कनाडा के ब्राम्पटन शहर (Brampton, Canada) में हिंदू मंदिर पर हुए खालिस्तानियों के हमले की ज्योतिषपीठ के शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती महाराज ने कड़े शब्दों में निंदा की है. 'आजतक' से खास बातचीत में शंकराचार्य ने कहा कि हम सनातनियों के मंदिर में विश्व कल्याण की भावना से पूजा-अर्चना और प्रार्थना की जाती है. किसी के भी प्रति जरा सा कोई अहित चिंतन नहीं होता है. ऐसी प्रार्थना जिस स्थान पर हो रही हो वहां हमला करना निंदनीय है. स्वाभाविक तौर से कोई भी समझदार व्यक्ति इसकी निंदा ही करेगा और विश्वव्यापी निंदा हो भी रही है.
उन्होंने आगे बताया कि जो लोग ऐसा कर रहे हैं उनका जो भी उद्देश्य हो, लेकिन एक बात जान लें ऐसे रास्ते पर चलने से उनका उद्देश्य भी कमजोर हो जाता है. कुछ लोगों ने आतंकवाद शुरू किया और सोचा की डराकर अपना धर्म कबूल करा लेंगे, लेकिन आज स्थिति ऐसी हो गई है कि की पूरी दुनिया में उनको देखने का लोगों का नजरिया बदल चुका है. ऐसे में अगर खालिस्तानी समर्थक भी ऐसा करेंगे तो उनको देखने का नजरिया भी बदल जाएगा. अगर कोई बात है तो उसको शांति से उठाइये, लेकिन इस तरह का रास्ता अपनाएंगे तो ये ठीक नहीं है.
वहीं, कनाडा की ट्रुडो सरकार पर खालिस्तानियों का समर्थन करने के सवाल पर शंकराचार्य अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने कहा कि कनाडा में काफी संख्या में सिख धर्म के लोग रहते हैं. हो सकता है कि उनके दबाव में वहां की सरकार काम कर रही हो, लेकिन अगर कोई भी सरकार किसी भी समूह के दबाव में आती है तो वह सरकार कमजोर होने लगती है. इसलिए सरकार को कानून और विधि का रास्ता स्थापित करना चाहिए और इस तरह से पक्षपात नहीं करना चाहिए. आपके यहां थोड़े से खालिस्तानी समर्थक हो गए हो और आपके ऊपर उनका प्रभाव हो गया, लेकिन आपको यह भी देखना है की पूरी दुनिया में फैले हुए हिंदू आपके बारे में क्या राय बनाते हैं? और उसका क्या प्रभाव पड़ता है?
महाकुंभ 2024 में अखाड़ा परिषद की ओर से यह मांग करना कि खाने-पीने की चीजें सिर्फ सनातनी ही बेचे, गैर सनातनी को ऐसा करने से रोका जाए का शंकराचार्य स्वामी अविमुक्तेश्वरानंद सरस्वती ने समर्थन किया. उन्होंने कहा कि प्रयाग में शुरू होने वाला महाकुंभ इसलिए हो रहा है क्योंकि हिंदू दर्शन के मुताबिक महाकुंभ में एक अमृत तत्व होता है और उसकी प्राप्ति के लिए हम वहां जा रहे हैं. उसको प्राप्त कर लेने से हमारे सभी जाने अनजाने पाप का शमन हो जाता है और हमें अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है. इसलिए पाप का शमन और पुण्य की प्राप्ति के उद्देश्य से लोग इकट्ठा हो रहे हैं.
ऐसे में क्या मुसलमान मानते हैं कि गंगा-जमुना की धारा में नहाने से या वहां पर रात बिताने से पाप का शमन होगा और पुण्य की प्राप्ति होगी? अगर वह ऐसा मानते हैं तो उनको इसकी घोषणा करनी चाहिए और यह कहना पड़ेगा कि हम इस दर्शन को मानते हैं और इसी विश्वास के हैं तो फिर हम लोग विचार करेंगे. लेकिन जहां तक हम लोगों को जानकारी है कि वह इस तरह की कोई बात मानते नहीं है. इसलिए दार्शनिक दृष्टि से और धार्मिक दृष्टि से मुसलमान का प्रयाग में कुछ बनता नहीं है तो वहां क्यों जाना है?
जहां तक व्यापार की बात है और विशेषकर खाने-पीने की बात तो हमारे यहां हमारे धर्म में पवित्र वस्तुओं के उपयोग का नियम है और पवित्र वस्तुएं सिर्फ स्वछता से ही नहीं उपयोग की जाती है, उसकी पवित्रता के लिए हमें बहुत सारे नियम का भी पालन करना पड़ता है. किसी की दृष्टि या स्पर्श से भी वह पदार्थ खराब हो जाता है और दूषित हो जाता है. इसलिए महाकुंभ में मुसलमान का ऐसा दर्शन और दृष्टि नहीं है तो वहां पर क्यों जाएंगे? मुसलमानो को स्वयं महाकुंभ में नहीं आना चाहिए.
जहां तक बांटने का सवाल है तो इस्लाम अपनाकर आपने खुद को पहले ही बांट लिया है. जब आपके पूर्वज हिंदू थे तो आपने मुस्लिम धर्म अपनाकर क्यों खुद को बांट लिया ? आप कहो कि हमारे पूर्वजों ने जो गड़बड़ी की थी उसे हम खत्म कर रहे हैं. हम जहां थे वहीं आ रहे हैं तो हम उनको नहीं रोकेंगे. यह भेद अपने-अपने उपासना पद्धति के कारण बना हुआ है और इस भेद में ही अपनी भलाई है.
हम मुसलमान के विरोध में यह निर्णय नहीं ले रहे हैं बल्कि अपनी पवित्रता को बनाए रखने के लिए ऐसा निर्णय ले रहे हैं. विशेषकर उन परिस्थितियों में जब खाने को दूषित करने के कई वीडियो सामने आए हैं.
'बंटोगे तो कटोगे' के नारे पर शंकराचार्य ने कहा कि यह नारा राजनीतिक नारा है. बांटने का मतलब आखिर क्या है? क्या हम हिंदू-मुसलमान में बंट जाएंगे तो कटेंगे या फिर ब्राह्मण-क्षत्रिय-वैश्य-शूद्र में बंटेंगे तो कटेंगे? ये राजनीतिक पार्टियां हमको बांट रही हैं.
वहीं, AIMIM सुप्रीमो असदुद्दीन ओवैसी के यह कहने पर कि जब तिरुपति मंदिर में गैरसनातनी कर्मचारी नहीं हो सकते हैं तो वक्फ बोर्ड में भी नहीं होने चाहिए, इसपर शंकराचार्य ने कहा कि मुसलमानों ने कहा था कि हम हिंदुओं के साथ नहीं रह सकते हैं, इसलिए उन्होंने भारत को बांट दिया. इसलिए आप चले गए और जिन हिंदुओं को आपके टुकड़े पर रखा गया उनको भी 22 परसेंट से 2 परसेंट पर ला दिया. इसका मतलब है कि आपने उनके साथ भी अच्छा व्यवहार नहीं किया. ऐसी स्थिति में आप यह चाहते हो कि हम जहां भी रहें स्वतंत्र रहें और हमारे बीच में कोई ना आए, यह आपकी भावना आजादी के पहले भी थी और अभी भी है. जब आपको अलग ही रहना है तो आप क्यों नहीं अपनी बंटी हुई जगह पर चले जाते हो और वहां जाकर वक्फ बोर्ड बना लो, वहां कोई भी हिंदू नहीं आएगा.
रोशन जायसवाल