क्यों पाकिस्तान टीटीपी को कह रहा है 'फितना-अल-खवारिज'? आखिर क्या है इसका मतलब

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच मौजूदा टकराव की जड़ में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (टीटीपी) है, जिसे पाकिस्तान ‘फ़ितना-अल-ख़वारिज़’ कहता है और अपने पड़ोसी देश अफगानिस्तान पर इन आतंकियों को पनाह देने का आरोप लगाता है. अब सवाल यह है कि पाकिस्तान ने टीटीपी को लेकर ‘फ़ितना-अल-खवारिज’ जैसा धार्मिक शब्द क्यों अपनाया है.

Advertisement
 पाकिस्तान ने टीटीपी को लेकर ‘फितना-अल-खवारिज’ जैसा धार्मिक शब्द क्यों अपनाया है (Photo-AP) पाकिस्तान ने टीटीपी को लेकर ‘फितना-अल-खवारिज’ जैसा धार्मिक शब्द क्यों अपनाया है (Photo-AP)

aajtak.in

  • नई दिल्ली,
  • 17 अक्टूबर 2025,
  • अपडेटेड 9:30 AM IST

पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच हिंसा एक बार फिर भड़क उठी है. बुधवार (15 अक्टूबर) को पाकिस्तानी सुरक्षा बलों ने दावा किया कि उन्होंने अफगान तालिबान के करीब 15 से 20 लड़ाकों को मार गिराया है. यह जानकारी पाकिस्तान की सेना के मीडिया विंग इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (ISPR) ने दी.

ISPR के बयान में कहा गया कि स्थिति अभी भी विकसित हो रही है. ‘फितना-अल-खवारिज’ और अफगान तालिबान के स्टेजिंग पॉइंट्स पर और अधिक जमावड़े की रिपोर्ट मिल रही है.

Advertisement

यहां ‘फितना-अल-खवारिज’ शब्द उस आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान (TTP) के लिए इस्तेमाल किया गया है, जिसे पाकिस्तान लंबे समय से अपनी सीमाओं के भीतर हमलों के लिए ज़िम्मेदार ठहराता रहा है.

वर्तमान संघर्ष की वजह वही पुराना विवाद है.पाकिस्तान का आरोप है कि अफगानिस्तान टीटीपी आतंकियों को पनाह दे रहा है. 2007 में बना यह संगठन पाकिस्तान के अंदर कई घातक हमलों को अंजाम दे चुका है.

अगस्त 2024 में पाकिस्तान सरकार ने एक आधिकारिक सर्कुलर जारी किया था, जिसमें कहा गया था कि अब से टीटीपी को 'फितना-अल-खवारिज' कहा जाएगा. सवाल है इस शब्द का अर्थ क्या है और इसे चुनने के पीछे मकसद क्या है?

'फितना-अल-खवारिज' के मायने क्या है

यह शब्द दो अरबी शब्दों से बना है-'फितना' और 'खवारिज'.फितना का अर्थ होता है -'अराजकता' या 'धर्मसंगत शासक के विरुद्ध विद्रोह.'खवारिज (एकवचन ‘खारिजी’) का अर्थ है -अलग हो जाना या समूह से बाहर निकलना.

Advertisement


इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, अली इब्र अबी तालिब के शासनकाल के उनके कुछ समर्थकों ने मुआविया इब्र अबी सुफियान के साथ मध्यस्थता के मुद्दे पर असहमति जताई. 657 ईस्वी में सिफ्फीन के जंग के बाद ये गुट अलग हो गया और कहा कि फैसला मानवों का नहीं, ईश्वर का होना चाहिए.

यह समूह बाद में ख़वारिज़ कहलाया. उन्होंने अली की सत्ता को अस्वीकार कर दिया और उनके खिलाफ हमले शुरू कर दिए, जिसके बाद नहरवान की लड़ाई (658 ई.) में अली ने उन्हें हराया.लेकिन, 661 ईस्वी में अली की हत्या इन्हीं ख़वारिज़ में से एक व्यक्ति अब्दुल रहमान इब्न मुलजम ने कर दी.

क्या है 'खवारिज' होना

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, खवारिज अत्यधिक कट्टर विचारधारा वाले थे. वे मानते थे कि जो भी मुसलमान बड़ा पाप करता है, वह इस्लाम से बाहर हो जाता है.आज कई इस्लामी विद्वान अल-कायदा, आईएसआईएस जैसे समूहों को भी इसी विचारधारा से जोड़ते हैं. हालांकि आधुनिक विद्वान चेतावनी देते हैं कि इस शब्द का अंधाधुंध इस्तेमाल गलतफहमी पैदा कर सकता है.

क्यों पाकिस्तान टीटीपी को कह रहा है ‘फितना-अल-खवारिज’?

टीटीपी खुद को पाकिस्तानी सेना के अत्याचारों के खिलाफ, खासकर खैबर पख्तूनख्वा में, लड़ाई का दावा करता है.वे पाकिस्तान को अमेरिकी प्रभाव से 'मुक्त' करने की बात भी करते हैं. लेकिन पाकिस्तानी सेना लंबे समय से इन आतंकियों को देश के भीतर तबाही मचाने वाला गुट मानती है.अब टीटीपी की 'धार्मिक वैधता' को चुनौती देने के लिए पाकिस्तान सेना ने उसे 'फितना-अल-खवारिज' कहना शुरू किया है,यानी ऐसे लोग जो इस्लाम की असली राह से भटक गए हों.

Advertisement

जनता का समर्थन जीतने की कोशिश

पाकिस्तानी सेना जानती है कि खैबर पख्तूनख्वा जैसे इलाकों में जनता राज्य से नाराज है और अक्सर उन आंदोलनों का समर्थन करती है जो उनके हक़ की बात करते हैं.ऐसे में सेना की यह रणनीति-टीटीपी को 'धार्मिक गद्दार' के रूप में पेश करना जनता की सहानुभूति वापस पाने की कोशिश है.इस तरह, 'फितना-अल-खवारिज' सिर्फ़ एक नाम नहीं, बल्कि पाकिस्तान की वैचारिक लड़ाई का हिस्सा बन चुका है.

---- समाप्त ----

Read more!
Advertisement

RECOMMENDED

Advertisement