पिछले दो दिनों से ईरान के कई शहरों और कस्बों की सड़कों पर भारी उथल-पुथल देखने को मिल रही है. ईरानी रियाल की कीमत अमेरिकी डॉलर के मुकाबले रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुंच गई है और महंगाई दर 42.2 प्रतिशत तक पहुंच गई है, जिसमें खाद्य पदार्थों की कीमतें 72 प्रतिशत बढ़ गई हैं. इसके बाद सुप्रीम लीडर अयातुल्ला अली खामेनेई के नेतृत्व वाला धार्मिक शासन तीन साल की सबसे बड़ी जन-विरोधी लहर का सामना कर रहा है. तेहरान के ग्रैंड बाजार से शुरू हुआ सरकार विरोधी प्रदर्शन अब मशहद, इस्फहान, शिराज, हमदान समेत कई शहरों में फैल गया है.
ईरानी-अमेरिकी पत्रकार मसीह अलीनेजाद ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा कि ईरान से आ रहे कई वीडियो में लोग एक स्वर में नारे लगा रहे हैं- 'मुल्लाओं को ईरान छोड़ना होगा' और 'तानाशाही मुर्दाबाद'. उनके मुताबिक, यह उस जनता की आवाज है जो अब इस्लामिक रिपब्लिक नहीं चाहती. 9.2 करोड़ से अधिक आबादी वाले इस देश में आर्थिक बदहाली और कानून-व्यवस्था की बिगड़ती स्थिति ने खामेनेई शासन के लिए गंभीर संकट खड़ा कर दिया है. यह संकट ऐसे समय आया है, जब ईरान पहले से ही अपने परमाणु ठिकानों पर इजरायल और अमेरिका की कार्रवाइयों तथा डोनाल्ड ट्रंप की 'मैक्सिमम प्रेशर पॉलिसी' के दबाव से जूझ रहा है.
इसी बीच, ईरानी प्रवासियों द्वारा साझा की जा रही एक तस्वीर ने दुनिया का ध्यान खींचा है, जिसमें तेहरान की एक हाईवे पर एक व्यक्ति अकेले, शांत बैठा दिख रहा है, जबकि मोटरसाइकिलों पर सवार सुरक्षाबल उसकी ओर बढ़ रहे हैं. यूनाइटेड अगेंस्ट न्यूक्लियर ईरान (UANI) के पॉलिसी डायरेक्टर जेसन ब्रॉडस्की ने इस दृश्य की तुलना 1989 के तियानआनमेन स्क्वायर (Tiananmen Square) आंदोलन की महशूर तस्वीर 'टैंक मैन' से की है. कुछ विश्लेषकों का दावा है कि सड़कों पर शाह समर्थक नारे भी सुनाई दिए, जिनकी सत्ता को 1979 में खामेनेई समर्थित आंदोलन ने उखाड़ फेंका था.
हालांकि, ईरानी सरकारी मीडिया ने विरोध प्रदर्शनों को सीमित बताने की कोशिश की है. सरकारी समाचार एजेंसी IRNA ने इन्हें राजनीतिक नहीं, बल्कि आर्थिक नाराजगी करार दिया और कहा कि रियाल के गिरने से नाराज मोबाइल फोन विक्रेताओं ने प्रदर्शन किया. सुरक्षा बलों ने आंसू गैस और बल प्रयोग कर भीड़ को तितर-बितर करने की भी कोशिश की, जिसके वीडियो सोशल मीडिया पर वीडियो वायरल हो रहे हैं. ईरान के सेंट्रल बैंक के गवर्नर मोहम्मद रेजा फरजिन ने इस्तीफा दे दिया है, जिसे राष्ट्रपति मसूद पेजेश्कियन ने स्वीकार कर लिया. राष्ट्रपति ने सोशल मीडिया पर कहा कि लोगों की आजीविका उनकी मुख्य चिंता है और सरकार मॉनेटरी रिफॉर्म करने की योजना बना रही है.
ईरान की जनता सड़कों पर क्यों उतरी?
ईरान में 28 दिसंबर से शुरू हुए ये सरकार विरोधी प्रदर्शन 2022-23 के बाद सबसे बड़े हैं, जब महसा अमीनी की मौत के बाद देशव्यापी आंदोलन हुआ था. तेहरान और मशहद में सोमवार को प्रदर्शनकारियों की सुरक्षाबलों से झड़पें हुईं. सेंट्रल तेहरान, जहां सरकारी और व्यावसायिक केंद्र स्थित हैं, विरोध का बड़ा केंद्र बना. सोशल मीडिया पर वायरल वीडियो में ग्रैंड बाजार के एक शॉपिंग कॉम्प्लेक्स के भीतर लोग नारे लगाते दिखे- 'डरो मत, हम सब साथ हैं'. रियाल की ऐतिहासिक गिरावट ने आम लोगों की क्रय शक्ति (Purchasing Power) को लगभग खत्म कर दिया है. खाने-पीने की चीजें, दवाइयां और रोजमर्रा के सामान आम नागरिकों की पहुंच से बाहर होते जा रहे हैं. हालात ये है कि तेहरान, इस्फहान, शिराज और मशहद में व्यापारी, दुकानदार और छोटे कारोबारी सड़कों पर उतर आए हैं.
इसके लिए ट्रंप फैक्टर कितना जिम्मेदार?
ईरान की आर्थिक बदहाली का बड़ा कारण उस पर लगे अंतरराष्ट्रीय प्रतिबंध माने जा रहे हैं. अमेरिका के 2015 के परमाणु समझौते से पीछे हटने और ट्रंप की मैक्सिमम प्रेशर पॉलिसी ने ईरान की तेल से होने वाली आय को बुरी तरह प्रभावित किया है. ट्रंप के जनवरी 2025 में दूसरी बार अमेरिकी राष्ट्रपति बनने के बाद ये प्रतिबंध और सख्त हुए हैं, जिसने हालात और बिगाड़ दिए. पूर्व अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ ने कहा कि इस्लामिक शासन के खिलाफ सड़कों पर उतरे ईरानियों का गुस्सा कोई हैरानी की बात नहीं है.
उनके मुताबिक, चरमपंथ और भ्रष्टाचार ने एक संभावनाशील देश को बर्बाद कर दिया है. विशेषज्ञों का मानना है कि ईरान में इस्लामिक शासन के खिलाफ मौजूदा जनविरोध न तो पूरी तरह बाहरी ताकतों द्वारा प्रायोजित है और न ही अचानक भड़का है. यह वर्षों से जमा आर्थिक पीड़ा और राजनीतिक थकान का नतीजा है. ट्रंप प्रशासन का दबाव अप्रत्यक्ष रूप से ईरानी शासन की अंदरूनी नाकामियों को उजागर कर रहा है, जिसने आज खामेनेई के 'मुल्ला शासन' को एक अस्तित्वगत संकट में ला खड़ा किया है.
सुशीम मुकुल