यूपी के स्वास्थ्य विभाग में भर्ती घोटालों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है. हाल ही में 2016 की एक्स-रे टेक्नीशियन भर्ती में एक ही नाम पर कई लोगों को नौकरी देकर करोड़ों का नुकसान उजागर होने के बाद अब 2008 की भर्ती का भी काला चिट्ठा सामने आ रहा है. स्टेट मेडिकल फैकल्टी की जांच में फर्जी डिग्री साबित होने और कन्नौज में FIR दर्ज होने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग ने 79 पदों पर 140 लोगों को भर्ती कर लिया, जिससे सरकारी खजाने को करोड़ों का चूना लगाया गया. अगर जिम्मेदार अफसर 2017-18 में ही सतर्क हो जाते तो ये घोटाला 7 साल पहले ही पकड़ा जा सकता था.
दरअसल, बसपा सरकार के दौरान 2008 में स्वास्थ्य विभाग ने एक्स-रे टेक्नीशियन के 79 पदों पर भर्ती निकाली. इंटरव्यू प्रक्रिया के बाद 25 अगस्त 2008 को 79 चयनित अभ्यर्थियों की मेरिट लिस्ट जारी की गई और 15 सितंबर 2008 तक सभी को जॉइनिंग दे दी गई, लेकिन यहीं से फर्जीवाड़ा शुरू हो गया.
विभागीय अफसरों और जिलों में तैनात अधिकारियों की मिलीभगत से एक दूसरी फर्जी चयनित सूची तैयार की गई, जिसमें अतिरिक्त 61 लोगों को शामिल किया गया. ये अभ्यर्थी 20 सितंबर 2008 से जून 2009 तक विभिन्न जिलों में मनमाने ढंग से जॉइन करते रहे. कुल 140 लोगों को नौकरी देकर विभाग ने 'रेवड़ी' बांटी, जबकि पद सीमित थे.
मेरिट लिस्ट में फर्जीवाड़ा
इंडिया टुडे/आजतक के हाथ लगे डॉक्यूमेंट से साफ पता चलता है कि ये फर्जीवाड़ा कैसे हुआ. इससे पहले 2016 में हुई भर्ती में भी एक ही नाम के कई अभ्यर्थियों को नौकरी दे दी गई थी.
उदाहरण के तौर पर मूल 79 की लिस्ट में रोल नंबर XR5035 पर मेरिट नंबर 3 पर फुरकान अहमद (पिता: मोहम्मद वसीम खान, जन्म: 5 अगस्त 1975) का नाम जनरल श्रेणी में दर्ज था, जिसे सीतापुर के लहरपुर सीएचसी में तैनात किया गया. लेकिन फर्जी 61 की सूची में रोल नंबर XR5365 पर पुष्पेंद्र सिंह (मैनपुरी निवासी) को मेरिट नंबर 67 पर दिखाकर बलिया के सोनबरसा सीएचसी में जॉइनिंग दे दी गई. जबकि मूल लिस्ट के नंबर 67 पर अनुसूचित जाति के हरिमोहन (पुत्र: बाबूलाल, आगरा निवासी) का नाम था, जिसे आगरा के फतेहाबाद सीएचसी में पोस्टिंग मिली. ये साफ जाहिर करता है कि मेरिट लिस्ट में नामों की अदला-बदली कर फर्जी जॉइनिंग लेटर जारी किए गए.
FIR के बाद भी नहीं हुई कार्रवाई
सबसे चौंकाने वाली बात ये है कि इनमें से कई की डिग्री फर्जी साबित हुईं. स्टेट मेडिकल फैकल्टी ने 11 दिसंबर 2017 को पुष्पेंद्र सिंह के डिप्लोमा नंबर 928 को फर्जी घोषित किया और रिपोर्ट सीएमओ कन्नौज को भेज दी, जिससे फर्जीवाड़े का खुलासा हुआ.
इसके बाद 22 मार्च 2018 को सीएचसी हसेरन के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. जागेश्वर प्रसाद ने कन्नौज के इंदरगढ़ थाने में FIR दर्ज कराई, लेकिन स्वास्थ्य मुख्यालय ने कोई कार्रवाई नहीं की. इस बात से ये साफ होता है कि जानबूझकर इस घोटाले को दबाने की कोशिश की गई थी.
स्टेट मेडिकल फैकल्टी ने पुष्पेंद जैसे तीन अन्य लोगों के फर्जी डिप्लोमा की भी पुष्टि की, जिनमें देवेंद्र पाल (पुत्र: जसकरण पाल) शामिल है. फर्जी सूची में देवेंद्र का नंबर 12 था, जिसे कन्नौज के विष्णुगढ़ सीएचसी में तैनात किया गया. वर्तमान में वह छिबरामऊ सीएचसी में तैनात है. इन मामलों में भी FIR हुईं, लेकिन विभाग ने आंखें मूंद लीं.
जांच का आदेश जारी
मामला उजागर होने के बाद डीजी हेल्थ रतन पाल सिंह ने वित्त नियंत्रक, डायरेक्टर नर्सिंग और डायरेक्टर पैरामेडिकल की तीन सदस्यीय कमेटी गठित कर जांच के आदेश दिए हैं. अब जांच रिपोर्ट का इंतजार है कि साल 2008 और 2016 में की गई एक्स रे टेक्नीशियन भर्तियों में फर्जीवाड़े कैसे हुआ.
संतोष शर्मा