बहुजन समाज पार्टी का सियासी आधार लगातार सिमटता जा रहा है और विधानसभा से लेकर संसद तक धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है. यूपी की विधानसभा में बसपा का सिर्फ एक ही विधायक है जबकि विधान परिषद में कोई भी सदस्य नहीं. संसद में लोकसभा के बाद अब 2026 में राज्यसभा में बसपा का कोई भी सांसद नहीं रह जाएगा. इस तरह बसपा की आवाज नवंबर 2026 में संसद में सुनाई नहीं देगी?
बसपा का 2024 के लोकसभा चुनाव में खाता नहीं खुल सका था. संसद में बसपा के एकलौते सदस्य रामजी गौतम हैं, जो राज्यसभा में हैं. रामजी गौतम का कार्यकाल 2026 में समाप्त हो जाएगा. इसके बाद संसद में बसपा का एक भी सदस्य नहीं रह जाएगा. बसपा के राजनीतिक इतिहास में पहली बार होगा जब संसद के दोनों सदनों यानि लोकसभा और राज्यसभा में बसपा के सदस्य की संख्या शून्य होगी.
2026 में रामजी संसद से हो जाएंगे रिटायर
उत्तर प्रदेश के 10 राज्यसभा सांसदों का कार्यकाल नवंबर 2026 में खत्म हो रहा है. इन 10 राज्यसभा सांसदों में बीजेपी के 8, सपा और बसपा के एक-एक सदस्य हैं, जिनका कार्यकाल 25 नवंबर 2026 को खत्म हो रहा है. 2026 में रिटायर होने वाले राज्यसभा सांसदों में बीजेपी से बृजलाल, सीमा द्विवेदी, चंद्रप्रभा उर्फ गीता, हरदीप सिंह पुरी, दिनेश शर्मा, नीरज शेखर, अरुण सिंह और बीएल वर्मा का नाम शामिल हैं. सपा से प्रोफेसर रामगोपाल यादव हैं तो बसपा से रामजी गौतम हैं.
यह भी पढ़ें: मायावती ने बनाया सत्ता की वापसी का DM फॉर्मूला... क्या मुस्लिमों का बसपा पर भरोसा बन पाएगा?
बसपा के राष्ट्रीय कोऑर्डिनेटर रामजी गौतम फिलहाल बसपा के एकलौते राज्यसभा सदस्य हैं, जो 2019 में बीजेपी के समर्थन से सांसद चुने गए थे. रामजी गौतम साल 2026 के आखिर में रिटायर हो रहे हैं यानि उनका छह साल का कार्यकाल खत्म हो रहा है. रामजी गौतम का राज्यसभा टर्म पूरा होने के साथ ही बसपा संसद में जोरी हो जाएगी. बसपा के वापसी का आसार भी कहीं से नहीं दिख रहा है.
2027 में जीती तभी गूंजेगी संसद में आवाज
यूपी विधानसभा की मौजूदा संख्याबल की बात करें तो बीजेपी के 258, सपा के 103, अपना दल के 13, रालोद के 9, निषाद पार्टी के 5, सुभासपा के 6, कांग्रेस के 2, जनसत्ता दल लोकतांत्रिक के 2 बसपा 1 और सपा के बागियों कुल 3 सदस्य हैं. यानी कुल 402 सदस्यों की संख्या पूरी है और 1 सीट रिक्त है. इस आधार पर एक राज्यसभा सीट के लिए 37 विधायकों के समर्थन की जरूरत है. इस गणित के लिहाज से सपा 2 और बीजेपी 8 राज्यसभा सीटें जीत सकती है.
यह भी पढ़ें: पश्चिमी यूपी में मायावती की काट बन पाएंगे चंद्रशेखर? मुजफ्फरनगर से 'मिशन 2027' का आगाज
मौजूदा स्थिति में बसपा एक भी राज्यसभा सीट जीतने की स्थिति में नहीं है. बसपा के पास एक ही विधायक है, जिसके दम पर राज्यसभा की सीट जीतना छोड़िए, नामांकन भी करने की स्थिति नहीं है. ऐसे में 2026 में देश के जिन राज्यों में विधानसभा चुनाव है, वहां पर बसपा का कोई जनाधार नहीं है. ऐसे में बसपा को संसद तक पहुंचने के लिए 2027 के यूपी विधानसभा चुनाव का इंतजार करना होगा. यूपी में अगर 2027 में बसपा 40 सीटें नहीं जीत पाती है तो फिर 2029 तक संसद में बसपा का कोई प्रतिनिधित्व नहीं कर सकेगा.
विधानसभा से संसद तक बसपा कमजोर
उत्तर प्रदेश बसपा की सबसे मजबूत सियासी जमीन रही है, जहां से पार्टी का उदभव हुआ है. मायावती चार बार यूपी की सीएम रही है, लेकिन मौजूदा समय में बसपा के पास यूपी में सिर्फ एक विधायक है. 2024 में यूपी विधान परिषद से बसपा बाहर हो गई है, क्योंकि पार्टी के एकलौते विधान परिषद सदस्य भीमराव अंबेडकर का कार्यकाल खत्म हो गया था. इसके बाद बसपा की विधान परिषद में वापसी नहीं हो सकी.
यूपी विधानसभा में न के बराबर सदस्य संख्या होने की वजह से उच्च सदन में अब उसकी स्थिति जल्द मजबूत होती नहीं दिखाई दे रही है. बसपा मौजूदा समय अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. विधान परिषद और लोकसभा के बाद अब राज्यसभा में बसपा जनहित के मुद्दों को अपनी आवाज बुलंद नहीं कर पाएगी, क्योंकि पार्टी का कोई भी सांसद नहीं रह जाएगा.
