इशाक डार बन सकते हैं PAK के कार्यवाहक प्रधानमंत्री, शहबाज शरीफ की पार्टी जल्द लेगी फैसला!

शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार ने चुनाव अधिनियम 2017 में बदलाव करने पर विचार विमर्श किया है. इसका मकसद आगामी कार्यवाहक व्यवस्था को इसके संवैधानिक जनादेश से परे निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाना है. पाकिस्तानी मीडिया रिपोर्ट में दावा किया गया है कि शहबाज की पार्टी वित्त मंत्री इशाक डार को कार्यवाहक प्रधानमंत्री बनाने पर विचार कर रही है.

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इशाक डार और शहबाज शरीफ इशाक डार और शहबाज शरीफ

aajtak.in

  • इस्लामाबाद,
  • 23 जुलाई 2023,
  • अपडेटेड 5:11 PM IST

पाकिस्तान की शहबाज शरीफ सरकार का कार्यकाल 12 अगस्त को पूरा होने वाला है. हाल ही में प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने गठबंधन सरकार का कार्यकाल पूरा होने से पहले ही सत्ता कार्यवाहक सरकार को सौंपने के संकेत दे दिए थे. इसके बाद से पड़ोसी मुल्क के राजनीति गलियारों में तरह-तरह की सुगबुगाहट शुरू हो गई है. इस बीच अब एक रिपोर्ट में दावा किया गया है कि सत्तारूढ़ पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज पार्टी कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद के लिए वित्त मंत्री इशाक डार के नाम पर प्रस्ताव पर विचार कर रही है.

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न्यूज एजेंसी के मुताबिक द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट में कहा गया है कि डार का नाम तब फोकस में आया जब शहबाज शरीफ के नेतृत्व वाली सरकार ने चुनाव अधिनियम 2017 में बदलाव करने पर विचार विमर्श किया. इसका मकसद आगामी कार्यवाहक व्यवस्था को इसके संवैधानिक जनादेश से परे निर्णय लेने के लिए सशक्त बनाना है. ऐसा हाल में शुरू की गई आर्थिक योजना की निरंतरता सुनिश्चित करने और सरकार के स्वामित्व वाली संस्थाओं में विदेशी निवेश प्राप्त करने की प्रक्रिया में तेजी लाने के मद्देनजर किया गया है.

डार के नाम का ऐलान पीपीपी से बातचीत के बाद

अखबार ने सूत्रों के हवाले से बताया कि पाकिस्तान मुस्लिम लीग (एन) आर्थिक नीतियों के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिए एक व्यापक योजना के हिस्से के रूप में कार्यवाहक प्रधानमंत्री के लिए डार के नाम के पर विचार कर रही है. हालांकि डार की उम्मीदवारी के बारे में अंतिम निर्णय गठबंधन के दो मुख्य सहयोगियों में से एक, पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी (पीपीपी) से बातचीत होने के बाद अगले हफ्ते लिया जाएगा.

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धारा 230 में संशोधन करने पर विचार कर रही सरकार

पीएमएल-एन के सूत्रों ने बताया कि सरकार चुनाव अधिनियम 2017 की धारा 230 में संशोधन करने पर विचार कर रही है, जिससे कार्यवाहक व्यवस्था को आर्थिक निर्णय लेने का अधिकार मिल सके. कार्यवाहक सरकार को अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने के लिए आवश्यक निर्णय लेने की अनुमति देने के लिए अगले हफ्ते नेशनल असेंबली में संशोधन पेश किया जा सकता है.

इसलिए नियम बदलना चाहती है सरकार

रिपोर्ट के मुताबिक एक वरिष्ठ कैबिनेट सदस्य ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था ऐसे दौर से गुजर रही है, जहां सिर्फ रोजमर्रा के फैसले पर कार्यवाहक सरकार को तीन महीने के लिए नहीं छोड़ा जा सकता है. यह सुनिश्चित करने के लिए कि आईएमएफ से मदद जारी रहे और नवंबर में नई सरकार बन सके, इसके लिए जरूरी है कि कार्यवाहक सरकार के पास आर्थिक मामलों में निर्णय लेने के लिए अधिक शक्तियां हों.

कार्यवाहक सरकार नहीं ले सकती नीतिगत निर्णय

बता दें कि धारा 230 के मुताबिक, एक कार्यवाहक (अंतरिम) सरकार के पास केवल रोजमर्रा के मामलों को देखने का अधिकार होता है. वह प्रमुख नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती है. कार्यवाहक सरकार का गठन अनुच्छेद 224 के तहत किया जाता है और इसके उपखंड के मुताबिक अगर अनुच्छेद 58 के तहत संसद भंग हो जाए तो देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और नेशनल असेंबली में विपक्ष के नेता की सलाह से कार्यवाहक सरकार का गठन किया जाता है.

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कार्यवाहक पीएम को अधिक शक्तियां देना चाहती है सरकार

कार्यवाहकर सरकार चुनाव आयोग को आम चुनाव कराने में सहायता करेगी और खुद को उन गतिविधियों तक सीमित रखेगी जो सार्वजनिक हित में नियमित, गैर-विवादास्पद और तत्काल प्रकृति की हैं, जिन्हें भविष्य में निर्वाचित सरकार द्वारा पलटा भी जा सकता है. अब शहबाज सरकार कार्यवाहक प्रधानमंत्री को अधिक शक्तियां देने पर विचार कर रही है. रिपोर्ट के मुताबिक, कार्यवाहक प्रधानमंत्री पद के लिए पूर्व वित्त मंत्री हफीज शेख का नाम भी चर्चा में है.

सूत्रों ने बताया कि शहबाज सरकार का प्रस्ताव धारा 230 की दोनों उपधाराओं में संशोधन करने का था, जो अंतरिम व्यवस्था को दिए गए अधिकार से संबंधित हैं. उदाहरण के लिए देखें तो जुलाई 2018 में तत्कालीन कार्यवाहक सरकार आईएमएफ के साथ कार्यक्रम वार्ता करना चाहती थी लेकिन तत्कालीन कानून मंत्री ने नियम के आधार पर इसका विरोध किया कि इसके पास ऐसी शक्तियां नहीं हैं.

असेंबली क्यों भंग करना चाहती शहबाज सरकार?

पाकिस्तान के संविधान के तहत अगर नेशनल असेंबली अपना कार्यकाल पूरा कर लेती है तो 60 दिनों के भीतर चुनाव कराना अनिवार्य है. लेकिन अगर नेशनल असेंबली को समय से पहले भंग कर दिया जाता है तो सरकार को चुनाव कराने के लिए पूरे 90 दिन का समय मिल जाएगा. इसका साफ मतलब है कि सरकार को अपने पक्ष में माहौल बनाने के लिए ज्यादा समय मिलेगा. वह मौजूदा आर्थिक संकट से जूझते हुए 90 दिनों तक कुछ बेहतर स्थिति तक पहुंच सकती है.

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