चीन में उइगर मुस्लिमों के नरसंहार का इस कंपनी से भी लिंक, अबतक नहीं लगा कोई प्रतिबंध, रिपोर्ट में खुलासा

शिनजिंयाग क्षेत्र में मानवाधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश Dahua और Hikvision जैसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. अब तक गैर-प्रतिबंधित रही चीनी कंपनी Tiandy पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निगाहें गई हैं.

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aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 14 दिसंबर 2022,
  • अपडेटेड 10:06 AM IST

चीन में उइगर मुस्लिमों के अधिकारों के उल्लंघन और उनके खिलाफ अत्याचार की खबरें लगातार आती रहती हैं. संयुक्त राष्ट्र की ओर से भी कहा जा चुका है कि चीन में उइगर मुस्लिमों को मनमाने ढंग से हिरासत में रखा जाता है, उनसे जबरन श्रम कराया जाता है. इस बीच एफडीडी रिपोर्ट में कहा गया है कि उइगरों पर कार्रवाई के लिए जिम्मेदार चीन की चौथी सबसे बड़ी सीसीटीवी कंपनी टियांडी इतने लंबे समय तक लोगों की नजरों से दूर रहने में कामयाब रही.  

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शिनजिंयाग क्षेत्र में मानवाधिकारों के उल्लंघन को बढ़ावा देने के लिए अमेरिका और ब्रिटेन जैसे देश Dahua और Hikvision जैसी कंपनियों पर प्रतिबंध लगा चुके हैं. अब तक गैर-प्रतिबंधित रही चीनी कंपनी Tiandy पर मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की निगाहें गई हैं. ईरानी सरकार के फेशियल डिटेक्शन तकनीक के कार्यान्वयन पर एक हालिया बयान ने इसे और पुख्ता कर दिया है कि Tiandy आने वाले दिनों में खोज में ऑपरेटरों में से एक हो सकता है. 

कुछ समय पहले तक चीनी क्लोज-सर्किट टेलीविज़न (CCTV) निर्माताओं को ब्रिटेन सहित दुनिया भर के कुछ प्रमुख देशों द्वारा टारगेट किया जा रहा था. ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ऋषि सुनक ने कुछ ही सप्ताह पहले "संवेदनशील क्षेत्रों" के आसपास चीनी निगरानी कैमरों की उपस्थिति पर प्रतिबंध लगा दिया था. अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडेन ने भी उसी का पालन करते हुए Huawei सहित अमेरिका में कई चीनी निगरानी कंपनियों के उत्पादों की बिक्री और आयात पर प्रतिबंध लगा दिया. 

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अमेरिका की संस्था फाउंडेशन फॉर डिफेंस ऑफ डेमोक्रेसीज (FDD) की ताजा रिपोर्ट के अनुसार, चीन की चौथी सबसे बड़ी सीसीटीवी कंपनी Tiandy के प्रोडक्ट बेरोकटोक बिकते रहे. एफडीडी की स्थापना दो दशक पहले हुई थी. ऑनलाइन सर्च के नतीजे बताते हैं कि टियांडी के उपकरण भारत में भी बिक्री के लिए उपलब्ध हैं. सीसीटीवी कंपनियों के निर्माण में खुद को 7वें स्थान पर रखने वाली Tiandy कंपनी के उपकरण अबतक 60 देशों में उपयोग किए जा रहे हैं. इसकी स्थापना साल 1998 में हुई थी. अमेरिका आधारित फेमस इंटेल कॉर्प कंपनी सुरक्षा के क्षेत्र में इसकी साझेदार है.  

 

CCTV से हो जाती है नस्लीय पहचान 

इस कंपनी के अपग्रेडेड सीसीटीवी कैमरे ऐसे होते हैं, जिनसे लोगों की गिनती, भीड़ का पता लगाना, लापता वस्तु का पता लगाना और यहां तक कि नस्लीय पहचान भी की जा सकती है. तकनीकी शब्दों में इसे इंटेलिजेंट वीडियो एनालिटिक्स (IVA) कहा जाता है. इन्हें अधिकारियों द्वारा चीन के शिनजियांग के उइगर बाहुल्य इलाकों में प्रयोग किया जाता है. उइगर ट्रिब्यूनल द्वारा प्रकाशित साल 2021 की रिपोर्ट के मुताबिक, लोकप्रिय चीनी सीसीटीवी कैमरों में उइगर फेस डिटेक्शन (UFD) फीचर जुलाई 2020 में शामिल किया गया था. Tiandy प्रोडक्ट्स पर काम करने वाले शीर्ष संगठनों में चाइना मोबाइल कम्युनिकेशंस कॉरपोरेशन है, जो पीपुल्स रिपब्लिक ऑफ चाइना और दुनिया दोनों में काम करने वाला सबसे बड़ा दूरसंचार नेटवर्क ऑपरेटर है. 

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अमेरिकी सीनेटर ने भेजा है बाइडेन को पत्र 

अमेरिकी सीनेटर मार्को रुबियो ने बाइडेन प्रशासन को एक पत्र भेजा है, जिसमें एनबीसी समाचार के अनुसार, चीनी अधिकारियों को निगरानी गियर भी प्रदान करने वाली टियांडी टेक्नोलॉजीज को मंजूरी देने पर विचार करने का आग्रह किया गया है. ऐसी अन्य चीनी सीसीटीवी कंपनियां (Hikvision, Megvii और SenseTime समेत) समान जातीय पहचान सुविधाओं के साथ Tiandy के रूप में US OFAC विभाग द्वारा पूर्व में स्वीकृत की गई हैं.  

चीनी कंपनी से हो चुकी है पूछताछ

इससे पहले चीनी कंपनी  'स्काईनेट प्रोजेक्ट' का हिस्सा SenseNets से साल 2019 में अंतरराष्ट्रीय मीडिया संगठनों और मानवाधिकार समूहों ने क्रॉस-पूछताछ की थी, जो नागरिकों के चेहरों को उनकी जातीयता के साथ कैप्चर करने वाले असुरक्षित फेशियल रिकॉग्निशन डेटाबेस के बारे में थी. सबसे पहले इस मुद्दे पर एफडीआई फाउंडेशन के सह-संस्थापक विक्टर गेवर्स ने एक ट्वीट किया था, जिसमें उइगर मुस्लिमों के आसपास के वीडियो भी शेयर किए गए थे.  

एजेंसियों का डेटा होता है दुरुपयोग

सॉफ्टवेयर फ्रीडम लॉ सेंटर के कानूनी निदेशक प्रशांत सुगथन ने भारत में संचालित चीनी सीसीटीवी कंपनियों के प्रभाव पर कहा कि अधिकांश सीसीटीवी सिस्टम इंटरनेट पर उपलब्ध हैं. ये फुटेज भारत के अंदर और बाहर कंपनियों के सर्वर में रहते हैं, जोकि चिंता का विषय है. डेटा संरक्षण कानून के अभाव में नागरिकों को इस डेटा के दुरुपयोग के विरुद्ध अधिक सुरक्षा नहीं मिलती है. उचित अधिकारों का सम्मान करने वाले वैधानिक ढांचे के अभाव में सरकारी एजेंसियों द्वारा इस डेटा का दुरुपयोग भी किया जा सकता है. 

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(रिपोर्ट- दीप्ति यादव) 

 

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