'चिंता मत करो.... मैं यूरोप से सिर्फ आठ या नौ घंटे की दूरी पर हूं..' नईम अफरीदी ने आखिरी बार अपने भाई हमीदुल्ला से 12 जून को बात की थी जब वह लीबिया से यूरोप की तरफ जाने वाले नाव पर सवार हो रहे थे. हमीदुल्ला ने अपने भाई से कहा था कि वह यूरोप पहुंच जाएगा तो उन्हें कॉल कर लेगा. लेकिन हमीदुल्ला यूरोप से उस आठ घंटे की दूरी को कभी तय नहीं कर पाया और नाव दुर्घटना का शिकार हो गया.
14 जून को मछली पकड़ने वाली एक छोटी नाव कम से कम 750 लोगों को अवैध तरीके से लीबिया से इटली ले जा रही थी. नाव पर सबसे अधिक लोग पाकिस्तान के थे. दर्जनों लोग सीरिया, मिस्र और फिलिस्तीन से थे. पाकिस्तान के गृह मंत्री ने बताया कि नाव पर कम से कम 350 पाकिस्तानी सवार थे. इनमें से अधिकर पीओके इलाके से थे. नाव ग्रीस के पास पलट गई जिसके बाद नाव में सवार केवल 104 लोगों को ही बचाया जा सका. ग्रीस के कोस्ट गार्ड्स ने 82 लोगों के मौत की पुष्टि की है.
हमीदुल्ला भी उन्हीं लोगों में सवार थे जो बेहतर जिंदगी की तलाश में जान दांव पर लगाकर यूरोप के लिए निकले थे. उनके भाई नईम ने अलजजीरा से बात करते हुए कहा, 'जब मैंने ग्रीस के पाइलोस में जहाज की दुर्घटना के बारे में खबर पढ़ी, तो मुझे ऐसा लगा जैसे मेरे शरीर से मेरी आत्मा निकल रही हो.'
'पाकिस्तान में कानून का शासन नहीं है'
वो पिछले कई दिनों से अपने भाई की तलाश कर रहे हैं लेकिन उनका कहीं अता-पता नहीं है. लेकिन अब उन्हें लगने लगा है कि हमीदुल्ला और उनका तीन साल का बेटा अफाक अहमद उन सैकड़ों लोगों में शामिल है जिनकी लाश तो नहीं मिली है लेकिन जिनके मारे जाने की आशंका है.
नईम ने कहा कि हमीदुल्ला पाकिस्तान में नहीं रहना चाहता था और इसलिए उसने एक सुरक्षित और बेहतर भविष्य की उम्मीद में अपने बेटे के साथ पाकिस्तान छोड़ दिया था. एक साल पहले हमीदुल्ला की पत्नी की हत्या कर दी गई थी और उन्हें डर था कि उनके बेटे को भी मार दिया जाएगा.
नईम कहते हैं, 'पाकिस्तान में, आपको कई कारणों से देश छोड़ना पड़ता है. यहां कानून का कोई शासन नहीं है.'
हमीदुल्ला और उनके भाइयों ने यूरोप जाने के लिए कई विकल्पों पर विचार किया था लेकिन फिर उन्हें लगा कि यूरोप जाने के लिए नाव ही एकमात्र विकल्प है.
नाव को डूबे 11 दिन से भी अधिक समय हो गया है लेकिन अब भी कम से कम 500 लोगों का कुछ पता नहीं चल पाया है. समुद्र में लापता लोगों के परिजन उनके साथ हुई आखिरी बातचीत को याद कर रो रहे हैं.
गरीबी के कारण यूरोप निकले थे पाकिस्तानी
पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर, पीओके के रहने वाले सईद अनवर के बड़े भाई अब्दुल जब्बार भी उसी नाव में सवार थे. उन्होंने कहा कि उनके भाई नरम दिल थे और हर कोई उनसे बात करना चाहता था.
अब्दुल जब्बार और उनके तीन चचेरे भाई- साजिद यूसुफ, अवैस आसिफ और तुकीर परवेज अच्छा पैसा कमाने की उम्मीद से पीओके में कोटली के पास स्थित अपना गांव छोड़कर यूरोप रवाना हुए थे. लेकिन अब नाव डूबने के बाद से उनका कहीं अता-पता नहीं है. चारों परिवार गहरे शोक में हैं.
उनके चाचा रमजान जर्राल ने कहा, 'वे गरीबी के कारण यूरोप निकले थे. कश्मीर में संघर्ष चलता रहता है और उनके पास नौकरी का कोई अवसर नहीं था.'
