भारत में अमेरिका के राजदूत एरिक गार्सेटी जब इस साल लखनऊ दौरे पर थे तब उन्होंने कहा था- 'कैलिफोर्निया, अमेरिका का उत्तर प्रदेश है'. भले ही उत्तर प्रदेश (यूपी) और कैलिफोर्निया के बीच 12,000 किलोमीटर की दूरी है, पर दोनों राज्यों में कई समानताएं हैं. ये दोनों राज्य इनोवेशन, संस्कृति और आर्थिक ताकत के हब माने जाते हैं. क्षेत्रफल के हिसाब से भी दोनों स्टेट काफी बड़े हैं. लेकिन इन सबके बावजूद दोनों के बीच एक फर्क है, और वह ये है कि इन दोनों राज्यों के बीच इनकी राजनीतिक ताकत की तुलना नहीं की जा सकती है.
भारत में कहा जाता है कि दिल्ली की गद्दी तक जाने का रास्ता यूपी से होकर ही गुजरता है. लोकसभा में 543 सीटों में से यूपी के पास 80 सीटें हैं, जो यह तय करती हैं कि केंद्र में कौन सी पार्टी सत्ता पर काबिज होगी. वहीं अमेरिका में कैलिफोर्निया सबसे ज्यादा आबादी और 54 इलेक्टोरल वोट्स के साथ बड़ी भूमिका निभाता है. लेकिन अमेरिका में इसका असर भारत के उत्तर प्रदेश जैसा चुनाव में निर्णायक नहीं है.
कैलिफोर्निया हमेशा से ही डेमोक्रेटिक पार्टी के समर्थन में रहा है, जिससे यह अमेरिकी राष्ट्रपति चुनाव में गेम-चेंजर साबित नहीं हो पाता. 2024 के अमेरिकी चुनाव में भी यहां से डेमोक्रेट उम्मीदवार कमला हैरिस को जीत मिली, जबकि रिपब्लिकन डोनाल्ड ट्रंप उनके मुकाबले कैलिफोर्निया में पीछे रह गए.
जब यूपी हिलता है तो भारत में सत्ता का समीकरण बदल जाता है. लेकिन, अमेरिका में कैलिफोर्निया को बस एक सुनिश्चित वोट-बैंक माना जाता है. कैलिफोर्निया का हर काउंटी अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव के परिणाम में उतना महत्वपूर्ण नहीं है जितना भारत में यूपी का हर सीट होता है.
क्यों अमेरिका में कैलिफोर्निया का असर सीमित है?
अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में नतीजे इलेक्टोरल कॉलेज से तय होते हैं, जहां हर राज्य को उसकी जनसंख्या के हिसाब से इलेक्टोरल वोट्स दिए जाते हैं. कैलिफोर्निया के पास 54 इलेक्टोरल वोट्स हैं, जो सभी अमेरिकी राज्यों में सबसे ज्यादा हैं.
लेकिन कैलिफोर्निया का डेमोक्रेटिक पार्टी के प्रति समर्थन एक तरह से तय है. उदाहरण के लिए 2020 के चुनाव में जो बाइडेन को कैलिफोर्निया से 64% वोट मिले थे, जबकि डोनाल्ड ट्रंप को 35%. इस बार भी कमला हैरिस लगभग 57% वोटों के साथ यहां आगे रहीं.
कैलिफोर्निया की गवर्नमेंट और लेजिस्लेटिव पावर भी डेमोक्रेट्स के पास है. इसके अलावा, यह कमला हैरिस का गृह राज्य भी है, जहां उन्होंने एटॉर्नी जनरल और सीनेटर के रूप में काम किया है.
भारत में यूपी की राजनीतिक ताकत
भारत में कहा जाता है कि 'दिल्ली का रास्ता यूपी से होकर जाता है.' भारत के सबसे ज्यादा जनसंख्या वाले राज्य उत्तर प्रदेश के पास लोकसभा की 80 सीटें हैं, जिसको कारण यह राज्य देश की राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा प्रभाव रखता है. महाराष्ट्र के पास 48 सीटें हैं. इसके आलावा पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, बिहार जैसे राज्यों के पास भी अच्छी संख्या में लोकसभा की सीटें हैं, पर यूपी का प्रभाव इन सबसे कहीं अधिक है.
यूपी की इसी राजनीतिक ताकत के कारण हर पार्टी के लिए यह चुनावी रणभूमि है. खासकर उस पार्टी के लिए जो केंद्र में सत्ता पाने की चाहत रखती है. 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को उत्तर प्रदेश में सिर्फ 36 सीटें मिलीं. जिसके कारण भाजपा को केंद्र की सत्ता में बने रहने के लिए दूसरी पार्टियों के सहारे की जरूरत पड़ी. जबकि 2019 और 2014 के लोकसभा चुनाव में यूपी से बीजेपी को ताकत और आत्मविश्वास दोनों मिला था.
बीजेपी ने यूपी को अपने चुनावी अभियान का गढ़ बनाया और 2019 में 62 और 2014 में 71 सीटें जीतकर मोदी लहर को मजबूत किया. यूपी ने देश को कई प्रधानमंत्री दिए हैं - जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, चारण सिंह, वीपी सिंह और चंद्रशेखर. यहां तक कि गुजरात के मुख्यमंत्री रहे नरेंद्र मोदी को भी प्रधानमंत्री बनने के लिए यूपी के वाराणसी से चुनाव लड़ना पड़ा. जबकि अमेरिका में कैलिफोर्निया के वोटरों का डेमोक्रेट्स के प्रति समर्थन स्थिर रहता है, पर भारत में यूपी का रोल पूरी तरह से चुनाव का पासा पलट सकता है.
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