बांग्लादेश में भीड़तंत्र काम कर रहा है जहां पुलिस स्थिति को संभालने में नाकाम दिख रही है. इंकलाब मंच के प्रवक्ता शरीफ उस्मान हादी की मौत के बाद बांग्लादेश में भड़की हिंसा से भारी नुकसान हुआ है. बीते गुरुवार को दंगाइयों ने बांग्लादेश के दो प्रमुख अखबारों के ऑफिस को आग के हवाले कर दिया. पुलिस वहां खड़ी देखती रही लेकिन दंगाइयों को रोकने की कोशिश नहीं की.
अब ढाका महानगर पुलिस (DMP) के एडिशनल पुलिस कमिश्नर (क्राइम एंड ऑपरेशन्स) एसएन एमडी नजरुल इस्लाम ने कहा है कि भीड़ हिंसा के खिलाफ पुलिस ने सख्ती से कार्रवाई इसलिए नहीं की, क्योंकि पुलिसकर्मियों के निशाना बनने का डर था.
उन्होंने बताया कि करवान बाजार में 'प्रथम आलो' और 'द डेली स्टार' के दफ्तरों पर हुए हमलों, तोड़फोड़ और आगजनी के दौरान अगर पुलिस हस्तक्षेप करती तो गोलीबारी हो सकती थी, जिससे दो से चार लोगों की मौत भी हो सकती थी.
जब उनसे पूछा गया कि क्या DMP प्रथम आलो, द डेली स्टार और उदिची पर हुए हमलों को रोकने में सक्षम थी, तो नजरुल इस्लाम ने कहा, 'हम सक्षम हैं. यह नहीं कि हम हर घटना को रोक सकते हैं. पिछले अनुभवों के आधार पर, जब जनभावना भड़क जाती है तो राज्य अधिकतम संसाधनों का इस्तेमाल करता है. करवान बाजार की घटना वाले दिन अगर हम हस्तक्षेप करते, तो गोलीबारी हो सकती थी और संभवतः दो से चार लोगों की जान जा सकती थी, इसके बाद पुलिस पर भी हमले होते.'
उन्होंने आगे कहा, 'उस दिन दो-चार पुलिसवाले मारे जाते... आप जानते हैं कि पुलिस बल एक साल पहले ही एक बड़े आघात से गुजरा है और हम फिर से खड़ा होने की कोशिश कर रहे हैं. चुनाव आने वाले हैं. अगर पुलिस बल में फिर कोई हताहत होता, तो मैं इस बल के साथ आगे नहीं बढ़ पाता. इसी कारण हम वहां कार्रवाई में नहीं जा सके. किसी भी मानव जीवन की हानि नहीं हुई. इतनी बड़ी घटना में भी जान-माल का नुकसान न होना, मैं इसे हमारी उपलब्धि मानता हूं.'
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