गर्मी से बचाने के लिए हाथियों को पिलाया जा रहा ORS... मथुरा के केयर सेंटर में मिल रहा स्पेशल ट्रीटमेंट

उत्तर भारत की झुलसाती गर्मी से जहां इंसान बेहाल हैं, वहीं मथुरा के ‘एलिफेंट कंजर्वेशन एंड केयर सेंटर’ में रहने वाले 32 रेस्क्यू किए गए हाथियों को ठंडक पहुंचाने के लिए खास इंतजाम किए गए हैं. गर्मी में उनके शरीर का तापमान नियंत्रित रखने के लिए उन्हें रोजाना ORS दिया जा रहा है, कीचड़ से स्नान कराया जा रहा है और बर्फीले फल खिलाए जा रहे हैं. इनमें से कई हाथी अंधे हैं या चलने-फिरने में असमर्थ हैं.

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हाथियों को पिलाया जा रहा ओआरएस. (Representational image) हाथियों को पिलाया जा रहा ओआरएस. (Representational image)

aajtak.in

  • मथुरा,
  • 18 जून 2025,
  • अपडेटेड 2:06 PM IST

उत्तर भारत में गर्मी ने जबरदस्त कहर बरपा रखा है, लेकिन मथुरा स्थित ‘एलिफेंट कंजर्वेशन एंड केयर सेंटर’ (ECCC) में रहने वाले रेस्क्यू किए गए हाथियों के लिए खास इंतजाम किए गए हैं. यहां इन जीवों को गर्मी से राहत देने के लिए ठंडे फल, कीचड़ से स्नान, पानी का छिड़काव और ओआरएस दिया जा रहा है.

एजेंसी के अनुसार, यह केंद्र ‘वाइल्डलाइफ SOS’ संस्था द्वारा उत्तर प्रदेश वन विभाग के सहयोग से वर्ष 2010 में स्थापित किया गया था. वर्तमान में यहां 32 हाथी हैं, जिनमें से कई या तो अंधे हैं या फिर चलने-फिरने में असमर्थ. इनकी हालत को देखते हुए गर्मियों में इन्हें खास देखभाल की जरूरत होती है.

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वाइल्डलाइफ SOS के सीईओ कार्तिक सत्यनारायण ने कहा कि इस झुलसाती गर्मी में हाथियों को हाइड्रेटेड रखना बेहद जरूरी है, इसलिए उन्हें रोजाना ओआरएस दिया जा रहा है. चूंकि ये हाथी रेस्क्यू किए गए हैं और कई को विशेष देखभाल की जरूरत है, इसलिए हमारी जिम्मेदारी और भी बढ़ जाती है.

ECCC में हाथियों के बाड़ों को इस तरह डिजाइन किया गया है कि वे उनके प्राकृतिक वातावरण जैसे लगें. हर बाड़े में एक पूल और कीचड़ का ढेर (माउंड) है, जहां हाथी कीचड़ स्नान का भरपूर आनंद लेते हैं. कीचड़ स्नान उनके शरीर का तापमान नियंत्रित करने में मदद करता है और गर्मी से बचाता है.

इसके अलावा गर्मी से राहत देने के लिए हाथियों के बाड़ों में वाटर स्प्रिंकलर भी लगाए गए हैं. उन्हें दिन में कई बार तरबूज, खीरा, पपीता जैसे ठंडे और पानी से भरपूर फल दिए जाते हैं, जिससे उनका शरीर ठंडा बना रहे. सीईओ सत्यनारायण बताते हैं कि ये हाथी अब जंगल में जीवित नहीं रह सकते, इसलिए हम उन्हें ऐसा माहौल देने की कोशिश कर रहे हैं, जो उनके लिए सुरक्षित, प्राकृतिक और सुकून वाला हो.

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