सिंगापुर से सामने आई एक कर्ज की कहानी ने लोगों को हैरान कर दिया है. यहां एक व्यक्ति ने एक लाइसेंस प्राप्त मनीलेंडिंग कंपनी से दो लाख पचास हजार सिंगापुर डॉलर (करीब 1.7 करोड़ रूपए) उधार लिए थे, लेकिन ऊंची ब्याज दरों, लेट फीस और पेनल्टी के चलते उसकी देनदारी बढ़कर लगभग इक्कीस मिलियन सिंगापुर डॉलर (करीब 146 करोड़ रूपए) तक पहुंच गई. हालात ऐसे बने कि कर्ज के दबाव में उसे अपना घर तक बेचना पड़ा.
कर्ज का खौफनाक जाल, जिसने जिंदगी उलट दी
द स्ट्रेट्स टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, यह कर्ज 2010 से 2011 के बीच लिया गया था. मनीलेंडिंग कंपनी ने इस पर चार प्रतिशत प्रति माह की ब्याज दर लगाई. इतना ही नहीं, समय पर भुगतान न होने की स्थिति में आठ प्रतिशत प्रति माह की अतिरिक्त लेट पेमेंट ब्याज भी वसूली जाती थी. इसके अलावा हर महीने ढाई हजार सिंगापुर डॉलर की लेट पेमेंट प्रोसेसिंग फीस भी जोड़ी जाती रही.
इन सभी चार्जेज़ का असर यह हुआ कि महज़ चार साल के भीतर ही कर्ज़ की रकम दो लाख पचास हजार सिंगापुर डॉलर से बढ़कर लगभग तीस लाख सिंगापुर डॉलर तक पहुंच गई.
परिवार की छत बचाने के लिए घर बेचना पड़ा
जुलाई 2016 तक आते-आते हालात और बिगड़ गए. किस्तें चुकाना मुश्किल हो गया और परिवार के सामने सिर से छत छिनने का खतरा खड़ा हो गया. ऐसे में उस व्यक्ति ने अपना घर मनीलेंडिंग कंपनी के डायरेक्टर को इक्कीस लाख सिंगापुर डॉलर (करीब 14 करोड़ रूपए) में बेच दिया.घर बेचने के बाद भी कहानी खत्म नहीं हुई. उसने उसी घर में किराएदार बनकर रहने का समझौता किया, जिसके तहत उसे हर महीने सात हजार से आठ हजार पांच सौ सिंगापुर डॉलर किराया देना तय हुआ.
फिर भी बढ़ता गया कर्ज
घर बिक जाने के बावजूद कर्ज़ कम नहीं हुआ. ब्याज और अन्य शुल्क जुड़ते रहे और 2021 के अंत तक कुल देनदारी बढ़कर करीब इक्कीस मिलियन सिंगापुर डॉलर तक पहुंच गई, जो भारतीय मुद्रा में लगभग 146 करोड़ रूपए बैठती है.
कोर्ट में कैसे पहुंचा मामला
यह मामला तब सामने आया जब किराया न देने और घर खाली कराने को लेकर दोनों पक्ष डिस्ट्रिक्ट कोर्ट पहुंचे. कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह जांच जरूरी है कि लोन और किराए के समझौते में कहीं कोई गैरकानूनी पहलू तो नहीं है.
जज ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि दो लाख पचास हजार सिंगापुर डॉलर उधार लेने के बाद ब्याज और तथाकथित लेट फीस जोड़ते-जोड़ते कर्ज़ का करोड़ों में पहुंच जाना अंतरात्मा को झकझोर देता है.
मनीलेंडर और उधार लेने वाले के दावे
मनीलेंडिंग कंपनी के डायरेक्टर ने दोबारा ट्रायल का विरोध किया और कहा कि उधार लेने वाला व्यक्ति खुद अपनी बदहाली का जिम्मेदार है. वहीं, कर्ज़ लेने वाले शख्स का दावा है कि किराए का समझौता दिखावटी था और लोन डील में धोखाधड़ी, छल या कानून के उल्लंघन की जांच होनी चाहिए.जज ने भी यह कहा कि यह जांच करना जरूरी है कि आखिर किन परिस्थितियों में व्यक्ति को अपना घर उसी मनीलेंडर को बेचना पड़ा और फिर वह उसी का किराएदार कैसे बन गया.यह मामला अब सिर्फ एक व्यक्ति की कहानी नहीं रह गया है, बल्कि ऊंचे ब्याज, कर्ज के जाल और मनीलेंडिंग सिस्टम की निगरानी पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर रहा है.
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