दिखने में स्मार्ट, बोलचाल में फर्राटेदार अंग्रेजी और बातचीत का तरीका ऐसा कि सामने वाला झांसे में आ ही जाए. नोएडा में चल रहे एक हाईटेक साइबर ठगी गिरोह का भंडाफोड़ हुआ है, जो अमेरिका के नागरिकों को लोन दिलाने का झांसा देकर करोड़ों रुपये की ठगी कर रहा था. एक्सप्रेसवे थाना पुलिस ने इस फर्जी कॉल सेंटर को पकड़ा और गिरोह के 12 सदस्यों को धर दबोचा.
ये सब कुछ नोएडा के सबसे पॉश सोसाइटी में से एक जेपी कोसमॉस की ऊंची-ऊंची इमारतों के बीच चल रहा था. टावर KM-7 की ऊपरी मंजिल पर सेटअप था, जहां दिन-रात एक ही काम होता था. विदेशियों से बातचीत, लोन का लालच और फिर धीरे-धीरे ठगी का ताना-बाना बुनना.
ऐसे हुई गिरफ्तारी
मुखबीर से मिली सूचना पर एक्सप्रेसवे थाने की पुलिस ने देर रात टावर KM-7 में छापा मारा. यहां एक चालाकी से सजा-धजा ऑफिस मिला, जहां अंग्रेजी में कॉल की जा रही थी. कंप्यूटर की स्क्रीन पर ओपन विंडोज़, व्हाइटबोर्ड पर डॉलर में लक्ष्य लिखे हुए, और लड़के-लड़कियां हेडफोन लगाकर किसी MNC कंपनी के एग्जीक्यूटिव जैसे व्यवहार करते दिखे. मगर असलियत कुछ और ही थी.
ये कॉल सेंटर अमेरिकी नागरिकों से ठगी करने वाला जाल था. पुलिस ने मौके से दो महिलाओं समेत कुल 12 आरोपी गिरफ्तार किए, जिनमें से कुछ बिहार, मणिपुर, नागालैंड, गुजरात और मुंबई के रहने वाले हैं. पुलिस ने कॉल सेंटर से भारी मात्रा में इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस जब्त किए जिनमें 10 लैपटॉप, 16 मोबाइल फोन, 9 चार्जर, 5 हेडफोन, 5 की-बोर्ड, 5 माउस, 1 इंटरनेट राउटर और कई अन्य डिवाइस जिनका उपयोग साइबर फ्रॉड में होता था.
ऐसे कर रहे थे अमेरिकियों से ठगी का खेल
नोएडा के डीसीपी यमुना प्रसाद ने बताया कि गिरोह के काम का तरीका बेहदही संगठित था. ये लोग सबसे पहले अमेरिकी नागरिकों का डेटा खरीदते थे. इसमें नाम, ईमेल, उम्र, पता, बैंक डिटेल जैसी जानकारियां शामिल होती थीं. इसके बाद इनकी टीम टेलीग्राम, स्काईप और कई वीओआईपी कॉलिंग ऐप्स के जरिए वहां के लोगों से संपर्क करती थी. आरोपी खुद को अमेरिकी बैंक या फाइनेंशियल इंस्टिट्यूट का अधिकारी बताकर लोन स्कीम का झांसा देना शुरू करते थे.
पीड़ित जब लोन लेने को तैयार होता, तो पहले प्रोसेसिंग फीस के नाम पर 300 डॉलर (लगभग 25000 हजार रुपए) की मांग की जाती थी. ये रकम सीधे बैंक खाते में नहीं बल्कि Apple eBuy या Walmart गिफ्ट कार्ड्स के जरिए ली जाती थी. ताकि रकम का ट्रैक न किया जा सके. कई बार अगर कोई व्यक्ति पेमेंट करने की स्थिति में नहीं होता था, तो उसे गिरोह के सदस्य फर्जी चेक भेजते थे. पीड़ित उस चेक को अपने बैंक में जमा कर देता, और अगर बैंक गलती से चेक क्लियर कर देता, तो ठग उसके खाते से पैसा उड़ाकर गायब हो जाते.
ऐसे करते थे लेन-देन
ठगी में पैसों के लेन-देन के तरीकों का पता चलते भी नोएडा पुलिस चौंक गई. जांच में यह भी पता चला कि ठगी का पैसा केवल गिफ्ट वाउचरों तक सीमित नहीं था. गिरोह ने अपनी ठगी को और हाईटेक बना दिया था. अब पेमेंट USDT में ली जाती थी. यह डिजिटल करेंसी ब्लॉकचेन पर आधारित होती है, जिसे ट्रैक करना बेहद कठिन होता है. इससे न सिर्फ लेनदेन में गोपनीयता बनी रहती थी, बल्कि भारत में किसी भी बैंक खाते से लिंक न होने के चलते साइबर जांच एजेंसियों को ट्रेस करने में खासी परेशानी होती.
इंग्लिश में थे माहिर
इस पूरे नेटवर्क का सबसे बड़ा हथियार था इनकी बोलने की क्षमता. गिरफ्तार किए गए लगभग सभी आरोपी फर्राटेदार अंग्रेजी बोलने में सक्षम हैं. इनमें से कुछ ने BPO कंपनियों में काम किया है, तो कुछ ने विदेशी भाषाएं पढ़ रखी हैं. अमेरिकी लहजे की नकल, प्रोफेशनल ईमेल, और वीडियो कॉलिंग के दौरान सही माहौल बनाना इन सभी चीजों ने उन्हें एक असली कंपनी की तरह दिखाने में मदद की. पीड़ित जब इनसे बात करता, तो उसे यह बिल्कुल भी नहीं लगता था कि वो किसी ठग से बात कर रहा है. यही विश्वास धीरे-धीरे उनके पैसे का रास्ता बनता.
यह सिर्फ शुरुआत है
डीसीपी यमुना प्रसाद ने कहा कि गिरफ्तार किए गए आरोपी बेहद शातिर हैं. इन्होंने सोशल मीडिया और टेक्नोलॉजी का दुरुपयोग करते हुए विदेशी नागरिकों से ठगी को प्रोफेशनल फ्रॉड का रूप दे दिया था. इस गिरोह की शाखाएं अन्य शहरों में भी हो सकती हैं, जिसकी जांच की जा रही है. साइबर क्राइम को अंजाम देने वाले ऐसे गिरोहों पर लगातार नजर रखी जा रही है. गिरोह के अन्य सदस्यों, निवेशकों और इस नेटवर्क के पीछे हो सकते किसी मास्टरमाइंड की तलाश में पुलिस अब उनके मोबाइल, लैपटॉप और ऑनलाइन अकाउंट्स की डिजिटल फॉरेंसिक जांच कर रही है. अधिकारियों के मुताबिक इस गिरोह ने अमेरिका, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के कई नागरिकों को भी अपना शिकार बनाया है.
भूपेन्द्र चौधरी