बरेली हिंसा: विवादित नारा लगाने वाले आरोपी की याचिका इलाहाबाद हाई कोर्ट ने की खारिज

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरेली दंगे के आरोपी की जमानत याचिका खारिज कर दी है. अदालत ने विवादित नारे को भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा बताया और इसे सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाने वाला माना.

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आरोपी ने जमानत के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था (File Photo: ITG) आरोपी ने जमानत के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था (File Photo: ITG)

पंकज श्रीवास्तव

  • प्रयागराज,
  • 19 दिसंबर 2025,
  • अपडेटेड 8:39 AM IST

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस अरुण कुमार सिंह देशवाल की सिंगल बेंच ने बरेली दंगे के आरोपी रेहान की जमानत अर्जी खारिज कर दी है. याचिकाकर्ता पर 'आई लव मोहम्मद' जुलूस के दौरान विवादित नारे लगाने का आरोप है. कोतवाली पुलिस स्टेशन में दर्ज एफआईआर के बाद आरोपी ने राहत के लिए याचिका दायर की थी. 

कोर्ट ने अपने 9 पेज के फैसले में नारे को भारत की संप्रभुता और अखंडता के लिए खतरा माना है. यह मामला लोगों को सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाने और कानून के शासन को चुनौती देने से जुड़ा है.

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हाईकोर्ट ने अपने फैसले के पैराग्राफ 12 में कहा, "'गुस्ताख ए नबी की एक सजा, सिर तन से जुदा' का नारा देश की अखंडता को चुनौती है." कोर्ट के मुताबिक यह नारा न केवल धारा 152 बीएनएस के तहत दंडनीय है, बल्कि यह लोगों को सशस्त्र विद्रोह के लिए उकसाता है. जस्टिस देशवाल ने मौलाना तौकीर रजा के सहयोगी रेहान पर लगे इस आरोप को इस्लाम के मूल सिद्धांतों के भी खिलाफ बताया है. 

वकीलों की दलीलें और अंतिम फैसला...

सुनवाई के दौरान याची के अधिवक्ता अखिलेश कुमार द्विवेदी ने जमानत मंजूर करने की अपील की थी. वहीं, जमानत का विरोध करते हुए एडिशनल एडवोकेट जनरल अनूप त्रिवेदी और अपर शासकीय अधिवक्ता नितेश श्रीवास्तव ने कड़े तर्क रखे. 

यह भी पढ़ें: एक कॉलगर्ल के साथ पकड़े गए पांच लड़के... होटल के कमरे में मिलीं दवाइयां, बरेली में छापा पड़ा तो मची अफरा-तफरी

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कोर्ट ने दोनों पक्षों को विस्तार से सुनने के बाद पाया कि याचिकाकर्ता पर गंभीर आरोप हैं. इसके बाद, कोर्ट ने तथ्यों को ध्यान में रखते हुए आरोपी रेहान की जमानत अर्जी को खारिज कर दिया.

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