स्कूल में नमाज पढ़ने से रोका तो कोर्ट पहुंचा मामला, ब्रिटिश अदालत ने सुनाया ये फैसला

स्कूल की प्रिंसिपल कैथरीन ने अदालत में कहा, 'जैसा कि गवर्निंग बॉडी को पता है, स्कूल विभिन्न कारणों से छात्रों को प्रार्थना के लिए कमरा उपलब्ध नहीं कराता है. प्रार्थना के लिए कमरा छात्रों के बीच विभाजन को बढ़ावा देगा जो स्कूल के लोकाचार के खिलाफ है, स्कूल में जगह और कर्मचारियों की भी कमी है.'

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लंदन का मिशेला स्कूल लंदन का मिशेला स्कूल

aajtak.in

  • लंदन,
  • 16 अप्रैल 2024,
  • अपडेटेड 9:50 PM IST

ब्रिटेन में लोग अक्सर भारतीय मूल की स्कूल प्रिंसिपल कैथरीन बीरबलसिंह को 'देश की सबसे सख्त प्रिंसिपल' भी कहते हैं. मंगलवार को उन्होंने ब्रिटिश हाई कोर्ट के उस फैसले का स्वागत किया जिसमें धार्मिक प्रार्थनाओं पर उनके बैन को बरकरार रखा गया है. एक मुस्लिम छात्रा ने इसे भेदभावपूर्ण बताते हुए कानूनी रूप से चुनौती देने की मांग की थी. 

स्कूल में आधे छात्र मुस्लिम

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इंडो-गुयाना प्रिंसिपल कैथरीन बीरबलसिंह ने कोर्ट को बताया, 'मिशेला स्कूल, उत्तरी लंदन के वेम्बली में स्थित एक 'सेक्युलर' इंस्टीट्यूट, ने 'समावेशी वातावरण' को बढ़ावा देने के लिए धार्मिक प्रार्थनाओं की अनुमति नहीं दी.' स्कूल में लगभग आधे छात्र मुस्लिम हैं. हालांकि इसमें बड़ी संख्या में सिख, हिंदू और ईसाई छात्र भी पढ़ते हैं.

कैथरीन ने अदालत में कहा, 'जैसा कि गवर्निंग बॉडी को पता है, स्कूल विभिन्न कारणों से छात्रों को प्रार्थना के लिए कमरा उपलब्ध नहीं कराता है. प्रार्थना के लिए कमरा छात्रों के बीच विभाजन को बढ़ावा देगा जो स्कूल के लोकाचार के खिलाफ है, स्कूल में जगह और कर्मचारियों की भी कमी है.'

अब पढ़ाई पर फोकस करना चाहती है छात्रा

जनवरी में सुनवाई के बाद 80 पन्नों के फैसले में जस्टिस थॉमस लिंडेन ने स्कूल के पक्ष में फैसला सुनाया. मुस्लिम छात्रा, जिसका नाम कानूनी कारणों से उजागर नहीं किया गया है, ने तर्क दिया था कि स्कूल के बैन ने 'विशिष्ट रूप से' उसकी मान्यताओं को प्रभावित किया. केस हारने के बाद छात्रा ने कहा कि उसे लगता है कि उसने जो किया, सही किया और अब वह अपनी पढ़ाई पर फोकस करना चाहती है.

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