जु्मा-जुमा 4 रोज ही बीते होंगे कि इजरायल के तेल अवीव और हाइफा जैसे बड़े शहरों की सड़कों पर लोगों की भीड़ जमा होने लगी थी. ये भीड़ कोई खास वर्ग वाली नहीं थी. ये उनकी भीड़ थी, जो लोकतंत्र को बनाए रखना चाहते थे और इसके अस्तित्व में खतरा भांपते हुए सड़कों पर उतर आए थे. इनमें इजरायल के विपक्षी नेता, सरकार के अधीन काम करने वाले अफसर, आम नौजवान और यहां तक कि नई उम्र की लड़कियां भी थीं. लड़कियों ने अपने चेहरे पर लाल निशान लगा रखे थे, जो नेतन्याहू सरकार को ये बताने-जताने के लिए काफी था कि जनता उनके न्यायिक कानून सुधारों को लेकर सहज नहीं है और इसे मानने वाली भी नहीं है. प्रदर्शनकारियों पर जब वाटर कैनन से पानी फेंका जाता तो वे एक साथ तेज सुर में चिल्लाते, 'बीबी घर जाओ'
सोमवार की रात नेतन्याहू ने लिए प्रस्ताव वापस
तीन महीनों से जारी लगातार इन प्रदर्शनों को देखते हुए बेंजामिन नेतन्याहू ने सोमवार की रात ऐलान किया कि वह विवादस्पद बन चुके इन न्यायिक कानून सुधारों पर अस्थाई रूप से रोक लगा रहे हैं. प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने कहा कि 'वास्तविक अवसर देने के लिए संसद अवकाश के बाद तक विवादास्पद कानून अस्थायी रूप से रोक लगाने का आदेश दिया जाता है. उन्होंने कहा कि जब बातचीत के माध्यम से गृहयुद्ध से बचने का विकल्प होता है, तो मैं बातचीत के लिए समय निकाल लेता हूंस यह राष्ट्रीय जिम्मेदारी है. नेतन्याहू के इस ऐलान को लोकतंत्र की जीत के तौर पर देखा जा रहा है और तेल अवीव की सड़कों पर शांति होने लगी है.
क्यों हो रहे थे तीन महीने से प्रदर्शन
सवाल उठता है कि आखिर इजरायल की सड़कों पर 'बीबी घर जाओ' के नारे क्यों लग रहे थे और आखिर प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू कानून में सुधार का ऐसा कौन से प्रस्ताव लेकर आए थे, कि सत्ता में वापसी के एक महीने के अंदर ही उन्हें देश भर में इतने बड़े प्रदर्शन का सामना करना पड़ गया. बता दें कि बेंजामिन नेतन्याहू को उनके समर्थक किंग बीबी कहते हैं और हैरानी की बात ये है कि जब नेतन्याहू ने कानून सुधारों को लागू करने की कोशिश की तो बड़ी संख्या में उनके समर्थक और यहां तक के उनके रिश्तेदार भी उनके विरोधी हो गए.
नेतन्याहू इन आरोपों से घिरे हुए हैं
किसी भी लोकतांत्रिक राज्य को उसका सही व्यस्थागत ढांचा और उसकी वास्तविक शक्ति उसे वहां की न्यायपालिक का दृढ़ अस्तित्व ही दे सकता है. यानि की ये स्पष्ट हो कि न्याय पालिका, चुनी हुई सरकारों और सत्तारूढ़ पार्टी से ऊपर हो. इस व्यवस्था में जबरन बदलाव करना ही निरंकुशता की ओर बढ़ना पहला कदम है. नेतन्याहू जिस तरह के संशोधन का प्रस्ताव लाए थे, जनता को आशंका था कि इसके जरिए न्यायपालिक का शक्तियां कमजोर होंगी. साथ ही इन सुधारों का प्रयोग बेंजामिन नेतन्याहू को उन तमाम आरोपों और मुकदमों से बचाने के लिए किया जा सकता है, जो उनके ऊपर सत्ता में लगातार 12 साल रहने के दौरान लगे हैं.
क्या खुद के बचाव के लिए लाए गए थे प्रस्ताव
असल में, नेतन्याहू पर रिश्वत लेने, फ्रॉड और विश्वासघात के केस चल रहे हैं, नेतन्याहू भले ही इन आरोपों का खंडन करते आए हैं, लेकिन जून 2021 में उन्हें इसी वजह से अपना पद छोड़ना पड़ा था. नवंबर 2022 में ही हुए चुनावों में बेंजामिन नेतन्याहू ने सत्ता में वापसी की थी. प्रदर्शनकारियों की आशंका थी कि एक बार ये सुधार लागू हो जाएंगे तो इसराइल की संसद के पास साधारण बहुमत से सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को रद्द करने की शक्ति होगी. ये मौजूदा सरकार को बिना किसी डर के कानून पारित करने में सक्षम बना सकता है. इसके साथ ही इनका उपयोग पीएम नेतन्याहू पर चल रहे मुकदमों को खत्म करने के लिए किया जा सकता है. हालांकि सरकार के बयान में अब तक उसकी ऐसी कोई मंशा जाहिर होती सामने नहीं आई है.