उन्होंने कहा कि परिवार के पास छत बनवाने के भी पैसे नहीं है इसलिए गरीबी से परेशान उनके भतीजे यूरोप जाने का सपना देख रहे थे. जब अब्दुल लीबिया में थे तब उन्होंने अपने परिवार से लगातार व्हाट्सएप पर बात की थी. उन्होंने अपने चाचा से कहा था कि वो नाव से समुद्र पार करने को लेकर चिंतित है लेकिन उन्हें उम्मीद है कि वो यूरोप पहुंच जाएंगे.
अनवर ने कहा कि जब अब्दुल से आखिरी बार बातचीत हुई थी तब उन्होंने कहा कि वो उनके परिवार, खासकर दो बेटियों की देखभाल करें. अब्दुल की पत्नी यासरा अपने तीसरे बच्चे के साथ गर्भवती हैं. अनवर ने आगे कहा, 'उसने मुझसे कहा था कि चाचा दुआ करना कि मैं अपनी मंजिल तक सुरक्षित पहुंच जाऊं.'
'ऐसा दुख किसी को न झेलना पड़े'
जब अब्दुल के परिवार ने जहाज डूबने की खबर सुनी तो वो सदमे में आ गए. उन्हें इस बात का भी अधिक दर्द हो रहा था कि चारों को यूरोप भेजने के लिए उन्होंने जो पैसे उधार लिए थे, उन्हें कैसे चुकाया जाएगा.
रमजान जर्राल ने कहा, 'एक परिवार के रूप में यह हमारे लिए बहुत कठिन समय है. जब भी कोई फोन बजता है तो हम यही सोचते हैं कि शायद किसी के पास अच्छी खबर होगी. हम दिन के 24 घंटे, सप्ताह के सातों दिन इस पीड़ा से गुजर रहे हैं. मैं दुआ करता हूं कि ऐसा दर्द दुनिया में किसी को न झेलना पड़े.'
सीरियाई परिवारों का दर्द
सीरिया के कोबेन का रहने वाले बोजान सीकरी के परिवार में भी मातम पसरा है. नाव डूबने के बाद से ही उनका 18 साल का बेटा अहमद बोजान और उनके दो रिश्तेदार वेलिद मुहम्मद कासिम और हेम्मुदे फैजी सेही लापता हैं.
बोजान कहते हैं, 'हमने कभी नहीं सोचा था कि हम उसे यूरोप भेजेंगे. लेकिन यहां की परिस्थितियों ने हमें ऐसा करने के लिए मजबूर किया. कोबेन में कुछ भी नहीं है. युद्ध में यह बर्बाद हो चुका है. यहां कोई स्कूल नहीं है.'
बोजान ने कहा कि उन्होंने आखिरी बार अपने बेटे से 10 जून को बात की थी. इस दौरान उनके बेटे अहमद ने उनसे बताया था कि उन्हें ले जाने वाले तस्करों ने उनसे 500 डॉलर और लिए हैं. बोजान ने तस्करों को पहले ही चार हजार डॉलर दिए थे.
उन्होंने बताया, 'मैंने अपने बेटे से कहा थी कोई बात नहीं बेटा, उन्हें 500 डॉलर और दे दो और वो तुम्हें ले जाएंगे. मैंने उसे शुभकामनाएं दी और उसके बाद से कभी उससे बात नहीं हो पाई.'
यूरोप में पढ़ने भेजा लेकिन अब लापता है बेटा
कोबेन से जो लोग इटली के लिए निकले थे उस समूह में मुहम्मद कासिम का 14 साल का बेटा वेलिद मुहम्मद कासिम भी था. उनके पिता ने अपने बेटे को बेहतर शिक्षा दिलाने के लिए यूरोप भेजा लेकिन अब वो लापता है.
कासिम ने आखिरी बार अपने छोटे बेटे से 9 जून को बात की थी. वो कहते हैं, 'वेलिद ने मुझसे दुआ मांगी और मैंने उसे अलविदा कहा था. हम अब भी दिन-रात रोते रहते हैं. हमारे 14 साल के बेटे ने बहुत सी मुश्किलें देखीं. सब कुछ सहा, लेकिन वह वहां जाना चाहता था जहां नहीं पहुंच सका. हम नहीं जानते कि वह जिंदा है या मर गया. हम बस इतना चाहते हैं कि हमें उसका पता मिले. यही बात हमारे दिल को जला रही है, हमारा दर्द और बढ़ा रही हैं.'
नाव पर एबदु सेही के दो भाई हेम्मुदे फैजी सेही और अली सेही सवार थे. वे जानते थे कि छोटी नाव पर समुद्र पार करना कितना खतरनाक है लेकिन वो कोबेन में चल रहे युद्ध से बचना चाहते थे.
एबदु सेही कहते हैं, 'अगर वो यहां रहते तो भी मर जाते और यहां से जाते हैं तो भी आपको मौत मिलेगी. हम यहां से चले जाने को जिंदा बचने के एकमात्र तरीके के रूप में देखते हैं लेकिन वहां भी हमें मौत मिल रही है.'
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