बसपा के इतिहास में पहली बार होगा?
बसपा साढ़े तीन दशक के बाद संसद के राज्यसभा में यानी उच्च सदन में शून्य पर होगी, जहां पर पार्टी का कोई भी सदस्य नहीं रह जाएगा. कांशीराम ने बसपा का गठन 1984 में किया, लेकिन राजनीतिक रूप से सफलता 1989 के चुनाव में मिली थी. साल 1989 के यूपी विधानसभा चुनाव में बसपा के 13 विधायक जीते थे, जिसके दम पर राज्यसभा नहीं पहुंच सकती थी.
हालांकि, साल 1989 के लोकसभा चुनाव में बसपा के तीन सदस्य संसद पहुंचने में जरूर सफल रहे थे. मायावती बिजनौर से जीती थी तो रामकिशन यादव आजमगढ़ से सांसद बने थे. इसके अलावा हरभजन लाखा पंजाब के फिल्लौर से लोकसभा सांसद चुने गए थे. मायावती पहली बार 1985 बिजनौर सीट से लोकसभा चुनाव लड़ा थी, लेकिन कांग्रेस की मीरा कुमार से हार गईं थीं.
मायावती ने अपने जीवन का पहला चुनाव 1985 में लड़ी थी, लेकिन इसी के बाद बिजनौर को अपनी राजनीतिक प्रयोगशाला बनाया. चार साल के बाद 1989 में जीतकर उसी बिजनौर सीट से सांसद पहुंची, उसके बाद से बसपा का संसद में कोई न कोई प्रतिनिधित्व जरूर रहा है, लेकिन नवंबर 2026 में पहली बार होगा जब कोई सदस्य नहीं रह जाएगा.
बसपा की पहली राज्यसभा मायावती बनी थी
मायावती बसपा के उन तीन नेताओं में है, जो पहली बार लोकसभा सांसद बने. इसके बाद 1993 में बसपा ने सपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें 67 विधायक पार्टी से जीतकर आए. 1991 के लोकसभा चुनाव में मायावती हार गई थी जबकि कांशीराम इटावा से सांसद चुने गए थे. विधानसभा में बसपा की स्थिति 1993 में मजबूत हुई तो कांशीराम ने मायावती को 1994 में राज्यसभा भेजा था.
मायावती पहली बार 3 अप्रैल 1994 को राज्यसभा सदस्य चुनी गई थीं और वे 25 अक्टूबर 1996 तक संसद के उच्च सदन की सदस्य रहीं. यूपी की सीएम बनने के बाद मायावती ने राज्यसभा से इस्तीफा दे दिया था. 1994 से लेकर अभी तक पार्टी का कोई न कोई नेता जरूर संसद में बसपा की आवाज को उठाता रहा. 2014 में भले ही बसपा को कोई लोकसभा सांसद नहीं बन सका, लेकिन राज्यसभा में उसके नेता थे. रामजी गौतम का कार्यकाल खत्म होने के बाद बसपा की आवाज संसद में पूरी तरह खामोश जाएगी.
बसपा के राष्ट्रीय दर्जे पर खतरा मंडरा रहा?
2024 के लोकसभा चुनाव अगर किसी पार्टी के लिए सबसे अधिक निराशाजनक रहे तो वह है बहुजन समाज पार्टी. पार्टी इस चुनाव में कोई भी सीट नहीं जीत पाई है. उसका वोट शेयर भी गिरकर 3.66 से 2.04 फीसदी रह गया है. इससे उसका राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा छीनने का खतरा पैदा हो गया है. अगर राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा उससे छिना तो यह देश में दलितों की पार्टी मानी जाने वाली बसपा के लिए बड़ा खतरा होगा. इस समय देश में छह राष्ट्रीय पार्टियां हैं. ये हैं बीजेपी, बीएसपी, कांग्रेस, नेशनल पीपुल्स पार्टी और माकपा.
1968 के मुताबिक राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा उस दल को मिलता है, जिसके पास पिछले आम चुनाव में चार या अधिक राज्यों में कुल वैध वोटों का कम से कम छह फीसद वोट मिले हों या और या उसके कम से कम चार सांसद जीते हों या लोकसभा चुनाव में उसने कम से कम दो फीसदी सीटें जीती हों, ये सीटें उसने कम से कम तीन राज्यों से जीती हों या कम से कम चार राज्यों में एक मान्यता प्राप्त राज्य पार्टी हो.
यह भी पढ़ें: बिहार में PK-ओवैसी का मुस्लिम समीकरण मायावती की रणनीति जैसा
बसपा 18वीं लोकसभा के लिए हुए चुनाव में कोई सीट नहीं जीत पाई है. इस चुनाव में उसे केवल 2.04 फीसदी वोट ही मिले हैं.इस तरह वह राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा रखने के पहले दो मानकों पर खरी नहीं उतरती है.हालांकि लोकसभा चुनाव के अंतिम आंकड़े अभी तक प्रकाशित नहीं हुए हैं.
तीसरा मानक है पार्टी को चार या उससे अधिक राज्यों में क्षेत्रीय दल के रूप में मान्यता हो. लेकिन बसपा इस मानक को पूरा नहीं करती है. देश में 2019 के बाद से अब तक हुए चुनाव में बसपा ने केवल उत्तर प्रदेश में इस मानक को पूरा किया है .वहां उसने 2022 के विधानसभा चुनाव में 12.88 फीसदी वोट हासिल किया. 2024 के लोकसभा चुनाव में उसने राज्य स्तरीय पार्टी के मानक को पूरा किया है.वहां उसने 9.39 फीसदी वोट हासिल किया है. ऐसे में बसपा के लिए सियासी संकट गहरा गया है.
कुबूल अहमद