न्यायपालिका में क्या बदलाव करना चाहते थे नेतन्याहू
नेतन्याहू के लाए जाने वाले सुधारों को आसान शब्दों में समझें तो वह तीन बदलावों की प्रस्तावना लेकर आए हैं. पहला तो यह कि संसद को वह शक्ति मिले, जिसके जरिए सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को वह पलट सके और दूसरा यह कि जजों की नियुक्ति में सरकार का दखल होना चाहिए. इसके अलावा नए सुधारों की एक तीसरी ख्वाहिश भी है कि संसद के कानून को रद्द करना कोर्ट के लिए मुश्किल हो जाए. असल में यह तीसरी ख्वाहिश ही नेतन्याहू के लाए गए प्रस्तावों का सार है.
ऐसा है इजरायल का संविधान
अब अगर, इस पूरे प्रकरण को विस्तार से देखें तो सरकार इजरायल की शासन व्यवस्था को ढांचा देने वाले मूल कानूनों में बदलाव की ख्वाहिश रखती है. असल में इस देश में कोई लिखित संविधान तो नहीं हैं, लेकिन 14 Basic Laws ही बनने वाले हर कानून का आधार हैं. अगर पीएम नेतन्याहू की सरकार इनमें बदलाव करने में सक्षम-सफल हो जाती है तो आगे वह कोई भी बदलाव आसानी से कर सकती है.
सर्वोच्च न्यायालय की शक्ति छीनने की चाहत
इजरायल के बेसिक लॉ ने सुप्रीम कोर्ट को यह शक्ति दी है कि वह संसद में लाए किसी भी कानून की समीक्षा कर सकती है और उसकी वैधता की जांज भी कर सकती है. नेतन्याहू सरकार इजरायल के मूल कानूनों में बदलाव लाकर सर्वोच्च न्यायालय से यह शक्ति छीनना चाह रही है.
जजों की नियुक्ति में सरकार चाहती है एकाधिकार
इसी तरह दूसरा बदलाव जो सरकार चाहती है कि वह है सुप्रीम कोर्ट में जज की नियुक्ति करने वाली कमेटी में बदलाव. अभी इजरायल के सुप्रीम कोर्ट में न्यायाधीश की नियुक्ति नौ सदस्यीय कमेटी करती है, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश, वकील, सांसद व मंत्री शामिल होते हैं. सरकार इस कमेटी का ढांचा बदलकर चाहती है कि वह मनमुताबिक न्यायाधीशों की नियुक्ति कर सके. इससे कोर्ट की सबसे भीतरी आत्मा में भी सरकार (सत्तारूढ़ पार्टी) का एकाधिकार हो जाएगा.
न्यायालय का फैसला पलट सकती है संसद
तीसरा जो अहम प्रस्ताव है, वह वाकई लोकतंत्र और न्याय की आत्मा पर चोट है. अभी न्यायालय के पास शक्ति है कि उसके निर्णय सर्वोपरि होते हैं और इन पर आपत्ति नहीं की जा सकती है. नेतन्याहू सरकार के प्रस्ताव में यह शामिल है कि संसद चाहे तो साधारण बहुमत वोट के साथ न्यायालय के किसी भी फैसले को पलट सकती है. हालिया समय में प्रस्तावित जो विधेयक है उसमें यह कहा गया है कि सुप्रीम कोर्ट, संसद द्वारा लाए गए किसी भी कानून को केवल तभी रद्द कर सकती है जब सुप्रीम कोर्ट के सभी 15 न्यायाधीश लाए गए कानून को खत्म करने पर अपनी सहमति जताते हों (या, एक अलग रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 12 की सहमति की आवश्यकता होगी). नेतन्याहू सरकार का “ओवरराइड क्लॉज़” हालिया प्रस्ताव का सबसे विवादास्पद तत्व है, यह सर्वोच्च न्यायालय के अधिकारों और स्वतंत्रता पर असंवैधानिक उल्लंघन के रूप में हमला करता है.
...लेकिन नेतन्याहू को झुकना ही पड़ा
इन न्यायिक सुधारों की बात, नेतन्याहू अपने चुनाव प्रचार में भी करते रहे थे. नवंबर में सत्ता हासिल होने के बाद उन्होंने जनवरी में इन प्रस्तावों को पटल पर रखा, जिसके तुरंत बाद विरोध शुरू हो गया था. बीते तीन महीनों से जारी प्रदर्शन के बाद देश में गृह युद्ध की स्थिति बनने लगी थी. बीते 25 मार्च रक्षा मंत्री योआव गैलेंट को सरकार ने बर्खास्त कर दिया था. असल में इससे एक दिन पहले रक्षा मंत्री ने विवादास्पद न्यायिक सुधारों को रोकने का सरकार से आह्वान किया था. रक्षा मंत्री को बर्खास्त करते ही प्रदर्शन और तेज हो गए. इसके बाद सोमवार से विभिन्न समूह सड़कों पर और भारी भीड़ के साथ उतर आए. इसके बाद स्थिति को देखते हुए पीएम नेतन्याहू ने न्यायिक सुधारों के अपने प्रस्तावों को रोक दिया है.
विकास पोरवाल